Current Date: 08 Sep, 2024

हनुमान लीला

- IB PRAKASH


हनुमत कथा सुख बोधिनी प्रारम्भ करु रघुनाथ
लेखन में बल दो प्रभु  धरो शीश पे हाथ
में निर्गुण अति मूढ़ हूँ देहो ज्ञान और धीर 
चरणों की रज दो प्रभु मोहे हनुवयथा और पीर 
चैत्र मास कृत आयी सुहावन पुष्प खिले सब महके उपवन 
मंद पवन में झूमे रे मन पवन पुनीत है अंजनी प्रांगण 
मुस्काये रे अंजनी माता मुखड़ा तो फुला ना समाता
देव पवन रहे मोती लुटाये पुत्र जनम सन्देश जो पाए 
घर घर बजती आज बधाई सब मिल नाचे लोग लुगाई 
ललना का मुख मन को भावे जो नव बिच हो चंद्र सुहावे 
अति बलवाना स्वस्थ शरीर चंचल नयन जो बहत समीरा 
कंचन थाल सजाकर लायी सबा मिलकर ही नजर उतराई 
अक्षत तिलक विराजत माथे पुण्य मस्तक न्यारा लागे 
यज्ञ हवं सब किये अनोखा पोथी पंडित सब लेखा 
गृह अंत सब देखा भाला नाम तभी हनुमान निकला 
नाम सुनाओ पवन हर्षाये बाल रूप हनुमान जी भाये 
नृत्य करे सब झूमे नारी देव शकल सब देवे तारी 
लीला तब मन माहि समयी बलि बलि जावे अंजना माई 
देव संत सब गान सुनावे पलना में हनुमत मुस्काये 
रेशम का सजता है बिछौना हाथ लियो छोटो सो खिलौना  
पल पल बढे तप ओ कपि वृंदा जुवाद तापो नटखट चंदा 
नटखट चंचल सबको सताये व्याकुल सबका मन हर्षाये 
समझावे पर समझत नाही देव पवन कछु सुजात नाही 
मात कहे क्या बाल निराला किस नटखट से पड़ा है पला 
पवन कहे कोई करो उपाय हनुमत को अब क्या समझाये 
निकले अब मारुती वीरा उड़कर पहुंचे सिंधु वीरा 
उजला दिनकर मन को भय देखु से फिर जी ललचाया 
हुआ भरम के यह कोई फल है ना समझे ये सूर्य अनल है 
सोचे हनुमान नभ पर जाओ भूख लगी है यह फल खा जाऊ
तुरत कपि तब उड़कर पहुंचे फल खाऊंगा मन में सोचे 
तब पीछे राहु ने रोका नाही सुनत कपि कितना टोका 
पास गया बालक हाथ खेल करहु को निचे जा धकेला
थर थर कांपे वह भय खाकर किस्सा सुनाया इंद्रा को जाकर 
इधर तो भूख लगी अति भारी बालक ने कर ली तैयारी 
आधा भाग जो मुख में डाला सकल धरा छाया अँधियारा 
गिरके तीर तब छाने लगा विकत समय तब भय अभागा 
लपट छपत दौड़े नर नारी सभी बुझते सभी सब ही विचारी 
लागे ही सब कुछ अब बेढंगा कैसे हो गया आया अचम्भा 
सभी देव चर थे अकुलाये पशु पक्षी तब से घबराये 
गरजा इंद्र क्रोध उसे आया किसे भानु को है छुपाया 
देखा एक छोटा सा बालक मुखड़ा लाल था जैसे पावक 
रोष किया जैसे भूचाल इंद्र ने अपना वज्र संभाला 
बाललक की नाभि पर मारा पवन देव ने गोद संभाला 
पवन देव ने वज्र निकला लगता था कछु देखा भाला 
उचित रूप से  आका जाना इंद्र का है ये अब  पहचाना 
बोले इंद्र को स्वाद चखाउ अब ना शीतल पवन बहाऊ
बालक संग हजूफा में बैठे अपने मनमानी क़र ऐंठे 
रुकी पवन सब तुरत ही सारी छाया कष्ट बढ़ा  भारी
पवन बिना सब धुप से जलते पेड़ के पत्ते तनिक ना हिलते 
पशु पक्षी बिन हवा कहराते वायु बिना सूत चैन ना पाते 
इधर पवन है क्रोध में जलते गोद में हनुमत अश्रु छलकते 
पवनदेव ने मरहम किन्ही न न भाती की औषध दीन्हि 
