Current Date: 22 Nov, 2024

इंद्र कौन है, क्यों नहीं होती इंद्र की पूजा? (Indra Kaun Hai? Kyun Nahi Hoti Indra Ki Pooja?)

- The Lekh


इंद्र कौन है, क्यों नहीं होती इंद्र की पूजा?

इंद्र को सुरेश, सुरेन्द्र, देवेन्द्र, देवेश, शचीपति, वासव, सुरपति, शक्र, पुरंदर, देवराज भी कहा जाता है। इंद्र के कारण ही इंद्र धनुष, इंद्रजाल, इंद्रियां, इंदिरा जैसे शब्दों की उत्पत्ति हुई है। इंद्र को देवताओं का अधिपति माना गया है। इंद्र को उनके छल के कारण अधिक जाना जाता है।

वैदिक समाज जहां देवताओं की स्तुति करता था, वहीं वह प्राकृतिक शक्तियों की भी स्तुति करता था और वह मानता था कि प्रकृति के हर तत्व पर एक देवता का शासन होता है। उसी तरह वर्षा या बादलों के देवता इंद्र हैं तो जल (समुद्र, नदी आदि) के देवता वरुण हैं।

मुद्र-मंथन से जो 14 रत्न प्राप्त हुए उनमें से एक ऐरावत भी था। रत्नों के बंटवारे के समय इंद्र ने अत्यंत सुंदर और ऐश्वर्ययुक्त दिव्यगुणों वाले ऐरावत हाथी को अपने लिए रख लिया था। ऐरावत चमकता हुआ श्वेत वर्ण का है। उसके 4 दांत हैं।  इसीलिए इसे इंद्रहस्ति अथवा इंद्रकुंजर भी कहा जाता है।

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अब तक हुए 14 इंद्र : स्वर्ग पर राज करने वाले 14 इंद्र माने गए हैं। इंद्र एक काल का नाम भी है, जैसे 14 मन्वंतर में 14 इंद्र होते हैं। 14 इंद्र के नाम पर ही मन्वंतरों के अंतर्गत होने वाले इंद्र के नाम भी रखे गए हैं। प्रत्येक मन्वंतर में एक इंद्र हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि

कहा जाता है कि एक इन्द्र 'वृषभ' (बैल) के समान था। असुरों के राजा बली भी इंद्र बन चुके हैं और रावण पुत्र मेघनाद ने भी इंद्रपद हासिल कर लिया था।

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इन्द्र का चरित्र और कार्य : इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। वही वर्षा पैदा करता है और वही स्वर्ग पर शासन करता है। वह बादलों और विद्युत का देवता है। इंद्र की पत्नी इंद्राणी कहलाती है।

इंद्रपद पर आसीन देवता किसी भी साधु और राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देता था इसलिए वह कभी तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देता है तो कभी राजाओं के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े चुरा लेता है।

ऋग्वेद के तीसरे मण्डल के वर्णनानुसार इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गई। दशराज्य युद्ध में इंद्र ने भरतों का साथ दिया था। सफेद हाथी पर सवार इंद्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्तिशाली देव है। ऐसे माना जाता है कि इंद्र की सभा में गंधर्व संगीत से और अप्सराएं नृत्य कर देवताओं का मनोरंजन करते हैं।

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इन्द्र की शक्तियां : इन्द्र के युद्ध कौशल के कारण आर्यों ने पृथ्वी के दानवों से युद्ध करने के लिए भी इन्द्र को सैनिक नेता मान लिया। इन्द्र के पराक्रम का वर्णन करने के लिए शब्दों की शक्ति अपर्याप्त है। वह शक्ति का स्वामी है, उसकी एक सौ शक्तियां हैं। चालीस या इससे भी अधिक उसके शक्तिसूचक नाम हैं तथा लगभग उतने ही युद्धों का विजेता उसे कहा गया है। वह अपने उन मित्रों एवं भक्तों को भी वैसी विजय एवं शक्ति देता है, जो उस को सोमरस अर्पण करते हैं। इन्द्र और वरुण नामक दोनों देवता एक दूसरे की सहायता करते हैं। वरुण शान्ति का देवता है, जबकि इन्द्र युद्ध का देव है एवं मरूतों के साथ सम्मान की खोज में रहता है।

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हिन्दू धर्म में क्यों नहीं होती इंद्र की पूजा

भगवान कृष्ण के पहले 'इंद्रोत्सव' नामक उत्तर भारत में एक बहुत बड़ा त्योहार होता था। भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा बंद करवाकर गोपोत्सव, रंगपंचमी और होली का आयोजन करना शुरू किया। श्रीकृष्ण का मानना था कि ऐसे किसी व्यक्ति की पूजा नहीं करना चाहिए जो न ईश्वर हो और न ईश्वरतुल्य हो। गाय की पूजा इस लिए क्योंकि इसी के माध्यम से हमारा जीवन चलता है। होली उत्सव इसलिए क्योंकि यह सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है। रंगपंचमी जीवन को उत्सव और खुशियों से भरने का त्योहार है।

श्रीकृष्ण ने का मानना था कि हमारे आस-पास जो भी चीजे हैं उनसे हम बहुत ही प्रेम करते हैं जैसे गायें, पेड़, गोवर्धन पर्वत (तब गोवर्धन पर्वत साल भर हरा घास, फल मूल एवं शीतलजल को प्रवाहित करता था)। श्रीकृष्ण के शब्दों में 'ये सब हमारी जिंदगी हैं। यही लोग, यही पेड़, यही जानवर, यही पर्वत तो हैं जो हमेशा हमारे साथ हैं और हमारा पालन पोषण करते हैं। इन्हीं की वजह से हमारी जिंदगी है। ऐसे में हम किसी ऐसे देवता की पूजा क्यों करें, जो हमें भय दिखाता है। मुझे किसी देवता का डर नहीं है। अगर हमें चढ़ावे और पूजा का आयोजन करना ही है तो अब हम गोपोत्सव मनाएंगे, इंद्रोत्सव नहीं।'

