Current Date: 23 Dec, 2024

जादूगारा साँवरा

- अभिषेक मिश्रा


ऐसे सज धज के बैठा,
मेरा साँवरा,
एक बार जो देखे हो जाता,
वो बावरा,
ऐसा जादूगारा है मेरा साँवरा,
मेरा साँवरा मेरा साँवरा,
ऐसे सज धज कर बैठा,
मेरा साँवरा।।

तर्ज – कब तक चुप।

सिर मोर मुकुट है प्यारा,
घुंघराले केश है न्यारे,
कजरारे कारे नैना,
लगते है प्यारे प्यारे,
कानों में कुण्डल,
लगता है मन भावना,
मेरा साँवरा मेरा साँवरा,
ऐसे सज धज कर बैठा,
मेरा साँवरा।।

केसरिया बागा पहने,
गल मोतियन की है माला,
कोई कहता शीश का दानी,
कोई कहता मुरलीवाला,
जिस रूप में देखो,
लगता बड़ा सुहावना,
मेरा साँवरा मेरा साँवरा,
ऐसे सज धज कर बैठा,
मेरा साँवरा।।

बन ठन के बैठा बाबा,
और मंद मंद मुस्काए,
वारो लूण राई वारो,
कहीं नज़र नहीं लग जाए,
‘अभिषेक’ को भी लगता है,
बड़ा लुभावना,
मेरा साँवरा मेरा साँवरा,
ऐसे सज धज कर बैठा,
मेरा साँवरा।।

ऐसे सज धज के बैठा,
मेरा साँवरा,
एक बार जो देखे हो जाता,
वो बावरा,
ऐसा जादूगारा है मेरा साँवरा,
मेरा साँवरा मेरा साँवरा,
ऐसे सज धज कर बैठा,
मेरा साँवरा।।

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