भूमिका
हिन्दू धर्म के अनुसार जयेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को विशेष महत्व दिया जाता है जयेष्ठपूर्णिमा के दिन सुहागण स्त्रियों को वट वृक्ष की पूजा और जयेष्ठ पूर्णिमा व्रत कथा सुनना कल्याणकारी होता है आज के दिन एक बाँस के ठोकरी मे सात प्रकार के अनाज को कपड़े से ढ़कर रखना चाहिए दूसरी ठोकरी मे माँ सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है और उसी के साथ धूप दीप अक्षत कुमकुम और मोली भी आदि पूजा साम्रगी भी रखी जाती है माँ सावित्री की पूजा कर वट वृक्ष के सात चक्कर लगाते हुए मोली का धाग वट वृक्ष पर बाँधा जाता है इसके बाद किसी निर्धन व्यक्ति या किसी ब्रह्मण को श्रद्धा अनुसार दान दक्षिणा और प्रसाद के रूप में चने व गुड़ दिया जाता है मान्यता है की आज के दिन पवित्र गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य के जीवन के सभी पाप धूल जाते हैं जयेष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है इस दिन वट सावित्री के व्रत की तरह ही वट वृक्ष की पूजा की जाती है आइए अब हम कथा का श्रवण करें!
कथा
पौराणिक व्रत कथा के अनुसार राजा अश्वपति के घर देवी सावित्री के अंश से एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम महाराज ने सावित्री रखा पुत्री युवा अवस्था प्राप्त हुई देख कर राजा ने मंत्रियों से सलहा की इसके बाद राजा ने सावित्री से कहा तुम्हे योग्य वर देने का समय आ गया है मै विचार कर तुम्हारी आत्मा के अनुरूप वर को नहीं पा रहा हूँ इसीलिए हे पुत्री मै तुमको भेज रहा हूँ की तुम स्वयं ही अपने योग्य वर ढूंढ लो पिता की आज्ञा पा सावित्री निकल पड़ी और फिर एक दिन उसने सत्यवान को देखा और मन ही मन उसे वर चुन लिया जब उसने देव ऋषि नारद जी को ये बात सुनाई तब ऋषि नारद जी सावित्री के पास आए और कहने लगे कि तुम्हारा पति अल्पायु है तुम कोई दूसरा वर देख लो पर सावित्री ने कहा मैं एक हिन्दू नारी हूँ पति को एक ही बार चुनती हूँ सावित्री की बात सभी ने स्वीकार की और फिर एक दिन उन दोनों का विवाह हो गया एक दिन सत्यवान के सिर मे अत्यधिक पीड़ाहोने लगी सावित्री ने वट वृख के नीचे अपनी गोद में पति के सिर को रख कर उसे लेटा दिया उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतो के साथ यमराज आ पहुँचे है सत्यवान के जीभ को दक्षिण दिशा की ओर ले कर जा रहे हैं यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चल देती है उन्हें आता देख यमराज नेकहा हे पतिव्रता नारी पृथ्वी तक हीपत्नी अपने पति का साथ देती है अब तुम वापस लौट जाओ उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा जहाँ मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है यही मेरा पत्नी धर्म है सावित्री के मुख से यह उत्तर सुनकर यमराज बड़े प्रसन्न हुए उन्होंने सावित्री को वर माँगने को कहा और बोले मै तुम्हे तीन वर देता हूँ बोलो तुम कौन कौन से टीन वर लोगी तब सावित्री ने सास ससुर के लिए नेत्र ज्योति माँगी ससुर का खोया हुआ राज्य वापिस माँगा एवं अपने पति सत्यवान के पुत्रो की माँ बनने का वर माँगा सावित्री के ये तीनो वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा तथास्तु ऐसा ही होगा सावित्री ने अपनी बुद्धिमता से यमराज को उलझा लिया पति के बिना पुत्रवती होना जितना असंभव था उतना ही यमराज का अपने वचन से मुख फेरना अन्तः उन्हें सत्यवान के प्राण वापस करने ही पड़े सावित्री पुनः उसी वट वृक्ष के पास लौट आई जहाँ सत्यवान मृत पड़ा था सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुनः जीवित करवाया बल्कि सास ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके ससुर को खोया हुआ राज्य फिर दिलवाया सावित्री की पतिव्रता धर्म की कथा का सार ये है की एकनिष्ट पति परयाणा स्त्रियाँ अपने पति को सभी दुःख और कष्ट से दूर रखने में समर्थ होती हैं जिस प्रकार पतिव्रता धर्म के बल से ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन से छुड़ा लिया था इतना ही नहीं खोया हुआ राज्य तथा अंधे सास ससुर की नेत्र ज्योति भी वापिस दिला दी कथा की समापति के उपरांत अपने पति को रोली और अक्षत लगा कर चरण स्पर्श करें इसके उपरांत प्रसाद वितरण करे वट वृख का पूजन अर्चन और ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है उनका सौभाग्य खंड रहता है
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