1.
F:- गणपति गौरी शारदा उमा शमभू धर ध्यान श्री दुर्गा महिमा कहु मात करे कल्याण
श्रद्धा और स्वर को करे सिद्ध मात जगदम्ब पग पग पलते है हमे माँ सच्चा अविललम्ब
यु तो आदि अनंत है निराकार अविकार पर भक्तो के कार्यहित माँ होती साकार
माँ के नाम अनंत है रूप अनंत अपार जिनके सुमिरन मात्र से नर होता भव पार
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
2.
F:- आदि शक्ति जग जननी भवानी जगदम्बा माता महारानी
सबका सब दुःख हरने वाली सबका मंगल करने वाली
भक्तो पर जब जब दुःख आये विनती माँ को जाए सुनाये
तब तब जगदम्बा महारानी होती प्रकट दया की खानी
मासा कार स्वरूप में आती भक्तो का हर कष्ट हटाती
असुरो का संघार वो करती भक्तो पर उपकार वो करती
रूद्र विशाल स्वरूप बनके सारे रूद्र रूप बनाके
दोष पाप सब के वो हरती सबकी खली झोली भर्ती
माँ की महिमा प्रेम से कहे सुने जो कोय
जग का कोई दुःख उसे जीवन भर ना होय
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
3.
F:- महिसासुर से हारकर देव हुए पद हिन्
त्राहि त्राहि करने लगे होकर कातर दिन
ब्रम्हा विष्णु सुरेश शिव सभी जुटे एक साथ
परन्तु क्रोध से तन गए सबके भृकुटि माथ
तीनो देव के तेज से निकला तेज अपार
हुआ पर्वत बाह कर परबत दिन अपार
नारी रूप में ढल गया स्वर्णिम रूप अनूप
महिष मर्दिनी का बना जो साकार स्वरूप
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
4.
F:- नित्य स्वरूप चार भुज धारी करती है माँ शेर सवारी
अष्ट भुजा भी रूप है माँ का वानन करती सारे जहां का
अठरा भुज धारिणी माता सकल विश्व प्रिय कारिणी माता
यही अनंत भुजा मुख वाली दुष्ट नाशिनी चंडी काली
नाम अनंत अनंत स्वरूपा आदि अनंता अजा अनूपा
कोण तुम्हारी महिमा जाने किस्मे क्षमता है जो बखाने
महिमा अगम अथाह तुम्हारी क्या जाने मूरख नर नारी
नत मस्तक हो जो गुण गाये सारे सुख यश वैभव पाए
सच्ची श्रद्धा भाव से नमन करे जो कोई
उसके जीवन में कभी कोई दुःख ना होये
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
5.
F:- सब देवो के तेज से निकला तेज अपार
तेज मिलके कर दिया देवी को साकार
नाना रत्ना भूषणो से करके श्रृंगार
जगदम्बा दुर्गामाता शेर पे हुई सवार
सतरह भुज ने है किये ाष्ट्र शस्त्र संघार
माता करने चल पड़ी भक्तो का कल्याण
महिषासुर से मात ने किया घोर संग्राम
फिर उससे संघार कर दे दिया अपना धाम
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
6.
F:- जब जब भक्तो पे दुःख आये माता सारे कष्ट मिटाये
त्रिपुर सुंदरी माता रानी होती प्रकट दया की खानी
हर दानव राक्षश को मारे देव मनुज के काम सवारे
सृष्टि का अकार है माता निराकार साकार है माता
भेद तुम्हारा वेद ना जाने ऋषि मुनि देव सभी तुम्हे माने
निति निति कह वेद पुकारे महिमा भेद अपार तुम्हारी
तीनो लोक में रहती छाया जाने कोण तुम्हारी माया
ज्ञानी धनि ध्यान लगाते फिर भी कोई पार ना पाते
माँ जगदम्बा का कही कोई आदि ना अनंत
चरणों में वंदन करे देव मुनि मनुज संत
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
7.
F:- महिसासुर का कर दिया माँ ने जब संघार
तीनो लोक चौदह उपवन छाया हरष अपार
देव सभी हर्षित हुए पा अपना अधिकार
हाथ जोड़ मस्तक झुका करने लगे जैकार
फिर से त्रिभुवन में बही सुख शांति की बहार
सबके सारे दुःख कटे सुखी हुआ संसार
राक्षश का वध कर दिया हो गया फिर कलयाण
हो प्रसन्न माँ ने दिया देवो को वरदान
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
8.
