Current Date: 18 Dec, 2024

Ganesh Chaturthi 2023 | गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है | गणेश चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा

- Bhajan Sangrah


Ganesh Chaturthi 2023: देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इसकी धूम देश के कई कोनों में देखने को मिलती है. (Ganesh Chaturthi 2023 Date) इस मौके पर गणपति पंडाल सजाए जाते हैं और लोग अपने घरों में गणपति की स्थापना करते हैं. गणेश महोत्सव 10 दिनों तक चलता है और लोग अपनी सुविधा के अनुसार 3 दिन या 10 दिन के लिए गणपति को लेकर आते हैं और विधि-विधान से उनका पूजन करते हैं. (Ganesh Chaturthi 2023 Shubh Muhurat) आइए जानते हैं क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी?

गणेश चतुर्थी 2023 तिथि और शुभ मुहूर्त

गणेश स्थापना 2023 का शुभ समय 18 सितंबर को दोपहर 12:39 बजे है और 19 सितंबर को दोपहर 1:43 बजे समाप्त होगा।

क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी का त्योहार

गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और इसके पीछे एक मुख्य वजह छिपी हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन माता पार्वती के पुत्र गणेश जी का जन्म हुआ था. इसलिए भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन हर साल गणेश चतुर्थी मनाई जाती है.

इसके अलावा एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक महर्षि वेदव्यास जी ने भगवान गणेश जी से महाभारत की रचना को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की थी. जिसके बाद गणेश चतुर्थी के दिन ही व्यास जी ने श्लोक बोलना और गणेश जी ने उसे लिपिबद्ध करना शुरू किया था. बिना रूके 10 दिन तक लगातार लेखन किया और 10 दिनों में गणेश जी पर धूल-मिट्टी की परत चढ़ गई. गणेश जी इस परत को साफ करने के लिए 10वें दिन सरस्वती नदी में स्नान किया और इस चतुर्थी थी. तभी से गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है.

गणेश चतुर्थी का महत्व

अन्य देवी देवताओं के कहानी या कथा के तरह ही गणेश जी की कहानी भी काफी रोचक और प्रेरणादायी है. चलिए आज उसी के विषय में विस्तार में जानते हैं।

एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थी. तब उन्होंने द्वार पर पहरेदारी करने के लिए अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया. और उसमें प्राण डालकर एक सुन्दर बालक का रूप दे दिया. माता पार्वती, बालक को कहती हैं कि मै स्नान करने जा रही हु, तुम द्वार पर खड़े रहना और बिना मेरी आज्ञा के किसी को भी द्वार के अंदर मत आने देना. यह कहकर माता पार्वती, उस बालक को द्वार पर खड़ा करके स्नान करने चली जाती हैं।

वह बालक द्वार पर पहरेदारी कर रहा होता है कि तभी वहां पर भगवान् शंकर जी आ जाते हैं और अंदर जैसे ही अंदर जाने वाले होते तो वह बालक उनको वहीँ रोक देता है. भगवान शंकर जी उस बालक को उनके रास्ते से हटने के लिए कहते हैं लेकिन वह बालक माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए, भगवान शंकर को अंदर प्रवेश करने से रोकता है. जिसके कारण भगवान शंकर क्रोधित हो जाते हैं और क्रोध में अपनी त्रिशूल निकल कर उस बालक की गर्दन को धड़ से अलग कर देते हैं।

बालक की दर्द भरी आवाज को सुनकर जब माता पार्वती जब बहार आती है तो वो उस बालक के कटे सिर को देखकर बहुत दुखी हो जाती हैं. भगवान् शंकर को बताती है कि वो उनके द्वारा बनाया गया बालक था जो उनकी आज्ञा का पालन कर रहा था. और माता पार्वती उनसे अपने पुत्र को पुन: जीवित करने के लिए बोलती है।

फिर भगवान शंकर अपने सेवकों को आदेश देते हैं कि वो धरतीलोक पर जाये और जिस बच्चे की माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो, उस बच्चे का सिर काटकर ले आये. सेवक जाते हैं, तो उनको एक हाथी का बच्चा दिखाई देता है. जिसकी माँ उसकी तरफ पीठ करके सो रही होती है. सेवक उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आते है।

फिर भगवान् शंकर जी, उस हाथी के सिर को उस बालक के सिर स्थान पर लगाकर उसे पुनः जीवित कर देते हैं. भगवान् शंकर जी, उस बालक को अपने सभी गणों को स्वामी घोषित करते देते है. तभी से उस बालक का नाम गणपति रख दिया जाता है।

साथ ही गणपति को भगवान शंकर देवताओ में सबसे पहले उनकी पूजा होगी ऐसा वरदान भी देते हैं. इसीलिए सबसे पहले उन्ही की पूजा होती है. ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा के बिना कोई भी कार्य पूरा नहीं होता।

गणेश चतुर्थी व्रत कथा

एक बहुत गरीब बुढ़िया थी. वह दृष्टिहीन भी थीं. उसके एक बेटा और बहू थे. वह बुढ़िया नियमित रूप से गणेश जी की पूजा किया करती थी. उसकी भक्ति से खुश होकर एक दिन गणेश जी प्रकट हुए और उस बुढ़िया से बोले-

बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले.’ मैं तेरी मनोकामना पूरी करूंगा।

बुढ़िया बोलती है मुझसे तो मांगना नहीं आता. कैसे और क्या मांगू?

