Current Date: 21 Nov, 2024

श्री गंगा माँ की अमर कहानी

- Traditional


M:-        पतित पावनी गंगा माँ की अमर कहानी है ये अमर कहानी है 
सतयुग त्रेता द्वापर क्या हर  युग में बखानी है ये अमर कहानी है 
पाप नाशिनी मोक्ष दायनी जग कल्याणी है ये अमर कहानी है 
बून्द बून्द में अमृत है गंगा वरदानी है ये अमर कहानी है
कोरस:-     जय पतित पावनी माँ जय वरदानी गंगा 
जय पाप नाशनी माँ जय कल्याणी गंगा 

M:-        भागीरथी के संग माँ गंगा धरा पे आयी थी 
त्रिलोकी शिव शंकर जी की जटा समायी थी 
कोरस:-     जटा समायी थी
M:-        गोमुख से गंगा सागर तक अमृत की धारा
पापी ढोंगी क्रोधी लोभी सभी को है तारा 
कोरस:-     सभी को है तारा 
M:-        कोई बोले तरन तारणी कोई वैतरणी 
कोई बोले मोक्ष दायनी कोई दुःख हरनी 
कोरस:-     कोई दुःख हरनी 
M:-        शिखर हिमालय से निकली है गंगोत्री है धाम 
गंगा सागर से मिलकर  ये करती है विश्राम 
कोरस:-     ये करती है विश्राम 
M:-        ध्यान लगा के सुनना भगतो कथा सुहानी है 
ये अमर कहानी है
बून्द बून्द में अमृत है गंगा वरदानी है ये अमर कहानी है
कोरस:-     जय पतित पावनी माँ जय वरदानी गंगा 
जय पाप नाशनी माँ जय कल्याणी गंगा 
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M:-        केदारनाथ से नील कंठ फिर ऋषिकेश आयी 
हरिद्वार हरकीपौड़ी पर गंगा लहराई 
कोरस :-     गंगा लहराई 
M:-        जहाँ जहाँ से होकर गुजरी खिले खेत खलिहान 
गंगा जी जल से मिला हर जीवन को वरदान 
कोरस :-     जीवन को वरदान 
M:-        गढ़ गंगा गढ़ मुक्तेश्वर में मुक्ति मिलती है 
अमृत सम गंगा जल से हर तृप्ति मिलती है 
कोरस :-     हर तृप्ति मिलती है 
M:-        कल कल करती छम छम बहती पहुंच गई प्रयाग 
जहाँ सरस्वती यमुना गंगा मिल के चली है साथ 
कोरस :-     मिल के चली है साथ 
M:-        एक साथ बहती है लेकिन पृथक पानी है 
ये अमर कहानी है 
बून्द बून्द में अमृत है गंगा वरदानी है ये अमर कहानी है
कोरस:-     जय पतित पावनी माँ जय वरदानी गंगा 
जय पाप नाशनी माँ जय कल्याणी गंगा 

M:-        चंद्र रथ सी इंद्र धारा सी दिवय रूप अनुपम 
यही धार प्रयाग राज का यही हुआ संगम 
कोरस:-     यही हुआ संगम 
M:-        यहाँ से गंगा चली झूमती काशी नगरी 
मोक्ष दायनी महाकाल सन्यासी की नगरी 
कोरस:-     सन्यासी की नगरी 
M:-        केंद्र बिंदु है यही धरा का जहाँ बसी काशी 
जहाँ बैठे के माला फेरे साधु सन्यासी 
कोरस:-     साधु सन्यासी 
M:-        काशी से ही एक रास्ता स्वर्ग को जाता है 
वहां पे जो भी आता है वो मुक्ति पाता है 
कोरस:-     मुक्ति पाता है 
M:-        वर्णित है वेदो के अंदर सब जग जानी है 
ये अमर कहानी है 
बून्द बून्द में अमृत है गंगा वरदानी है ये अमर कहानी है
कोरस:-     जय पतित पावनी माँ जय वरदानी गंगा 
जय पाप नाशनी माँ जय कल्याणी गंगा 

M:-        काशी की धरती को चुम के करती हुयी कल कल 
लहराती बलखाती गंगा पहुंची विंध्याचल 
कोरस:-     पहुंची विंध्याचल 
M:-        विंध्यवासिनी माँ के हर पल दर्शन करती है 
माँ के चरणों में गंगा जल अर्पण करती है 
कोरस:-     जल अर्पण करती है 
M:-        सदियों से यहाँ गंगा माता सबको रही है तार 
भव सागर बन जाती है सबके लिए पतवार 
कोरस:-     सबके लिए पतवार 
M:-        विंध्याचल को तार रही है गंगा जी की धार 
यहाँ पहुंच के पूर्ण रूप से करती है विस्तार 
कोरस:-     करती है विस्तार
M:-        विंध्याचल की नगरी लगती बड़ी सुहानी है 
ये अमर कहानी है 
बून्द बून्द में अमृत है गंगा वरदानी है ये अमर कहानी है
कोरस:-     जय पतित पावनी माँ जय वरदानी गंगा 
जय पाप नाशनी माँ जय कल्याणी गंगा 

M:-        तीव्र वेग से यहाँ निकली गंगा की धार
पहुंच गई सुलतान गंज सुलतान शिव भक्तो को तारा 
कोरस:-     शिव भक्तो को तारा
M:-        यहाँ से थोड़ी दुरी पर है बैजनाथ का धाम 
यही गंगा बैज नाथ को करे नित्य प्रणाम 
कोरस:-     करे नित्य प्रणाम 
M:-        भगवा रंग में तट रंग जाए आये जब सावन 
भोले जी के कावड़िया जब आये मन भावन 
कोरस:-     आये मन भावन 
M:-        सावन में सब यही से गंगा जल ले जाते है 
बैजनाथ के मंदिर में शिव लिंग पे चढ़ाते है
कोरस:-     लिंग पे चढ़ाते है
M:-        गंगा माँ  शिव शंकर की प्रीत पुरानी है 
ये अमर कहानी 
बून्द बून्द में अमृत है गंगा वरदानी है ये अमर कहानी है
कोरस:-     जय पतित पावनी माँ जय वरदानी गंगा 
जय पाप नाशनी माँ जय कल्याणी गंगा 

M:-        यहाँ से बन जाती है गंगा नयी नवेली सी 
प्रियतम से मिलने को चली बन के अलबेली सी 
कोरस:-     बन के अलबेली सी 
M:-        मोड़ मोड़ पे घूम रही है झूम झूम गंगा 
प्रियतम की पावन धरती को चूम चूम गंगा 
कोरस:-     चूम चूम गंगा 
M:-        स्वच्छ ह्रदय से राह निहारे लहराता सागर 
तीव्र वेग से बहने वाली हो जाती है शांत 
कोरस:-     जाती है शांत 
M:-        गोमुख से गंगा सागर तक पूर्ण हुआ वृतांत 
कथा लिखी सुखदेव ने भक्तो जो अज्ञानी है 
ये अमर कहानी है 
बून्द बून्द में अमृत है गंगा वरदानी है ये अमर कहानी है
कोरस:-     जय पतित पावनी माँ जय वरदानी गंगा 
जय पाप नाशनी माँ जय कल्याणी गंगा 

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