F:- त्रिपुर सुंदरी आदि बह्वानी सब तुमसे ही मातारानी
तू ही सरस्वती रूप बनती तू ही सबको विद्या सिखाती
देती दान ज्ञान का सबको सच्ची रह दिखती जग को
भले बुरे का धान कराती सबको मुक्ति की राह दिखाती
नाम शारदा श्वेत स्वरूपा विणा धारिणी विद्या रूपा
श्वेत कमल पर वासन धारी तीनो लोक में ज्ञान प्रसारिणी
धवल वस्त्र धारिणी जगदम्बा विद्या रूपी ज्ञान अवलम्बा
श्वेत हंस वाहन है तुम्हारा तुमसे बहे ज्ञान की धारा
सच्चा विशवास श्रद्धा से करे तुम्हारा ध्यान
तीनो लोक में हो उसका कल्याण
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
9.
F:- शुम्भ निशुम्भ का जप बढ़ा पाप और अत्याचार
माँ से फिर करने लगे सारे देव पुकार आदि शक्ति फिर से हुई
पर्वत पर साकार सुरहित करने को चली असुरो का संघार
चंद मुंड का वध किया धर चंडी का रूप चामुंडा माता बानी अद्भुत रूप अनूप
बन विकराल काली किया रक्तबीज संघार वधि धूम्रलोचन सहित असुर संख्य अपार
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
10
F:- दुष्टो के लिए भवानी भको के लिए है वरदानी
नाना रूप धरे है भवानी जगदम्बा त्रिभुवन बन हारी
सद्गुण का प्रकाश तुम देती तमगुण का तम तुम हर लेती
सदाचार संस्कार सिखाती मानव को तुम देव बनाती तुम ही सत्य विचार बढाती
देव विवेक सद्भाव जगाती विद्या विनय तुम्ही से आये भक्त तुम्ही से सब कुछ पाए
माया बन तुम्ही भरमाती तुम ही सच्ची राह दिखाती तुम ही पालन पोषण करती
तुम ही सबका रक्षण करती ब्रम्हाणी के रूप में उपजा हो संसार
एक तुम्ही हो अम्बिके सबके सर छन हात
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
11.
F:- जब जब बढे अधर्म और फैले पाप अचार तब तब माँ साकार हो करे धर्म उपकार
महा लक्ष्मी के रूप धान वैभव दे अपार करुणा कृपा दया से माँ सुखी रखे संसार
महाकाली के रूप में काटे दोष वो पाप रोग शोक को नष्ट करे हरी मोह संताप
महा सरस्वती रूप में दे बुद्धि विद्या दान भोग मोक्ष पाए मनुज हो आदम कल्याण
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
12.
F:- तीन देवियो में तुम नामी सागर बारम्बार नमामि सरस्वती वाघेश्वरी माता
वेद की जननी ज्ञान प्रकार ईश्वर में था नाम तुम्हारे भव सागर से तारण हारे
बीज मंत्र है रहे तुम्हारा जपने से दुःख जितने भी है जप तप साधन
मंत्र हवं पूजन आराधन सबको मिले निदान तुम्ही से सबका सच्चा ज्ञान तुम्ही से
अनुज वीनू का भेद बताती जड़ को तुम्ही प्रबुद्ध बनाती जीवन धारा तुम्ही से बनाती
भोग मोक्ष की राह दिखाती अनुज नुज भले बुरे का तुम देती ज्ञान
ज्ञान दान से करती हो जीवो का कल्याण
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
13.
F:- माँ हर जिव को पालती निज संतान समान माँ ही नाना रू प में करे जगत कल्याण
सदा झुकाये प्रेम से जो चरणों में माथ सुख यश पाए शीश पे रहे मात का हाथ
उमा रमा राधा सिया सब उसके ही नाम माँ जगदम्बा को सदा बारम्बार प्रणाम
शीश झुका कर जोड़कर धरे जो पग पर शीश जिसके शीश रहे सदा माता का आशीष
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
14.
