कोरस :- नारायण नारायण श्री हरी नारायण आ आ आ आ आ आ
M:- हरी ॐ नमो नारायणा बोलिए भगवान श्री हरी विष्णु जी की
कोरस :- जय
M:- भक्तो आज पावन ब्र्हस्तिवार है कुछ लोग इसे वीरवार अथवा गुरूवार भी कहते है यह दिवस भगवान श्री हरी विष्णु जी को अत्यंत प्रिय है जो भक्त बृहस्पतिवार को भगवान श्री हरी विष्णु जी का उपवास रखता है सारा दिन हरी भजन और कीर्तन करता है साय काल व्रत कथा सुनने के पश्चात पूजन व्रत कथा चालीसा आरती सुन पिले रंग के मीठे भोजन से भगवान को भोग लगाता है और स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करता है वो भक्त जीवन में समस्त सुख भोगकर अंत में वैकुण्ठ लोक प्राप्त करता है तो आइये सुनते है संगीतमय पावन बृहस्पतिवार व्रत कथा
M:- श्री मन नारायण ह्री गालो श्री विष्णु जी को ध्या लो हो कल्याण जी
पाओगी मुक्ति वरदान जी
कोरस :- पाओगी मुक्ति वरदान जी
M:- ब्र्हस्तिवार के व्रत की गाथा पार हुआ जो सुनता सुनाता ले लो नाम जी
पाओगी मुक्ति वरदान जी
कोरस :- पाओगी मुक्ति वरदान जी
M:- भक्तो भारतवर्ष में एक महाप्रतापी राजा राज्य किया करता था अत्यंत प्रजा वत्तस्ल और धर्म परायण था यथासम्भव भ्राह्मणो एवं दरिद्रो को दान पुण्य किया करता था परन्तु उसकी रानी पूर्णतः नास्तिक थी स्वयं तो पूजा पाठ करती नहीं थी और राजा को भी दान पुण्य करने से रोका करती थी एक समय राजा आखेट करने हेतु वन गए हुए थे उसी समय देव पुरुष बृहस्पति गरीब ब्राह्मण के रूप में राज महल में आए और भिक्षा मांगने लगे रानी तो पहले से है दान पुण्य से दुखी थी देव गुरु बृहस्पति रूपी ब्राह्मण से बोली है ब्राह्मण देव मैं तो इस दान पुण्य से तंग आ गयी हूँ भगवान करे हमारा सारा धन नष्ट हो जाए ताकि ना रहे बांस और ना बजे बांसुरी गुरु ब्रह्स्ती ने उसे लाख समझाया परन्तु वो ना मानी देव गुरु बृहस्पति करते भी तो क्या तथास्तु कहकर उसे धन सम्पति नष्ट होने का उपाय बताकर अंतर्ध्यान हो गए
गुरूवार को घर को लीपना पिली मिटटी से स्नान भी करना
बत्ती जलाकर कपड़े धोना और सर धोना भूल ना जाना
सारा धन माटी मिल जाए यश वैभव सुख सब खो जाए घटे नाम जी
दुनिया हो जाएगी वीरान जी
कोरस :- दुनिया हो जाएगी वीरान जी
M:- श्री मन नारायण ह्री गालो श्री विष्णु जी को ध्या लो हो कल्याण जी
पाओगी मुक्ति वरदान जी
कोरस :- पाओगी मुक्ति वरदान जी
M:- नारायण नारायण श्री हरी नारायण आ आ आ आ आ आ
रानी ने लगातार तीन ब्र्हस्तिवार ऐसा है किया था भक्तो और देखते देखते उनकी साड़ी धन सम्पति सुख यश वैभव सब समाप्त हो गया कल तक जो राजा धन धान बाटता था आज स्वयं एक एक अन्न के दाने को तरस गया था एक दिन राजा के मन में विचार आया की वो प्रदेश जाकर कुछ धंदा करेगा वही से कुछ पैसे जोड़कर रानी को भेजेगा यह सोचकर रानी के साथ एक दासी को छोड़ा और स्वयं परदेस चला गया वहां लकड़ी काटकर बेचता बड़ी मुश्किल से अपना जीवन यापन करता इतना भी धन नहीं कमा पाता था की रानी को कुछ भिजवा सके और इधर जब सात दिनों तक लगातार रानी और दासी भूखे रहे तब रानी ने अपनी दासी को पास के नगर में रहने वाली अपनली बहन के पास मदद मांगने हेतु भेजा आगे क्या हुआ आइये सुनते है
गुरूवार का व्रत वो करती रानी की बहना पूजन करती
दासी ने सब बात बताई पर बहना से ना उत्तर पायी
दुखी मन से वापिस आयी रानी को सब बात बताई हुई हैरान जी
