Current Date: 19 Nov, 2024

हरिद्वार कुंभ गाथा

- Prem Prakash Dubey


दोहा
गुरु गणेश गौरी रमा माँ शारद सिर नाय।
कुम्भ कथा हरिद्वार की कहूँ सुनो मन लाय।।
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं,
बड़े भाग्यशाली हैं वे जो इस धरती पर आते हैं।
हरिद्वार की पावन धरती, हर जीव का मङ्गल करती।
                            
एकबार ऐरावत पर चढ़ इन्द्र भ्रमण को जब निकले,
परम तपस्वी ऋषि दुर्वासा कहीं मार्ग में उन्हें मिले।
ऋषि ने औपचारिकता वश वनमाला इन्द्र को भेंट दिया,
तुच्छ समझ के इन्द्र ने उस वनमाला का अपमान किया।

अहंकार वश इन्द्र के द्वारा एक भयानक दोष हुआ
इन्द्र के इस व्यवहार से ऋषि दुर्वासा को अति रोष हुआ।
जिस पद के मद में सुरेश ने ऋषि प्रसाद का त्याग किया
उस पद के छिन जाने का देवेश को ऋषि ने श्राप दिया।

श्राप से हो भयभीत इन्द्र क्या करें समझ नहीं पाते हैं।
हरिद्वार के महाकुम्भ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं।
असुरों को जब ज्ञात हुआ ये श्रापित होकर आये हैं,
सब एकत्रित हो तुरंत ही अमरावति पर धाये हैं।
देवों असुरों में वर्षों तक घोर महा संग्राम हुआ।
अमरावति का सारा यश वैभव असुरों के नाम हुआ।
सत्य हो गया श्राप ऋषी का पद से इंद्र विहीन हुए,
सभी देवता निराधार हो अतिशय कातर दीन हुए।

तब सब देवो ने मिलकर ब्रह्मा जी का आवाहन किया
ब्रह्मा जी ने विष्णु शरण में जाने का आदेश दिया।।
सभी देव मिल नारायण को अपनी कथा सुनाते हैं।
बड़े भाग्यशाली हैं वह जो इस धरती पर आते हैं।।
दुखी देवताओं से बोले श्री हरि लक्ष्मी नारायन
असुरों के संग मिलकर देवों जाओ करो सागर मन्थन।
सागरमंथन से निकलेंगें कई रत्न और अमृत महान।
अमृतपान से हो जाएगा तुम सब देवों का कल्यान।
हरि आज्ञा से देव असुर सब करने लगे मनन चिन्तन।
किस प्रकार कैसे साधन से सम्भव हो सागर मन्थन।
मन्दराचल की बनी मथानी नाग वासुकी डोर बने।
देव असुर उतरे सागर में सागर का मन्थन करने।।
कच्छप बनकर श्रीहरि मन्दराचल का भार उठाते हैं।
हरिद्वार के महाकुम्भ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं।

चौदहवें रत्न के रूप में ज्यूँ ही अमृत प्रकट हुआ 
उसे देखते ही देवो असुरों का धीरज टूट गया 
अमृत पाने का प्रयास छल बल से हर कोई करने लगा 
छीना जबकि का प्रयास यह बारह दिन अनवरत चला 
तब श्री हरि मोहिनी रूप धारण कर सहसा प्रकट हुए 
छल से अमृत अपने हाथ लेकर देवों को बांट दिए 

राहु नाम के एक असुर ने हरि का यह चल भाँप लिया 
देव पंक्ति में बैठ उसने चुपके से अमृत पान किया 
वध तो हुआ पर राहु केतु बन ये ही ग्रहण लगाते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं

छीना झपटी में कुछ बूंदें अमृत कुंभ से छलक गयीं,
भारतवर्ष में वे बूंदें चार स्थानों पर आन पड़ीं 
इन्हीं चार शुभ स्थानों पर कुंभ का मेला लगता है 
अक्षय पुण्य कमाने को भक्तों का ज्वार उमड़ता है 
एक है तीर्थ प्रयागराज जहां गंगा यमुना संगम है 
एक तीर्थ उज्जैन जहां महाकाल का धाम विहंगम है 
एक तीर्थ गोदावरी तट पर नासिक में छविमान हुआ 
एक तीर्थ हर की पैड़ी हरिद्वार नाम से महान हुआ 
बारह वर्ष पे ग्रह गोचर यहां कुंभ का योग बनाते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं

