Current Date: 21 Nov, 2024

Ganesh Chaturthi Vrat Katha: जानिए कैसे हुआ भगवान गणेशजी का जन्म?

- Bhajan Sangrah


Ganesh Chaturthi Vrat Katha : शास्त्रों के अनुसार बुधवार का दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए विशेष फलदायी होता है। इस बार बुधवार के दिन से 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव पर्व का शुभारंभ हो रहा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था इस कारण से हर माह में आने वाली दोनों चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की विशेष रूप से पूजा आराधना की जाती है। जब भाद्रपद माह की चतुर्थी आती है तब भगवान गणेश का जन्मोत्सव विधि-विधान और धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट में जगह-जगह गणेश पंडालों में गणपति की विशाल प्रतिमा स्थापित की जाती है और 10 दिनों तक लगातार सिद्धिदाता और विध्नहर्ता की उपासना की जाती है। भगवान गणेश की सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले पूजा की जाती है। हर शुभ काम से पहले भगवान गणेश की पूजा और ऊं गणेशाय नम: का जाप किया जाता है। गणेश उत्सव के मौके पर आइए जानते हैं गणेश जन्म कथा के बारे में।

 

ऐसे हुआ गणेशजी का जन्म

गणेश चतुर्थी की कथा के अनुसार,एक बार माता पार्वती ने स्न्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया। पार्वतीजी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे,ऐसा कहकर पार्वती जी अंदर नहाने चली गई। जब भगवान शिव वहां आए ,तो बालक ने उन्हें अंदर आने से रोका और बोले अन्दर मेरी मां नहा रही है,आप अन्दर नहीं जा सकते। शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया,कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गये। 

 

 

जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गए। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण कर लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापस जीवित करेंगे तब ही मैं यहां से चलूंगी अन्यथा नहीं। शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती जी नहीं मानी। 

 

सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वतीजी को मनाया पर वे नहीं मानी। तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाए। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह  सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीव दान दिया,साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी । इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उसमें हमें सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए,अन्यथा पूजा सफल नहीं होती। 

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