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इंद्र को आया तब क्रोध : श्रीकृष्ण के निवेदन पर स्वर्ग के सभी देवी और देवताओं की पूजा बंद हो गई। धूमधाम से गोवर्धन पूजा शुरू हो गई। जब इंद्र को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने प्रलय कालीन बादलों को आदेश दिया कि ऐसी वर्षा करो कि ब्रजवासी डूब जाएं और मेरे पास क्षमा मांगने पर विवश हो जाएं। जब वर्षा नहीं थमी और ब्रजवासी कराहने लगे तो भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण कर उसके नीचे ब्रजवासियों को बुला लिया। गोवर्धन पर्वत के नीचे आने पर ब्रजवासियों पर वर्षा और गर्जन का कोई असर नहीं हो रहा। इससे इंद्र का अभिमान चूर हो गया। बाद में श्रीकृष्ण का इंद्र से युद्ध भी हआ और इंद्र हार गए। तब ही से इंद्र की पूजा का प्रचलन नहीं है।

Who is Indra? Why is Indra not worshipped?

Indra is also known as Suresh, Surendra, Devendra, Devesh, Sachipati, Vasav, Surapati, Shakra, Purandar, Devraj. It is because of Indra that words like Indra Dhanush, Indrajaal, Indriya, Indira have originated. Indra has been considered the ruler of the gods. Indra is known more for his deceit.

While the Vedic society praised the gods, it also praised the forces of nature and believed that every element of nature was ruled by a deity. Similarly, Indra is the god of rain or clouds and Varuna is the god of water (sea, river etc.).

Airavat was also one of the 14 gems obtained from the churning of the ocean. At the time of the distribution of gems, Indra had kept for himself the Airavat elephant with divine qualities, very beautiful and opulent. Airavat is of shining white complexion. He has 4 teeth. That is why it is also called Indrahasti or Indrakunjar.

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14 Indras so far: There are 14 Indras who rule the heaven. Indra is also the name of a period, as there are 14 Indras in 14 Manvantaras. 14 Indra's names under the Manvantara are also named after Indra. There has been an Indra in each Manvantar whose names are as follows- Yajna, Vipaschit, Shebi, Vidhu, Manojav, Purandar, Bali, Adavandav, Shanti, Vish, Ritudham, Devaspati and Suchi.

It is said that one Indra was like a 'Vrishabh' (bull). Bali, the king of the Asuras, has also become Indra and Ravana's son Meghnad had also achieved the position of Indra.

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Character and work of Indra: Indra is considered the king of all the gods. He creates the rain and He rules the heaven. He is the god of clouds and lightning. Indra's wife is called Indrani.

The deity sitting on the Indrapad did not allow any monk or king to become more powerful than him, so sometimes he misleads the ascetics by seducing them with Apsaras and sometimes steals the horses of the Ashwamedh Yagya of the kings.

According to the description of the third division of Rigveda, Indra dried up the bottomless water of Vipasha (Vyas) and Shatdru rivers, so that the army of Bharata could easily cross these rivers. Indra supported the Bharatas in the Dasrajya war. Mounted on a white elephant, Indra's weapon is the thunderbolt and he is an immensely powerful deity. It is believed that in the assembly of Indra, Gandharva music and Apsaras entertain the gods by dancing.

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Powers of Indra: Due to Indra's fighting skills, the Aryans considered Indra as a military leader even to fight with the demons of the earth. The power of words is insufficient to describe the might of Indra. He is the lord of power, he has one hundred powers. He has forty or more powerful names and has been called the winner of almost as many wars. He gives the same victory and power to his friends and devotees who offer Somras to him. Both the gods named Indra and Varuna help each other. Varuna is the god of peace, while Indra is the god of war and seeks honor with the Maruts.

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Why Indra is not worshiped in Hinduism

Before Lord Krishna, there used to be a huge festival in North India called 'Indrotsav'. Lord Krishna stopped the worship of Indra and started organizing Gopotsav, Rangpanchami and Holi. Shri Krishna believed that one should not worship such a person who is neither God nor God-like. Cow is worshiped because our life runs through it. Holi festival is because it symbolizes the victory of truth over untruth. Rangpanchami is a festival to fill life with celebration and happiness. 

Shri Krishna believed that we love the things that are around us very much like cows, trees, Govardhan Parvat (then Govardhan Parvat used to flow green grass, fruit roots and cool water throughout the year). In the words of Shri Krishna, 'These are all our lives. It is these people, these trees, these animals, these mountains who are always with us and nurture us. Because of these we have life. In such a situation, why should we worship such a god who shows us fear. I am not afraid of any god. If we have to organize offerings and worship, then now we will celebrate Gopotsav, not Indrotsav.

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Indra got angry then: On the request of Shri Krishna, the worship of all the Gods and Goddesses of heaven stopped. Govardhan Puja started with much fanfare. When Indra came to know about this, he ordered the doomsday clouds to rain in such a way that the residents of Braj were drowned and were forced to apologize to me. When the rain did not stop and the residents of Braj started moaning, Lord Krishna called the Braj residents under it by holding the Govardhan mountain on his finger. When the Govardhan mountain came down, the Brajvasis were not affected by rain and thunder. Indra's pride was shattered by this. Later, Shri Krishna also had a fight with Indra and Indra was defeated. Since then the worship of Indra is not prevalent.

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