हरि के धाम का द्वार यही है इसकी महिमा भारी है 
देव भूमि का प्रथम क्षेत्र यह इस की शोभा न्यारी है 
माँ गंगा का भूतल पर पहला पड़ाव है ये हरिद्वार 
स्नान ध्यान करने वालों का मां गंगा करती उद्धार 
गगन चूमती शिव की प्रतिमा गंगा तीर विशाल खड़ी 
हरि दर्शन का मार्ग दिखाती भक्तों को हरि की पैड़ी 
निर्मल धवल दिव्य धारा मां गंगा की गतिमान यहां 
गंगा जल की बूंद बूंद में अमृत है छविमान यहां 
गंगा आरती करने देखने देवी देव सब आते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं

गंगोत्री यमुनोत्री से हरिद्वार का सीधा नाता है 
पंचतीर्थ हरिद्वार धाम का गौरव और बढ़ाता है 
पार्वती माता का मायका शिव जी की ससुराल यहां 
कनखल जैसा तीर्थ धरा पर भक्तों होगा और कहां 
जहां नील धारा बहती है और नहर वाली गंगा 
वह पावन कनखल करता है रोग दोष पातक भंगा 
जहां तपस्या की गौरी माता ने शिव को पाने को 
बरबस मन करता है उस तीरथ में शीश झुकाने को 
हरिद्वार परिक्षेत्र में है ये महातीर्थ एक धाम बड़ा 
गौरी मां के तप के कारण तपस्थली है नाम पड़ा 
देवी देव नर नारी यहां सब सादर शीश झुकाते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं

गोमुख मां गंगा का उद्गम एक बार जो दरस करे
जन्म जन्म के पाप मिटें वह सहज ही भवसागर उतरे 
गंगोत्री मैं स्नान ध्यान कर गंगाजल जो ले आए 
तीन देव की कृपा प्राप्त कर जीवन धन्य बना जाए 
गंगोत्री में मां गंगा का दिव्य पुरातन मंदिर है 
आदि शंकराचार्य प्रतिष्ठित मूर्ति सुहावन सुंदर है 
यहीं भगीरथ, मां यमुना, मां सरस्वती की प्रतिमायें
शंकराचार्य की प्रतिमा के दर्शन भक्तों के मन में भाएं 
गंगा जी की स्वर्ण मूर्ति सोने के छत्र सुहाते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं

गंगा मंदिर के समीप ही भैरव नाथ का मंदिर है 
जिसकी छटा सुहावन पावन भव्य दिव्य अति सुंदर है 
सूर्य कुंड है ब्रह्म कुंड है विष्णु कुंड है तीर्थ यहां 
यही भगीरथ शिला भगीरथ जी ने घोर तप किया जहां 
इसी शीला पर पिंडदान पितरों के हित किया जाता है 
जिसके नाम से पिंडदान हो सहज मुक्ति वो पाता है 
तपस्थली ऋषि मार्कंडेय की मार्कंडेय क्षेत्र है यहीं
ऐसा दिव्य मनोहर प्रांगण कहीं धरा पर और नहीं 
केदार गंगा का संगम शिवलिंग पे गंगाधर गिरे 
गौरीकुंड इसे कहते दर्शन से चार पदार्थ मिले 
देवदारू और चीड़ के बन इसे सुंदर और बनाते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हे सुनाते हैं

यहीं पास में लक्ष्मण झूला लक्ष्मण जी का मंदिर है 
अन्य कई मंदिरों संग यह क्षेत्र मनोरम सुंदर है 
यहां पे दान स्नान और उपवास की महिमा भारी है 
ऋषि मुनियों की तपस्थली यह धरती सबसे न्यारी है 
श्रवण नाथ जी का मंदिर है कुशावर्त के पास खड़ा 
पंचमुखी महादेव का पत्थर का विग्रह है सिद्ध बड़ा 
रामघाट और विष्णु घाट हैं गंगा जी के तीर यहां 
तन मन आत्मा निर्मल कर दे मां गंगा का नीर यहां 
यहीं गणेश घाट पर प्राणी पाप ताप धो जाते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं

