स्थायी :- शिवकारो में सबसे पहले पूजे हर इंसान जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
कोरस:- जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान-2
वार्ता :- भक्तो आज हम आपको श्री गणेश कार्तिकेय की बाल लीलाओ का रोचक प्रसंग सुनाने जा रहे है किस तरह भगवान गणेश जी की बुद्धि का परिचय लेते है सुनिए इस कथा के माध्यम से एक बार प्रेम से बोलिये श्री गणेश महाराज की जय
१
कार्तिकेय गणपत मिल के बाल लीलाये करते
दोनों इक साथ खेलते प्रेम से दोनों रहते
कोरस:- दोनों इक साथ खेलते प्रेम से दोनों रहते -2
दोनों ही माता पिता की सदा ही सेवा करते
पिया शिव माता गौरी प्यार से गले लगाते
कोरस:- पिया शिव माता गौरी प्यार से गले लगाते-2
माता पिता के लिए दोनों पुत्र है एक सामान
जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
कोरस:- जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
वार्ता :- एक बार शिव और पार्वती मन में ऐसा विचार करते है की हमारे दोनों पुत्र विवाह योग्य हो गए है हमे ये दोनों ही प्यारे है किसका विवाह पहले सम्पन्न किया जाए इधर कार्तिक गणेश आपस में नोक झोक करते है पहले मै विवाह करूंगा पहले मै विवाह करूंगा जब दोनों में निर्णय नहीं हो पाया तो दोनों अपने माता पिता यानी शिव गौरा के पास आये और अपने मन की बात बताई
२
शिवजी इनको समझाये विवाह की शर्त बताये
जो भी इस भूमंडल की पहले परिक्रमा लगाए
कोरस:- जो भी इस भूमंडल की पहले परिक्रमा लगाए -2
जो पहले यहाँ पे आये उसी का विवाह रचाये
बात है अटल हमारी करो अब तुम तैयारी
कोरस:- बात है अटल हमारी करो अब तुम तैयारी-2
माता पिता की शर्त को सुनकर दोनों हुए हैरान
जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
कोरस:- जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
वार्ता :- माता पिता की बात सुनकर कार्तिके अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी का भ्रमण करने निकल पड़े गणेश जी सोचे की मेरा छोटा सा वाहन मूषक यह कार्य शीघ्र नहीं कर पायेगा मात पिता की पूजा कर उन के सात फेरे लगाके परिक्रमा पूरी की शिव ने कहा हे पुत्र ये क्या किया तुमने गणेश ने कहा आप के चरणों में सारे लोक समाये है सारी सृष्टि आप में विराज मान है अतः आप दोनों की परिक्रमा कर में यह पुण्य किया है अतः मेरा ही पहले विवाह किया जाए
३
बोले फिर गणपत प्यारे वचन सुनो पिता हमारे
पृथ्वी के जितने तीरथ सभी आधीन तुम्हारे
कोरस:- पृथ्वी के जितने तीरथ सभी आधीन तुम्हारे -2
आप से बड़ा कौन है जगत के पालन हारे
मुझे आशीष दीजिये विवाह मेरा अब कीजे
कोरस:- मुझे आशीष दीजिये विवाह मेरा अब कीजे -2
माता पिता कहे तुमसे ज्यादा नहीं किसी में ज्ञान
जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
कोरस:- जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
वार्ता :- गणेश जी हाथ जोड़कर अपने पिता शिव और माता पार्वती से कहने लगे आप को छोड़ कर जो तीर्थ यात्रा को पता है वो पाप का भागीदार होता है अतः में आप दोनों की परिक्रम करके यह पुण्य कार्य किया है यह सुनकर शिव और पार्वती ने कहा तुम धन्य हो पुत्र तुम महान हो तुम अपने कार्य में सफल हुए कुछ ही दिनों में श्री गणेश की विवाह रिद्धि और सिद्धि नामक दो कन्याओ से कर दिया गया
४
वचन जो शिव ने दिया है आज वो पूरा किया है
गणेश की विवाह हुआ है सबने आशीष दिया है
कोरस:- गणेश की विवाह हुआ है सबने आशीष दिया है -2
लोट कर कार्तिक आये खबर सुनकर दुखियाये
निराशा आयी मन में बात ये सह ना पाए
सारे जगत के झूठे बंधन तप में लगाया ध्यान
जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
कोरस:- जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
५
वार्ता :- जब स्वामी कार्तिके जी पृथ्वी की परिक्रमा करके लोटे तो उन्हें नारद जी ने सारा समाचार सुना दिया समाचार सुनकर कुमार कार्तिकेय भरी दुखी हुए और तप करने क्रोच पर्वत पर चल दिए माता पिता के रोकने पर भी वो नहीं रुके सारा जगत उनकी श्रद्धा भाव से आज भी पूजा करता है उन्हें याद करता है
५
विघ्नहरी अवतारी गजानन मंगलकारी
लम्बोदर सूंड धारी गणेश जी जय हो तुम्हारी