क्या लीला तब सबने विचारी कही व्यथा ब्रम्हा से सारी
हाथ जोड़ पूछे नर नारी क्यों करे कष्ट हुआ ये भारी 
ब्रम्हा जी ने तब बतलाया पवन रुष्ट है यह समझाया 
इंद्र वज्र है इसका कारण पवन करेंगे अब तोह निवारण 
बालक को है वज्र से मारा किया पवन तब कारज सारा 
इन बाल ने सूर्य को भक्षा नादानी में फल उसे समझा 
उसने दिनकर मुख में डाला तब ही छाया है अँधियारा 
जाओ सब मिल उनको मनाओ शीट पवन शुभ नित नित पाओ 
पहुंचे सब मिलकर नर नारी व्यथा सुना दी पवन को सारी 
पवन  कहे ना हवा बहाओ मांगे इंद्र क्षमा में चाहु 
सुरपति जब विनय करेंगे तब ही वायु पाट खोलेंगे
इंद्र को तब सबनर समझाया चरणों में गिर शीश झुकाया 
तभी पवन ने दया दिखाई पृथ्वी पर है हवा  चलायी  
ब्रम्हा जी ने आन बताया धन्य पवन जो सुख यह पाया 
बलशाली है अति बलवाना ग्रास लिया दिनकर फल ही समाना 
दिन प्रतिदिन जो बल बढ़ जाए धरती पर संकट मंडराए 
ब्रम्हा ने वरदान दिया जब बालक शक्ति भूल गया तब
वीर पुरुष सब याद दिलाये तब ही हंमत बल सब पाए 
आदि शक्ति हर ली तब ही हनुमत पूछा टूटी तब ही 
बीत गए तब दिवस अनेका हनुमत हो गए गुनी विवेका
मिल गए एक दिन फिर रघुराई हनुमत को व्यथा सुनाई 
सीता को हम खोजने आये किसने हर ली समझ ना आये
तब बजरंग सुग्रीव मिलाये किष्किंधा नगरी को धाये 
ऋषि मुख पर अस्थाना सुन्दर लगता स्वर्ग समाना 
जब सब कथा सुनी सुग्रीव भर गए दुःख से समझी विपदा 
तब उनको सब  याद आया किस्सा सारा तब ही सुनाया 
एक विमान ले उसे था पापी जिसमे बैठी एक नारी थी
बारम्बार वो राम पुकारे केश पकड़ पापी उसे मारे 
रोते थे सब सहसा फिर कुछ विरह आभूषण 
सब गहने वह मैंने उठाये खूब सम्भाले थे रखवाए 
जब देखे वो सरे आभूषण पुलकित हो गया व्याकुल रे मन
राम ने लक्ष्मण को भी दिखाए लक्ष्मण मन ही मन सकुचाये 
बोले धन कछु ज्ञात ना इसका चरना बिना कभी कुछ नहीं देखा 
याद नहीं कभी कैसे थे आभूषण सागर से झुकता था तन मन 
गहने सब रघु ने पहिचाने सीता माँ के है ये जाने 
तब सुग्रीव ने दिशा बताई रावण ले गया समझ में आयी 
अपनी घटना तब ही सुनावे बैठ के तब सुग्रीव सुनावे 
बोले मेरा भ्राता बाली बुरी नजर उसने भी डाली 
रघुवर बन गए सबके सहायक संग में हनुमंता सुखदायक 
बाली को फिर मारा पल में सब अंकित में लक्षण भर में 
हरे प्रभु ने दुःख अनेका किया सुग्रीव ने रज्य अभिषेका 
सुग्रीव ने जाना विचार राम ही है वे विष्णु अवतारा 
रघुवर बोले व्यथा मिटाओ मोहे सिया की सुधि लाओ 
पर ये कारज कोण करेगा लंका द्वार पे कदम रखेगा 
दुर्गम मार्ग सिंधु होगा कौन बलशाली बंधू होगा 
मोहे है अब हनुमत पे भरोसा पता लगावे जाके सिया लका 
सकुचावे तब मन में सोचे कैसे वह लंका में पहुंचे 
छीनी ब्रम्हा जी ने शक्ति भूल गए था अपनी हस्ती 
में निर्बल अति मूढ़ वानर कैसे करूँगा कार्य रघुवर 
किन हिन् में में मति हिना शक्ति वां तुम में बलहीना 
फिर पुरुष जामवंत आये वीर्य कपि को समझाये 
मत भूलो शक्ति बलवाना बलशाली लटूम सब जग जाना 
शीग्र उठो तुम लंका को जाओ बजरं रूप को अति बिसराओ