कैसे है फूटे है मेरे भाग जी
कोरस :- कैसे है फूटे है मेरे भाग जी
M:- श्री मन नारायण ह्री गालो श्री विष्णु जी को ध्या लो हो कल्याण जी
कोरस :- व्रत की कथा है ये महान की
उधर रानी की बहन ने जब गुरूवार का व्रत पूजन समापत किया तो भागी भागी अपनी बहन के पास आयी बोली बहना में ब्र्हस्तिवार का पूजन कर रही थी इस पूजन के बिच में ना तो उठते है और ना है किसी से कुछ बोलते है इसीलिए मेने तुम्हारी दासी की बात का कोई उत्तर नहीं दिया रानी ने जब अपना सारा हाल अपनी बहन को रो रो सुनाया तो वो बोली बहना भगवान बृहस्पतिदेव अत्यंत दयालु और कृपालु है तू सच्चे मन से उनका ध्यान लगा उनसे अपने किये की क्षमा मांग वो तुझे अवश्य है क्षमा कर देंगे रानी ने ऐसा ही किया की तभी रसोईघर से कुछ आवाजे आने लगी दासी ने दौड़कर देखा तो क्या देखती है की बरर्तन अनाज से भरे हुए थे बृहस्पतिदेव की कृपा से सबने प्रेम से भोजन ग्रहण किया भोजन के पश्चात रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार पूजन की व्रत विधि और व्रत कथा पूछी तो बहन ने ये बताया
M:- दाल चने और लेना मुनक्का पूजा की फिर थाल सजाना
विष्णु जी का पूजन करने केले की तुम जड़ में जाना
पिले वस्त्र को धारण करना पीला मीठा भोग लगाना हो कल्याण जी
देंगे दया का हर दान जी
श्री मन नारायण ह्री गालो श्री विष्णु जी को ध्या लो हो कल्याण जी
व्रत की कथा है ये महान की
कोरस :- व्रत की कथा है ये महान की
M:- नारायण नारायण श्री हरी नारायण आ आ आ आ आ आ
अगले बृहस्पतिवार रानी व् दासी दोनों ने गुरूवार का व्रत रखा थाल में चना दाल मुनक्का गुड़ रखे केले की जड़ में जाकर भगवान श्री हरी विष्णु का पूजन किया पिले वस्त्र धारण किये सायकाल पूजन आरती और व्रत कथा के पश्चात जब भोग लगाने लगी तो क्या देखती है थाल में मीठा पीला भोजन तो है हि नहि दोनों सच्चे मन से भगवान श्री हरी विष्णु का सुमिरन करने लगे की तभी क्या देखते है की थाल में देसी घी से बने लड्डू भरे हुए थे दोनों ने मिलके भोग लगाया ही था की भगवान की किरपा से राजा भी परदेस से धन कमाकर वापिस आ गया धीरे धीरे उनका खोया यश वैभव वापिस आ गया अब राजा रानी नित्य बृहस्पतिवार का व्रत रखते थे पिले वस्त्र धारण करते पूजा की थाल में गुड़ चना और मुनक्का लेते केले की जड़ में जाकर श्री हरी विष्णु का ध्यान लगाते सायकाल पूजन आरती के पश्चात पूजन करते भोजन में पिली वस्तु का भोग लगाते भगवान की कृपा से पहले की तरह राजा रानी दान पुण्य करने लगे और जीवन के समस्त सुख भोगकर अंत में वैकुण्ठ को प्राप्त हुए इसी तरह भक्तो यदि कोई प्राणी बृहस्पतिवार का पावन व्रत पूरी श्रद्धा भाव के साथ रखता है और सभी नियमो का पालन करता है वो प्राणी श्री हरी की विशेष कृपा को प्राप्त करता है बोलिए भगवान श्री हरी विष्णु जी की
कोरस :- जय
M:- वीरवार व्रत कर जाओगे भवसागर से तर जाओगे
चंदन तिलक जो करते अर्पण हरी किरपा तुम पा जाओगे
बेडा श्री हरी पार लगाये भक्तो पर किरपा बरसाए दे वरदान जी
भक्तो का होगा कल्याण जी
कोरस :- भक्तो का होगा कल्याण जी
M:- श्री मन नारायण ह्री गालो श्री विष्णु जी को ध्या लो हो कल्याण जी
व्रत की कथा है ये महान जी
कोरस :- व्रत की कथा है ये महान जी
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