गणेश अमृतवाणी
गणपति नाम की सुधा निराली सुख और शांति देने वाली रोम रोम में इसे रमा लो तन मन अमृत रूप बना लो
गज मुख धारी हर्ष का दाता यही विधि है यही विधाता शरना गत का सदा सहायक इसका मनन बड़ा फल दायक
सर्व व्यापक घट घट वासी अजर अमर है यह अविनाशी जो जन इसके महिमा गाता उसको कंही कोई विघ्न नहीं आता
रिद्धि सिद्धि बुद्धि का स्वामी भक्तो का रक्षक अंतर्यामी तोंद में साप कमर बंद जिसकी सारे ही देव उपासक इसके
जिसके मुकुट में मनिया जमी है द्वार पे झुक के परिया खड़ी है ऐसे इस्वर के पग पकड़ो करो समर्पण कभी ना झगड़ो
भय नाशक ये चार भुजा धारी इसका आरा तन सुख कारी अंतर घर में इसे बसा ना हर पल इसका ध्यान लगाना
बड़ा ही दयालु शिव का बालक सारी सृस्टि का संचालक कमर पे बाँध पीतांबर बैठा थामे धरती अंबर बैठा
चिंता मणि हर चिंता हर्ता चिंतक के भंडार है भरता करुणा सिंधु सिद्धि विनायक देवो के रक्षक यह गण नायक
महा प्रतापी यह बल साली जगत की विपदा इसने टाली ऐसे देव से हर दुःख कहना पद पंकज पे झुके ही रहना
विद्ध कला की खान ना भूलो मुषक ध्वज भगवन ना भूलो जो जन इसमें खो जायेगा यह भी उसीका हो जायेगा
पालन पोषण जगत का करता गज उद्देश श्रध्दा लगन से मांग लो इसका परम आशीष
आशुतोष भगवान् का प्यारा गिरिजा माँ की आँख का तारा कार्तिक जी का भूतक भैय्या भक्त जनो की तारे नैय्या
मृत्यु मन से व्याकुल मनवा इसकी लागली यदि लगनवा यम का उसपे वार ना चलता अभय दान है उसको मिलता
बुद्धि रूप तराजू लेकर ज्ञान बाटकर पलड़े होकर अंतर् मन की पट तुम खोलो पुन्य पाप को फिर तुम तोलो
बुरा भला तब जानो गए तुम खोटा खरा पहचानो गे तुम गणपति भजन में खो जाओ गे माट्टी से सोना हो जाओगे
कर के भवानी लाल अर्चन मन से करो इस मन का वंदन कहा मिलेंगे भवन न्यारे जिनमे रहते देवता सारे
उन देवों का नाथ गजानन, झुक कर करना तुम अभिनंदन, रखेंगे सिर पे हाथ तुम्हारे ,रहेंगे सदा ही साथ तुम्हारे, महा तपस्वी है महायोगी ,यहां पे इसकी पूजा होगी, विघ्न वहां पे आए कभी ना, दुख की छाया छाए कभी ना करुणा इसकी मंगल करती, तभी कहाये मंगलमूर्ति, सुख संतोष हर्ष का दाता ,जहां पुकारो वहीं पर आता ,सीम नाग संतान है इसकी, लीला बड़ी महान है इसकी ,इस की मूरत जिसको भाए, हानी उसके निकट ना आए, हिमगिरी नंदन मा महामाया जिसने इसको गोद खिलाया , दिव्य गुणों का यह महासागर, कोई ना जग में इसके बराबर ,पास है यह कहीं दूर नहीं है, दाता है मजबूर नहीं है, इस की शरण में जो आएंगे, विश्व का वैभव पा जाएंगे, गुण गाकर गणराज की, तू सच्चा सुख भोग ,चिंता मिटती चिंतन से, सुमिरन है तो सुख
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