|| जीवित पुत्रिका व्रत महिमा ||
F:- भक्तजनों हमारे देश के अनेक प्रांतों में महिलाएं अपने वंश वृद्धि व संतान की लंबी आयु के लिए आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी को इस व्रत का पालन करती है | आश्विन मास की अष्टमी को यह निर्जला व्रत होता है |
|| नहाए खाय विधि ||
सप्तमी के दिन जीव तीया मे नहाए खाय होता है | इस दिन महिलाएं सुबह सुबह उठ कर स्नान कर पूजा करती है | नहाए खाए के दिन सिर्फ एक बार ही भोजन करना होता है | नहाए खाए की रात को छत पर जाकर चारों दिशाओं में कुछ खाना रख दिया जाता है | ऐसी मान्यता है कि जाता है ऐसी मान्यता है कि यह खाना सील व सीयारण के लिए रखा जाता है |
|| तिथि और शुभ मुहूर्त ||
इस बार आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 9 सितंबर की रात में 09:46 प्रारंभ होगा और 10 सितंबर की रात 10:47 मिनट तक रहेगा 10 सितंबर को अष्टमी में चंद्र उदय का अभाव है | इसी दिन जीव तीया पर्व मनाया जाएगा | जीव तीया व्रत का पालन करने का शुभ समय 11 सितंबर की सुबह सूर्योदय से लेकर दोपहर 12:00 बजे तक रहेगा |
|| व्रत पालन विधि
यहां जीवित्पुत्रिका व्रत का अंतिम दिन होता है | जीव तीया व्रत का पालन करने का शुभ समय 11 सितंबर की सुबह सूर्य उदय से लेकर दोपहर 12:00 बजे तक रहेगा | वृत्ति महिलाओं को जीव तीया व्रत के अगले दिन 11 सितंबर 12:00 बजे से पहले पालन करना होगा |
|| कथा ||
जिवुत वाहन गंधर्व का राजकुमार बड़े उद्धार और परोपकार थे उन्होंने राज्य के बाहर अपने भाइयों पर छोड़कर स्वयं वन में पिता की सेवा करने चले गए | एक दिन जिवुत वाहन ने एक वृद्धा को विलाप करते हुए देखा | पूछने पर वृद्धा ने बताया मैं नागवंशी स्त्री हूं और मेरा एक ही पुत्र है पक्षीराज गरुड़ के समक्ष नागो ने उससे भक्तन हेतु एक नाग सौंपने की प्रतिज्ञा करी हुई है मेरे पुत्र शंखचूड़ की आज बली का दिन है |
जिवुत वाहन ने कहा डरो मत मैं तुम्हारे पुत्र के बदले अपने आप को उसके लाल कपड़े में ढक्कर बध्य शिला में लेटूँगा इतना कहकर जिवुत वाहन बध्य शिला पर लेट गए | नियत समय पर वरुण बड़े व्यक्ति आय और वह लाल कपड़े में ढके जिवुत वाहन को पंजे में जब दबोच कर पहाड़ के शिखर पर जाकर बैठ गए | अपने चंगुल में गिरफ्तार प्राणी की आंखों में आंसू और मुहं से आ निकलता ना देख कर गरुड़ जी बड़े अक्षर में पड़ गए | उन्होंने जिवुत वाहन से उनका परिचय पूछा जिवुत वाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया | गरुड़ जी उनकी बहादुरी और दूसरी की प्राण रक्षा करने में स्वयं का बलिदान देने की हिम्मत से बहुत प्रभावित हुए प्रसन्न होकर गरुड़ जी ने उनको जीवनदान दे दिया तथा नागों का बलि ना देने का वरदान भी दे दिया | इस प्रकार जिवुत वाहन के अदम्य साहस से नाग जाति की रक्षा हुई और तब से पुत्र की सुरक्षा हेतु जिवुत वाहन की पूजा की प्रथा शुरू हो गई |
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