Current Date: 18 Nov, 2024

होली की कथा

- शालिनी सिंह


होली की कथा


नारद पुराण के अनुसार आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक घमंडी राजा  हुआ करता  था। उसे भगवान् से  यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु न तो इंसान के हाथो और न ही जानवर के हाथों होगी  उसे न तो दिन में और न ही कोई रात को मार सकता है उसे न तो घर में और न ही बाहर में मृत्यु प्राप्त हो सकती है  इसी वरदान के कारण वो स्वयं को ईश्वर से भी बड़ा समझने की भूल कर । उसकी यही इच्छा थी  कि लोग केवल उसकी पूजा करें। प्रजा तो डर से ऐसा करती थी परन्तु उसका  उसका पुत्र प्रहलाद  परम विष्णु भक्त था।उसका सारा दिन प्रभु आराधना में ही बीतता था , भक्ति उसे उसकी मां से विरासत के रूप में मिली थी। हिरण्यकश्यप के लिए यह बड़ी चिंता की बात थी कि उसका स्वयं का पुत्र विष्णु भक्त कैसे हो गया?उसने अपने पुत्र को प्रभु की भक्ति न करने के लिए समझाया लेकिन जब वो न माना तो उसपर अत्याचार करने लगा अथक प्रयासों के बाद भी वह सफल नहीं हो सका।


 हिरन्यकश्यप के अत्याचारों को सहने के बाद भी प्रहलाद ने पूजा अर्चना नहीं छोड़ी तब राजा चिंतित होकर सोचने लगा - कैसे प्रहलाद को  भक्ति मार्ग से हटाए। उसने अपने पुत्र से कहा – प्रहलाद मैं सर्वशक्तिमान हूँ ..इसलिए मेरे होते तुम किसी भी भगवान् की पूजा मत करना ...लेकिन पिता के जाते ही प्रहलाद फिर से नारायण जी की पूजा में लीं हो गया कई बार समझाने के बाद भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे को जान से मारने का विचार किया। कई कोशिशों के बाद भी वह प्रह्लाद को जान से मारने में नाकाम रहा। बार-बार की कोशिशों से नाकम होकर हिरण्यकश्यप आग बबूला हो उठा। 
इसके बाद उसने अपनी बहन होलिका से मदद ली जिसे भगवान शंकर से ऐसी  चादर वरदान में मिली  थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। हिरन्यकश्यप ने यह तय किया होलिका चादर ओढ़ के चिता  पर बैठ जाये और उसकी  गोद में प्रहलाद को  बिठाया जाए ,  इसके बाद  जैसे ही प्रहलाद बैठे लकड़ियों में आग लगा दी  जाए ...चादर के कारण होलिका तो आग से बच  जाएगी मगर अग्नि प्रहलाद को  जला कर राख कर देगी प्र्हालाद ने पिता की आज्ञा का पालन किया और ॐ नमो नारायणा का जाप करते हुए चिता की तरफ बढ़ता चला गया  भगवान् विष्णु हिरन्यकश्यप के इस क्रिया कलाप को देख मन ही मन क्रोधित हो गए |
 
योजना के अनुसार होलिका अपनी चादर को पूरे तन पर ओढकर बैठ गयी और फिर उसने प्रह्लाद को अपनी गोद में ले लिया । लेकिन जैसे ही चिता में आग लगाई गयी  विष्णु जी ने  चमत्कार  कर दिया  अचानक तेज़ हवा चलने लगी ..सभी चौंक गए तभी वह चादर होलिका के तन से  उड़ कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई यह देख सभी विस्मित रह गए इससे पहले कोई कुछ कर पाता आग की लपटों में होलिका घिर गयी इस तरह  प्रह्लाद की जान बच गयी और होलिका जल गई। इसी के बाद से होली की पूर्व  संध्या को अग्नि जलाकर होलिका दहन का आयोजन किया जाता है। इसमें सभी प्रकार के अहंकार ,बुराई और पाप  आदि जलकर नष्ट हो जाते हैं होली रंगों का त्यौहार है इसलिए होलिका दहन के अगले दिन सभी एक दुसरे को रंग लगाते हैं और इसे भाईचारे का पर्व भी कहा जाता है l

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