माया देवी घाट यहीं पर यहीं पे भैरव अखाड़ा है
जिसके दर्शन वंदन ने हर पाप को जड़ से उखाड़ा है 
आठ भुजा वाले शिवजी यहां भैरव संग बिराज रहे 
तीन शीश वाली मां दुर्गा, मुंड शूल कर साज रहे 
नारायणी शिला काली मंदिर को प्रेम प्रणाम करें 
नीलधारा से सिंचित नीलेश्वर शिव चरण में शीश धरें 
चंडी देवी के मंदिर में ममता कृपा की धार बहे 
शेर यहां दर्शन को आए रात्रि में कोई नहीं रहे 
यहीं पे कदली बन में शेर हाथी का निवास बताते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं

अंजनी माता का मंदिर चंडी मंदिर के पास खड़ा 
गौरी शंकर महादेव और बेल का वन है प्रसिद्ध बड़ा 
बिल्व नाम के पर्वत पर बिल्वकेश्वर शिव का मंदिर है
यहां पे शिव की दो प्रतिमा एक बाहर है एक अंदर है 
मंदिर के समीप ही एक शिव नाम की धारा बहती है 
शिवधारा दर्शन करने वालों का हर दुख हरती है 
शिव गौरी के धाम को जो भी प्रेम से विनय प्रणाम करें 
गौरीशंकर उनके जीवन का शुभ हर परिणाम करें 
उमा शंभू को प्रेम से हम भी सादर शीश झुकाते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते

सती कुंड ये वही जहां पर सती ने तन को त्याग दिया 
दक्ष प्रजापति ने भी यहीं पर एक समय तप कठिन किया 
दक्षेश्वर महादेव का मंदिर यहीं दक्ष का मान मथा 
योगीश्वर शिव शंकर ने यहीं सती मोह का खेल रचा 
भीमसेन की तपस्थली जो भीमगोड़ा है कुंड विशाल 
पास उसी के ब्रह्मा जी का मंदिर सबको करे निहाल 
चौबीस अवतारी मंदिर की महिमा गरिमा अकथ अपार 
एक साथ हैं मूर्तिमान यहां श्री हरि के चौबीस अवतार 
नाना नामरूप में श्री हरी यहां पे दरस दिखाते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं

सप्तधारा में सप्तऋषियों ने एक समय तप खूब किया 
गंगा जी ने यही स्वयं को सात धारा में बांट दिया 
भव्य वीरभद्रेश्वर मंदिर सब को अभय दान देता 
मंदिर में पूजन वंदन से अक्षय फल महान देता 
सत्यनारायण मंदिर का दर्शन शुभ फल देने वाला 
जीवन की हर बाधा विपदा पल में हर लेने वाला 
हरिद्वार में पग-पग पर हैं तीर्थ स्थान महान बसे 
देवभूमि के कण-कण में साक्षात यहां भगवान बसे 
जिनके भाग्य जगें वे ही इस पावन धरा पे आते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं।

हरिद्वार तीर्थ की जय जय हो
चार धाम की जय जय हो।
पंच प्रयाग की जय जय हो 
देव भूमि की जय जय।।
हरिद्वार की पावन धरती 
हर जीव का मंगल करती
बड़े भाग्यशाली हैं वे जो इस धरती पर आते हैं
ये हरद्वार ये हरिद्वार ये गंगाद्वार कहाता है 
हर और हरि से कुशावर्त का एक समान का नाता है 
मायापुरी हरिद्वार और कनखल ज्वालापुर व भीमगोड़ा 
हरिद्वार पूरा हुआ जब इन पांचों पूरियों को जोड़ा 
सूर्य चंद्र हो मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ में आएं
तब प्रत्येक बारहवें वर्ष में महाकुंभ का योग बनाएं 
ऐसे पावन महातीर्थ में महाकुंभ का शुभ संयोग 
कांटे जन्म जन्म का बंधन दूर करे सारे भंव रोग 
बड़े भाग्यशाली होते हैं वे जो कुंभ नहाते हैं 
हरिद्वार के महाकुंभ की महिमा तुम्हें सुनाते हैं।
 

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