गणेश चतुर्थी का महत्व (Significance of Ganesh Chaturthi)
अन्य देवी-देवताओं की कथा की तरह गणेश जी की कहानी भी बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक है। तो चलिए आज इसी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
एक बार महादेवजी स्नान करने के लिए भोगावती गए। उनके जाने के पश्चात पार्वती ने अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया और उसका नाम 'गणेश' रखा। पार्वती ने उससे कहा- हे पुत्र! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना।
वह बालक द्वार की रखवाली कर रहा होता है कि वहाँ भगवान शंकर जी आते हैं और जैसे ही वह अंदर जाने वाले थे, वह बालक उन्हें वहीं रोक देता है। भगवान शंकर जी उस बच्चे को अपने रास्ते से हटने के लिए कहते हैं लेकिन, वह बच्चा माता पार्वती के आदेश का पालन करते हुए भगवान शंकर को अंदर प्रवेश करने से रोकता है। जिससे भगवान शंकर क्रोधित हो जाते हैं, और क्रोध में अपना त्रिशूल निकाल लेते हैं, और बालक गणेश की गर्दन को धड़ से अलग कर देते हैं।
अपने बच्चे की दर्द भरी आवाज सुनकर जब माता पार्वती बाहर आती हैं तो उन्हें गणेश का कटा हुआ सिर देखकर बहुत दुखी हो जाती हैं। भगवान शंकर से कहते हैं कि वह उनके द्वारा बनाया गया बच्चा था जो उनके आदेशों का पालन कर रहे थे। और माता पार्वती ने उनसे अपने पुत्र को पुनर्जीवित करने के लिए कहा।
तब भगवान शंकर अपने सेवकों को पृथ्वी पर जाने का आदेश देते हैं की, जिस बच्चे की माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो, उस बच्चे का सिर काटकर ले आये. सेवक चले जाते हैं, उन्हें एक हाथी का बच्चा दिखाई देता है। जिसकी मां अपनी करवट लेकर सो रही है। सेवक उस हथनी के बच्चे का सिर काटकर ले आते हैं।
तब भगवान शंकर जी उस बच्चे के सिर के स्थान पर उस हाथी का सिर रखकर उसे जीवित कर देते हैं। भगवान शंकर जी उस बालक को अपने समस्त गणों का स्वामी घोषित करते हैं। तभी से गणेश का नाम गणपति पड़ा।
इसके साथ ही भगवान शंकर गणपति को ऐसा वरदान भी देते हैं कि देवताओं में सबसे पहले उनकी पूजा की जाएगी। इसलिए सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा के बिना कोई भी काम पूरा नहीं होता है।
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