कौन है खाटूश्यामजी : खाटू श्यामजी भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार हैं। महाभारत के भीम के पुत्र घटोत्कच और घटोत्कच के पुत्र बर्बरिक थे। बर्बरीक को ही बाबा खाटू श्याम कहते हैं। इनकी माता का नाम हिडिम्बा है।
चलिए जानते है की वो अन्य 11 नाम क्या हैं जिनसे हम खाटू नरेश को बुलाते है और उन नामों के पीछे का कारण क्या है |
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बर्बरीक
महाभारत के समय अत्यधिक बलवान गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह नाग कन्या मौरवी या मौर्वी से हुआ था। घटोत्कच और मौरवी की संतान बर्बरीक हुई। जो आगे चलकर श्याम के नाम से प्रसिद्ध हुए।
मोर्वी नंदन
मौर्वी (कामनकंता) की संतान होने के कारण बर्बरीक यानि श्याम बाबा को मौरवी नंदन या मौर्वी नंदन कहा जाता है। खाटू श्याम मेले के दौरान मौर्वी नंदन के जैकार खूब गूंजते है।
तीन बाण धारी
बर्बरीक अपने दादा और पिता की तरह वीर यौद्धा थे। वीर बर्बरीक के पास तीन बाण ऐसे थे जिससे वे संपूर्ण ब्रह्माण्ड को जीत सकते थे। इस लिए श्याम बाबा को तीन बाणधारी कहा जाता है। उनके जैसा संपूर्ण लोक में को धनुर्धर न तो था और न ही आज तक हुआ है।
शीश के दानी
महाभारत युद्ध के दौरान जब बर्बरीक अपनी मां से आशिर्वाद लेने पहुंचे तब मां ने उनसे हारे पक्ष का साथ देने का वचन लिया। यानि जिसकी युद्ध में हार होगी, वे उसकी तरफ से लड़ेंगे। भगवान श्रीकृष्ण सर्वव्यापी थे। उन्होंने पता था कि हार कौरवों की होनी है, ऐसे में बर्बरीक उनकी तरफ से युद्ध लड़ेंगे तो स्थिति बदल सकती है। ऐसे में उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण किया और फिर शीश मांग लिया। बर्बरीक ने अपना शीश दान कर दिया। इस कारण श्याम बाबा को शीश का दानी कहा जाता है।
श्रीश्याम
श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान मांगने की वजह भी बताई। उन्होंने कहा कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है। इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अन्त तक युद्ध देखने और अपना नाम उन्हें देने की प्रार्थना की। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया।साथ ही अपना नाम श्याम भी उन्हें दिया।
कलियुग के अवतारी
भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें श्याम नाम देने के साथ ही यह भी वरदान दिया कि वे कलियुग में पूजे जाएंगे। इसलिए उन्हें कलियुग का अवतारी भी कहा जाता है। अभी कलियुग चल रहा है और ऐसे में श्याम बाबा भक्तों की आस्था के केंद्र है। हर साल लाखों की संख्या में भक्त बाबा के दरबार में आकर हाजिरी लगाते है।
लीले का अश्वार
श्याम बाबा को लीले का अश्वार कहा जाता है। दरअसल, वीर बर्बरीक के पास नीले रंग का घोड़ा था। नीले रंग को स्थानीय भाषा में लीला भी कहा जाता है। इस लिए उन्हें नीले के अश्वार या लीले के अश्वार कहा जाता है।
लखदातार
श्याम बाबा की महिमा निराली है। कहा जाता है कि जिस पर श्याम बाबा की कृपा होती है, वह हर तरह से संपन्न हो जाता है। इस मान्यता के चलते श्याम बाबा को लखदातार कहा जाता है। यहीं वजह है कि श्याम बाबा के भक्तों में जहां सामान्य व्यक्ति भी है तो अमीर से अमीर। श्याम जी के मेले में पश्चिम बंगाल, आसाम, महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात आदि से बड़ी संख्या में भक्त आते है।
हारे का सहारा
जब सब जगह से निराश व्यक्ति श्याम बाबा की भक्ति में लीन हो जाता है तो उसके समस्त दुख और पाप समाप्त हो जाते है। इसलिए श्याम बाबा को हारे का सहारा कहा जाता है।
खाटू नरेश
श्याम बाबा खाटू के शासक है। इसलिए उन्हें खाटू नरेश कहते है।
मोरछड़ी धारक
श्याम बाबा को चूंकि भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त है। इसलिए श्रीकृष्ण की प्रिय वस्तु मोरपंखी, बांसुरी भी उनको प्रिय है। मोरछड़ी रखने के कारण उन्हें मोरछड़ी धारक कहा जाता है।
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