कोरस:- लम्बोदर सूंड धारी गणेश जी जय हो तुम्हारी -2
अष्ट अवतार तुम्हारे सभी लगते है प्यारे
जगत के तुम रखवारे शरण सब आये तुम्हारे
कोरस:- जगत के तुम रखवारे शरण सब आये तुम्हारे -2
लड्डू मोदक मेवाओं के प्रभु करते रसपान
जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
कोरस:- जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
वार्ता :- भक्तो श्री गणेश भगवान के मुख्य आठ अवतार है जिसका वर्णन गणेश उपासना में किया गया वो कौन से आठ अवतार है में पको बताता हु वो आठ नाम श्री वक्रतुण्ड अवतार एक दंत अवतार और श्री महोदर अवतार श्री लंबोदर अवतार श्री विकट अवतार श्री विघ्नराज अवतार और गजानन अवतार घूम वर्ण अवतार इन आठो अवतारों की पूजा विधि विधान से की जाती है
६
गणपति भाग्य विधाता विघ्न हारता सुख करता
सभी शुभ कार्यो में पहले इन्ही को पूजा जाता
कोरस:- सभी शुभ कार्यो में पहले इन्ही को पूजा जाता -2
जो इनके द्वार पे आते मुरादे मन की पाते
गणपति गोरी लाला विध्न तू हरने वाला
कोरस:- गणपति गोरी लाला विध्न तू हरने वाला -2
जो गणपति की करे वंदना होता है कल्याण
जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
कोरस:- जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
वार्ता :- भक्तो आपको एक और प्रसंग सुनाते है श्री गणेश की उतपति कैसे हुई एक समय माता पार्वती स्नान के लिए जाना चाहती थी मगर उन्हें एक द्वारपाल की जरूरत थी तभी उन्होंने अपने उबटन से एक पुतले का निर्माण किया अपनी शक्ति से उसपे प्राण फूंक दिए और उसे आदेश दिया मेरी आज्ञा बिन द्वार के अंदर कोई प्रवेश न करे भक्तो समय को कौन टाल सकता उसी समय शंकर भगवान का आगमन हुआ गण ने उन्हें रोका कहा में माता का आदेश है आप अंदर नहीं जा सकते शिव ने अपना परिचय दिया पर वो बालक नहीं माना
माँ ने एक खेल रचाया मैले से पुतला बनाया
अपने ही द्वार बिठाया पुत्र को ये समझाया
कोरस:- अपने ही द्वार बिठाया पुत्र को ये समझाया
चाहे जो भी हो जाय कोई अंदर न आये
था बालक आज्ञाकारी वचन माता का निभाए
कोरस:- था बालक आज्ञाकारी वचन माता का निभाए
थोड़ी देर में वहां पधारे शिव शंकर भगवान
जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
कोरस:- जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
वार्ता :- जब शंकर भगवान आये तो बालक ने उन्हें रोका और कहा आप मेरी माता की आज्ञा के बिना अंदर प्रवेश नही कर सकते शिव जी बोले मुर्ख तुझे पता है मै कौन हूँ मै पार्वती का स्वामी शिव हु मुझे जाने दे बालक ने कहा आप कोई भी हो में तुम्हे अंदर प्रवेश नहीं करने दूंगा
८
गण से बोले शिव शंकर जाने दे मुझको अंदर
हुआ फिर उन दोनों में यहाँ पर युद्ध भयंकर
कोरस:- हुआ फिर उन दोनों में यहाँ पर युद्ध भयंकर -2
पति मै पार्वती का मै बालक उसी सती का
शिव के गण सभी परिवार सभी बालक से हारे
कोरस:- शिव के गण सभी परिवार सभी बालक से हारे -2
उस बालक ने शिव शंकर से किया बहुत संग्राम
जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
कोरस:- जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
वार्ता :- जब वो बालक नहीं मन तो क्रोधित होकर शिव शंकर ने उस बालक का त्रिशूल से सर काट दिया जब यह समाचार माता पार्वती को मिला तो भयंकर क्रोध करने लगी और प्रलय करने लगी देवो ने जब विनती की तो माता बोलो यह महा प्रलय थी शांत होगी मेरे बालक को उसी तरह जीवित किया जाए शिवजी ने गणो को आदेश दिया की उत्तर दिशा में जो भी जिव मिले उसका शीश लाया जाए गणो ने एक हथनी के बच्चे का शीश शिवजी को सौंप दिया शिव ने हथनी के बच्चे का शीश उस बालक के धड़ पर लगाकर जीवित किया
खेल शिवजी ने रचाया शीश हाथी का लगाया
किया बालक को जीवित लोक सारा हरसाया
कोरस:- किया बालक को जीवित लोक सारा हरसाया -2
वो प्रथम देव कहाये और वरदान ये पाए
देव तुमसे न दूजा करे सदा तेरी पूजा
कोरस:- देव तुमसे न दूजा करे सदा तेरी पूजा -2
सारे देवो से बढ़कर फिर मिला उन्हें सम्मान
जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
कोरस:- जय जय गणपति देव महान जय हो विध्नेश्वर भगवान
अगर आपको यह भजन अच्छा लगा हो तो कृपया इसे अन्य लोगो तक साझा करें।