तुम  पर रघुवर को है भरोसा पता लगाओ जाके सिया का 
बाल रूप रवि मुख में लिया था सुरो का संघार किया था
इतना सुनके चेतना जाएगी सारे तन की जड़ता भागी 
रूप बनाया तब विशाला शीग्र उड़े तब अंजनी लाला 
ललंघे पर्वत नदी अनेका सुरसा रक्षशी ने तब रोका 
मुख में घुस गए बजरंग बाला सुरसा को चकित कर डाला 
कभी मुख में कभी बाहर आये बल देखि सुरसा घबराये 
बलशाली तब बदन बढ़ाया सुरसा से हनुमत बढ़ावा 
कारज होगी नाही देरी रक्षा करेंगे राम जी तेरी 
जब लंका के द्वार पे आये राम नाम के स्वर लहराए 
है रत में पड़ गए बजरंगी कौन यह राम का संगी
दूर से फिर कुटिया देखि भक्ति के मंदिर के जैसी 
बाहर निकले फिर इक सजाएं भक्त के जैसे नाम विभीषण  
मिले हनुमत सब मर्म बताया हो गए व्याकुल मन हर आया 
फिर पहुंचे वे अशोक वाटिका शोकाकुल बैठी थी सीता 
संग में त्रिजटा कछु समझावे जानकी बस नीर बहावे 
आया तब लंकापति रावण भय दिख्लावे कछु समझावन 
हनुमत को हुआ मन में शोभन रावण जब देता था प्रलोभन 
समझावे भी आदि दिखावे नाना भांति से वह समझावे
हनुमत आये जब गया रावण राम नाम का करके वंदन 
सीता ने देखा कोई वानर सोचा कौन है हैरत पढ़कर 
राम मुद्रिका तब ही दिखाई राम नाम से समझी माई 
कहे बजरंग ने राम का सेवक डरो नहीं माँ मैं हूँ रक्षण 
तब सीता सब पूछी कुशलता व्याकुल मुख में दिखे विवशता 
हनुमत कहे भूख लगी भारी फल तोड़े सब लंका उजारि 
तब आया नृप अक्षय कुमार हनुमत उसका वध कर डाला 
बजरंग ने कई दानव मारे कछु भागे कछु अधमारे 
आया मेघ नाथ बलवाना पाछे चले सब भूत मसाना 
ब्रम्ह अश्त्र तब अंत चलावा बंधक कपि को तुरंत बनावा 
ब्रम्ह शत्र की महिमा राखी बंधक बन गया वानर स्वतः ही
महल में पंहुचा कहे नर नर वानर ने सब लंका उजारि 
मेघनाथ ने तब सुनाया पूछहि वानर को बतलाया 
तेल एक मँगाओ वानर पूछ में आग लगाओ 
देखे रावण और नर नारी बजरं ने सब लंका जारी 
लपट झपट कर सारे भागे त्राहि त्राहि सभी माचवे हुई 
भसम सोने की लंका बज गया राम नाम का डंका
लंक जल गयी हनुमत आये वानर सब जयकार वो लाये 
सेवक ना कोई हनुमत जैसा सकल जगत सब ही देखा 
अंतिम बार राम समझाया दूत बना अंगद भिजवाया 
नहीं समझत रावण नहीं मन आया काल कोई नहीं जान
होगा रण उसने समझाया माने ना बात काल है आया 
जिनको रावण को जोगी जाना हो नारायण श्री भगवान काल निकट आया
 सब समझो अंगद ने तब पाँव जमाया शूर वीर कोई उठा ना पाया 
अंत में रावण लगा उठाने देखे निशिक्चर देखे सयाने 
तुरता ही जब पैर हटाया रावण को यही समझाया
चरण पकड़ना राम के जाके क्षमा मिलेगी शरण में जाके 
वरना होगा रन भयंकर जिसका है परिणाम दुशावर 
अंत सीखने चला है अंगद राम से फिर जा मिला रे अंगद 
दिखलाया तब क्रोध कराला भाई विभीषण तब घर से निकाला 
अभामिनि रावण तब गरजा करलो रे अब आवाहन युद्ध का 
बीते दिन संकट भारी सिंधु तीर खड़ी सेना सारी 
कैसे लंका पंहुचा जाए कौन सागर सेतु बनाये 
नल और नील एक नाम बताया ऋषि आशीष का किस्सा सुनाया
