Current Date: 23 Nov, 2024

कबीर अमृतवाणी

- Traditional


M:-        रात गवाई सोये कर दिवस गवायो खाये -२
हीरा जन्म अनमोल था कौड़ी बदले जाए कबीरा कोड़ी बदले जाए 

बंदे तू कर बंदगी तो पावे दीदार -२
ओसर मानूस जन्म का बहुरि ना बारम्बार कबीरा बहुरि ना बारम्बार 

जैसा भोजन खाइये तैसा ही मन होये -२
जैसा पानी पीजिये तैसी वाणी होये कबीरा तैसी वाणी होये 

हाड जले लकड़ी जले जले जलवान हार -२
कौतिक हरा भी जले का सो करू पुकार कबीरा का सो करू पुकार 

मन के हारे हार है मन के जीते जीत -२
कहे कबीर हर पाइये मन ही की प्रतीत कबीरा मन ही परतीत 

जाति ना पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान -२
मोल करो तलवार को पड़ा रहना दो म्यान कबीरा पड़ा रहने दो म्यान 

साधु भूखा भाव का धन भूखा नाही -२
धन भूखा जो फिरे सो तो साधु नाही कबीरा सो तो साधु नाही 

हीरा परखे जोहरी शब्द ही परखे साध -२
कबीर के परखे साग को ताका माता अगाध कबीरा  ताका माता अगाध 

एक ही बार परखिये ना वा बारम्बार -२
बालू हो तो किरकिरी जो छाने सौ बार कबीरा जो छाने सौ बार 

धर्म किये धन ना घटे नदी घटे ना नीर -२
अपने आँखों देख ले यो कथिहि कही कबीर कबीरा कथिहि कही कबी

या दुनिया दो रोज की मत कर या सो हेत -२
गुरु चरनन चित लाइए जो पुराण सुख देत कबीरा जो पुराण सुख देत

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