गणेशजी बोलते है कि अपने बेटे-बहू से पूछकर मांग ले कुछ।

फिर बुढ़िया अपने बेटे से पूछने चली जाती है. और बेटे को सारी बात बताकर पूछती है की पुत्र क्या मांगू मैं. पुत्र कहता है कि मां तू धन मांग ले. उसके बाद बहू से पूछती तो बहू नाती मांगने के लिए कहती है।

फिर बुढ़िया ने सोचा कि ये सब तो अपने-अपने मतलब की चीज़े मांगने के लिए कह रहे हैं. फिर वो अपनी पड़ोसिनों से पूछने चली जाती है, तो पड़ोसन कहती है, बुढ़िया, तू तो थोड़े दिन और जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे. तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।

बहुत सोच विचार करने के बाद बुढ़िया गणेश जी से बोली- यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें.’

यह सुनकर गणेशजी बोले- बुढ़िया मां! तुमने तो सब कुछ मांग लिया. फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा. और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो जाते है. बुढ़िया मां ने जो- जो मांगा, उनको मिल गया।

हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना।

 

गणेश चतुर्थी पूजा विधि

गणेश चतुर्थी पर सबसे पहले सुबह-सुबह नहा-धोकर लाल कपडे पहने जाते हैं क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि लाल कपडे भगवान गणेश जी को अधिक प्रिय लगते हैं. पूजा के दौरान श्री गणेश जी का मुख उत्तर या पूर्व की दिशा में रखा जाता है।

फिर पंचामृत से गणेश जी का अभिषेक किया जाता है. पंचामृत में सबसे पहले दूध से, फिर दही से, घी से, शहद से और अंत में गंगा जल से उनका अभिषेक किया जाता है. गणेश जी पर रोली और कलावा चढाया जाता है. और साथ ही सिंदूर भी चढाया जाता है।

रिद्धि-सिद्धि के रूप में दो सुपारी और पान चढ़ाए जाते हैं. फिर फल, पीला कनेर और दूब फूल चढाया जाता है. उसके बाद उनकी सबसे प्रिय मिठाई मोदक का भोग लगाया जाता है. भोग लगाने के बाद सभी लोग गणेश जी की आरती गाते है. गणेश जी के 12 नामों का और उनके मंत्रों का उच्चारण करते है।

गणेश चतुर्थी के कितने मुख्य अनुष्ठान होते हैं और क्या हैं, साथ में इन्हें कैसे किया जाता है?

गणेश चतुर्थी के मुख्य रूप से चार अनुष्ठान होते हैं।

प्राणप्रतिष्ठा – इस प्रक्रिया में भगवान (deity) को मूर्ति में स्थापित किया जाता है।

षडोपचार – इस प्रक्रिया में 16 forms (सोलह रूप) में गणेश जी को श्रधांजलि अर्पित किया जाता है।

उत्तरपूजा – यह एक ऐसी पूजा है जिसके करने के उपरांत मूर्ति को को कहीं भी ले जाया जा सकता है एक बार भगवान को स्थापित कर दिया जाये उसमें तब।

गणपति विसर्जन – इस प्रक्रिया में मूर्ति को नदी या किसी पानी वाले स्थान में विसर्जित किया जाता है।

गणेश चतुर्थी कब मनायी जाती है?

गणेश चतुर्थी भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष को चतुर्थी में मनाई जाती है, जो आमतौर पर अगस्त और सितंबर के बीच आती है. यह त्यौहार हिंदुओं द्वारा बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी के दिन लोग अपने घर में भगवान गणेश की मूर्ति लाते हैं और 10 दिनों तक पूजा करते हैं और 11 वें दिन बड़ी धूम धाम से गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन करते है।

जब तक गणेश जी का मूर्ति का स्थापन रहता है तब तक रोज़ उन्हे स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग लगाया जाता है, तथा रोज धार्मिक मंत्र का उच्चारण करके उनकी पूजा अर्चना की जाती है. भक्त, गणेश जी भगवान से अपनें जीवन में सुख समृद्धि और शांति के लिए कामना करते हैं।

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