जब पहन नल नील धरेंगे सागर जल में सभी तरेंगे 
यद्ध दिवान चढ़ आया मिलजुलकर दसब सेतु बनाया 
कुम्भकरण को जगावे रावण सव वृतांत सुनावे रावण 
मौत के मुख में गए र दानव हर्ष के साथ बोले वानर
कुम्भकरण वध सुना जो रावण मेघनाथ दिया सैन्य शासन 
इधर लखन सब सेना संभाली शाश्त्र लिए सब देखि भाली 
मेघनाथ किया युद्ध भयंकर लहू लुहान सब हो गए वानर 
ब्रम्हा अश्त्र तब लगा लखन को ले गए हनुमत उठा लखन को 
जब ही पवनसुत लौट के आये रघुवर देखि लखन अकुलाई 
क्या अनहोनी समझ ना आता मूर्छित क्यों है लखन भ्राता 
बोले विभीषण वेद बुलाओ अश्त्र लगा है दवा कराओ 
लंका में एक वैद गुनी है ओषधि देने का जो धनि है
हनुमान सुनो तुम ही जाओ वैद रज को शीग्र ले आओ 
तब हनुमत जा वैद को लाये वैद्यराज संग ओषधि लाये 
अपने झोले में जब धुंडी ना मिली संजीवनी बूटी 
नाम संजीवन ओषधि न्यारी ले आओ काट जावे बीमारी
वचन सुने जब वैद्यराज के कौन बचाये प्राण लखन के 
वीर पुरुष वानर सभी सारे नाम पुकारे हनुमान ही सारे 
रघुवर तब ही अनुग्रह कीन्हा कारज कठिन दीं को दीन्हा 
आज्ञा पायी गए हनुमंता कोशो उड़ गए देखि तुरंत 
सेवक वो श्री धन्य कहाये नाना भाँति के कष्ट उठाये 
जब पहुंचे पर्वत पे वीरा ओषधि भूले होकै धीरा 
कुछ पल में मन को समझाये पूरा पर्वत लिया उठाये 
मिले मार्ग में भरता ही वीरा देखि कपि को मारा तिरा 
हनुमत कुछ ही ध्यान ना लावहि देर करि ना उड़ती जावहि 
रघुवर चिंता बढ़ने लागी कटती नाही रेन अभागी 
पूछे मात तो क्या बतलाऊ लक्ष्मण बिन अब रह नहीं पाउ 
सबने हनुमत को जब देखा हो गया कर्ज थे ही सोचा 
बजरंग महिमा हर कोई गाये पूरा पर्वत ये ले आये 
शीग्र बनायीं ओषधि सारी पल में मिट गयी मूर्छा सारी 
लक्ष्मण ने जीवन तब पाया हनुमत सेवक ने है बचाया 
साथ जो बजरंग फिर भय केसा तीन लोक में ना सेवक ऐसा 
रणभेरी और शंख नाद से युद्ध हुआ तब मेघनाथ से 
तरकश से जब बाण निकाला शीश कटा और वध कर डाला 
सिंघासन डोला रावण का अभिमानी को कछु ना सूझता 
तब ही मन में ध्यान हो आया उसने अहिरावण को बुलाया 
अहिरावण गया माया रचाई वानर सेना सकल सुनाई 
इंद्रा हनुमत को भी लागी राम लखन फिर बन गए बंदी 
मरुत सूत को होश जो आया राम लखन को कही नहीं पाया 
ढूंढा वन वन मार्ग जाए मिला गुफा में डोर वो पाए 
हुआ युद्ध दोनों में भारी हनुमत ने तब भुजा उखारी 
अहिरावण को मार गिरया राम लखन को कंधे बिठाया 
हनुमत ने की प्रभु की रक्षा ना कोई सेवक हनुमत जैसा 
अतः युद्ध हुआ अति भारी रावण बन गया तब भयकारी 
घोर युद्ध चला पर ना मरता रह रह रावण फिर जी उठता 
बोले विभीषण प्रभु को बताया नाभि का फिर भेद बताया 
बोले विभीषण नाभि पे मारो अभिमानी को तुरत संहारो 
मर गया दुष्ट धरा में लेटा व्याकुल सारी गाथा कहता 
सदा रहे प्रभु संग गुसाई राम की किरपा नित नित पायी 
लिखी किरपा से सेवक महिमा  सुखकारी है बजरंग महिमा 
जो कोई सच्चे मन से ध्याये वयाकुल सूत शांति तब पाये

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