कैलाश पर्वत पर सब कुछ ठीक चल रहा होता है, माता पार्वती अपने पति महादेव और पुत्र गणेश के साथ ख़ुशी ख़ुशी वहाँ निवास कर रही होती हैं,,, तभी एक दिन गणेश माता पार्वती के पास जाते है और कहते है
गणेश = माता मैं कई दिनों से कैलाश पर ही विराजमान हूँ, इसलिए अब मैं पृथ्वी लोक जाना चाहता हूं और वहां का अच्छे से भ्रमण करना चाहता हूं।
माता पार्वती = ठीक है गणेश तुम जा सकते हो ।
अब गणेश जी धरती पर आते है और आने के साथ ही , घूमना शुरू कर देते है। गणेश जी यहां वहां , इधर उधर , खूब घूमते है तथा अपना मनोरंजन करते है।
कभी नदियों ने स्नान करते है तो कभी जानवरों के साथ खेलते है।
इतना सब करने के बाद गणेश जी काफी थक जाते है। उन्हें भूख लगती है। चलते चलते काफ़ी देर हो जाता है तभी उन्हें एक गन्ने का खेत दिखाई देता है।
गणेश जी गन्ने का खेत देख खुश हो जाते है और खेत में जाकर गन्ना खाने लगते है।
उनका पेट भर जाता है।
तभी वो सोचते हैं की मैंने इस खेत के मालिक से बिना पूछे ही इसका गन्ना खा लिया ।
ये तो सरासर चोरी हुई। मुझे इसकी भरपाई करनी होगी। इतना बोल वो एक बालक का रूप ले लेते है।
रूप लेने के बाद वो सीधा उस खेत के मालिक राम कुमार के पास जाते है। वहां पहुंच कर।
गणेश = सेठ जी मैं काम की तलाश में बहुत देर से भटक रहा हूं मुझे अपने यहां काम पर रख लो।
राम कुमार = तुम्हारा नाम क्या है बालक ।
गणेश जी = मेरा नाम गणेशा है ।
राम कुमार = देखो गणेशा में तुम्हें पैसे तो नहीं दे सकता हूं लेकिन में तुम्हें अपने घर पर रहने की तथा खाने की व्यवस्था हो जाएगी।
गणेशा = ठीक है सेठ जी मुझे मंजूर है।
इतना बोल के गणेशजी उसी समय से दुकान में काम करना शुरू कर देते है। वो दुकान की सफ़ाई , धूल ,कचड़ा ,गंदगी सब साफ कर देते है।
गणेशा दुकान के साथ साथ घर के कामों में भी हाथ बटाने लगा। वो सुबह सुबह सेठ जी के घर जाता और घर की सफ़ाई और पूरे घर को अच्छे से साफ कर देता।
सेठ जी , गणेशा के इस काम से काफ़ी खुश था। गणेशा के आते ही सेठ जी का व्यापार फिर से अच्छे से चलने लग गया।
एक दिन सेठानी सुबह उठने के पश्चात शौच से आती है और अपना हाथ राख से धोते है। यह पीछे गणेशा कपड़े धो रहा होता है। और देखता है की सेठानी तो केवल रख से हाथ धो रही है जो बिल्कुल सही नहीं है।
वो ये बात जाके सेठानी को बोलता है।
गणेश = सेठानी राख के साथ साथ आपको मिट्टी का भी प्रयोग करना चाहिए जिससे हाथ अच्छे से साफ़ होते है।
सेठानी = गुस्से में, अरे मूर्ख अब तू मुझे सिखाएगा की हाथ कैसे धोना है। तू केवल एक नौकर है। अभी रुक अभी तेरी शिकायत सेठ जी से करती हूं।
सेठ जी के पास जाते हुए सेठानी बोलती है
सेठानी = देख रहे हो इसे अब ये मुझे बताएगा की शौच के बाद हाथ कैसे धोते है।
सेठ जी = सेठानी तुम भी ना गणेशा एक बालक ही तो है। और बालक के बातों का बुरा नहीं मानते।
ये बोल के सेठ जी और गणेशा दोनों दुकान को तरफ चल देते है।
दुकान जाते समय सेठ जी को एक बुढ़िया मिलती है जो काफ़ी भूखी प्रतीत होती है। सेठ जी पास के ही एक दुकान से बुढ़िया के लिए खाने के लिए लेते है। और उस बुढ़िया को दे देते है। इस पूरे प्रक्रिया के दौरान सेठ जी के मन में केवल गणेश जी का ध्यान था।
परंतु उसे कहां मालूम था की उसे गणेश जी खुद उसके पास है और उसके इस अच्छे व्यवहार को देख रहे है।
इसके बाद गणेशा और सेठ जी दुकान जाते है।
दुकान जाते ही गणेशा साफ़ सफाई में लग जाता है।
और सेठ जी अपने पिछले हिसाब में लग जाते है।
सेठ जी मन ही मन सोचते है = इस महीने काफ़ी अच्छा व्यापार चला है तो मंदिर जाके भगवान को प्रसाद चढ़ाया जाए। और ब्रह्मणों को भोजन कराया जाए।
ये बोल के अलगी सुबह सेठ और सेठानी दोनों उठ कर गणेश जी की पूजा और अर्चना में लग जाते है।
इसके बाद मंदिर की ओर प्रस्थान करते है।
मंदिर पहुंचने के बाद मंदिर में पूजा करने के बाद दोनों पति पत्नी ब्राह्मणों को भोजन करते है।
ब्राह्मणों को भोजन कराते समय राम कुमार के मुख पर अलग प्रकार की तेज़ थी। और उसके मन में गणेश जी का ख्याल था।
ब्राह्मण भोजन के बाद घर की ओर लौटते समय सेठानी सेठ जी से बोलती है।
सेठानी = सेठ जी अब हमें गणेश जी की पूजा भी रखनी चाहिए ।
सेठ जी = ठीक कहती हो तुम रख लेते है
यहीं बात करते करते दोनों घर पहुंच जाते है, और पीछे गणेशा भी उनके साथ आता है, उसके पास मंदिर का सामान होता है, जो पूजा के लिए के गए थे । घर आके उसे घर के मंदिर के पास रख देता है। फिर गणेशा और राम कुमार दुकान की ओर चल देते है।
दिन बीतता जाता है और राम कुमार का व्यापार बढ़ता जाता है।
1 महीने बाद राम कुमार गणेशा जी का एक भव्य पूजा का आयोजन करता है। सारी तैयारी अच्छे से को गई थी।
राम कुमार खुद देखना चाहता था की सारी तैयारी अच्छे ढंग से तो हुई है न इसलिए वो खुद सारी तैयारी देखना गया।
जाते ही पता है की गणेश जी की मूर्ति के स्थान पर उसके घर का नौकर गणेशा बैठा है ये देख कर राम कुमार गुस्से में बोलता है
सेठ जी = गणेशा ये क्या है। तुम्हें ज्ञात नहीं की ही स्थान भगवान गणेश का है। फिर भी तुम यहां बैठे हो।
गणेशा = मैं बिलकुल सही स्थान पर बैठा हूं इतना बोलकर गणेश जी अपने असली रूप में आ जाते है।
ये देख राम कुमार और सेठानी दोनों गणेशा जी के आगे अपना शीश झुकाते है और बोलते है
सेठ जी = प्रभु क्षमा करें आप हमारे घर में आए और हमनें आपको नौकर के भांति रखा।
गणेश जी = नहीं राम कुमार मैंने तुमसे बिना पूछे तुम्हारे खेत से गन्ना खाया था, इसलिए मैंने ये सब किया।
तुम चिंता न करो तुम्हारी कोई गलती नहीं है,,,तुम्हारा व्यवहार बहुत अच्छा है । तुम्हारे घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं होगी और तुम्हारा व्यापार भी खूब आगे बढ़ेगा बोल के गणेश जी वहां से गायब हो जाते है,,,
इसके बाद सेठ जी हंसी ख़ुशी गणेश जी की भक्ति के साथ अपना व्यापार करते रहते हैं
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