F:- दुर्गा दुर्गति नाशिनी माता तीन रूप है जग विख्याता महासरस्वती और महाकाली
महालक्ष्मी जग की प्रति पाली राक्षश जब उत्पात मचाते
और देवो संतो को सताते तब निज भक्तो की प्रतिपाली माँ बन जाती चंडी काली
उग्र रूप अकार बनाकर माँ जगदम्बा क्रोध में आकर रूप विशाल भयंकर भरती
असुरो का संघार है करती बन चामुंडा काली माता फल संघारिणी दूष्टिनि माता
भर हुंकार असुर संघारे सुर नर मुनि के काज सवारे तीन रूप ले अम्बिका
तीन लोक किम का माँ बनकर हर देव को सदा रही है पाल
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
15.
F:- नवदुर्गा का रूप ले धरती पर उपकार भक्तो का पालन करे असुरो का संघार
शैल सुता शिव भाविनी पारवती शुभ नाम नाम लेत बन जात है सारे बिगड़े काम
कार्तिकेय गणराज की जननी तुम ही मात हम बच्चो के शीश पर भीमा रखो हाथ
जैसे क्षण मुख गज मुख का करते साज सवार वैसे हमको भी मिले ममता कृपा दुलार
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
16.
F:- सभी शक्तिया रूप तुम्हारा तुमसे ही संसार ये सारा तुम ही अगणित रूप बनाती
तुम ही साडी सृष्टि चलाती तुम्ही कोशिकी तुम्ही शिवानी सती उमा तुम ही रुद्राणी
तुम शिव के वामांग विराजो और तुम्ही अर्धांग भी साजो खप्पर खड़िग कृपाल उठाये
घटा सी जटा लाटा बिखराये अट्ट हास कर भयो उपजाए खाल कोई भी निकट ना आये
मुंडो की मला उर्धारि नख से खल के शीश उखारि काल ज्वाल से त्रिप निकाली
राक्षश बन जाये तेरे निवाली सृष्टि की सारी देवियाँ सृष्टि के सारे देव हाथ जोड़ करते सदा
तब चरणों की सेव जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
असुरो के संघार को धरती रूप विशाल पल में पालनहारिणी से बन जाते काज
करे अनीति अधर्म और करे जो पापाचार पल भर में करती है तू उन सबका संघार
भक्तो के लिए पालिनी दुष्टो के लिए काल तू धारण किये घूमती नर मुंडो के माल
जो भी शरण गहे तेरी वो निर्भय हो जाए तेरी छाया में रहे और सारे सुख पाए
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
17.
F:- तू निर्भय हो भुवन में विचरती सारी सृष्टि की रक्षा करती सुर नर मुनि जो संत है सारे
निर्भय हो सब तेरे सहारे दुष्टो का तू भक्षण करती और देवो का रक्षण करती जिसको शरण तेरी मिल जाये वो सबसे निर्भय हो जाए रूप तामसी शिव कारी पर उपकारी आनंद करि चिंता दोष पाप भय हारी सब दुखहारी मंगलकारी जिसके शीश हो हाथ तुम्हारा उसके हाथ में है जग सारा माता जिसको तू अपनाये सारा जग उसका हो जाए महाकाली के रूप का ध्यान धरे जो कोई उसे त्रिजाकजयः काल में कोई भय ना होये
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
18.
F:- सबका मूल स्वरूप जो और सबका आधार उस महालक्ष्मी रूप को वंदन बारम्बार वही सज्जन पालन करे वही करे संघार एक उसी महाशक्ति से चले सकल संसार जब ब्रम्हांड में सृष्टि का माता करे संघार घर के नाना रूप व् हो जाये साकार सब माँ से उत्पन्न हो सब माँ में मिल जाए माँ ही सारी सृष्टि का शाशन रही चलाये
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
19.
F:- महालक्ष्मी आधार स्वरूपा अमित नाम गुण भेद अनूपा एक ही तीन रूप में आये पल भर में ब्रम्हांड रचाये तीन गुणों की एक ही स्वामिनी आप स्वरूपा निज अनुगामिनी वेद शास्त्र का सार यही है सृष्टि का आधार यही है ब्रम्हा विष्णु महेश रचाये यही सृष्टि का काम रचाये आराम शक्ति बन जगत रचाती सारे जीवो को प्रगटाती विष्णु शक्ति बन पालन करती जिव जिव का पेट ये भरती शम्भु शक्ति बन जिव संघारी नए सृजन की राह सवारे देवी देव त्रिदेव सब माँ को करे प्रणाम माँ की दया कृपा से ही चलता सबका काम
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
20.
F:- सबसे ऊँची दुक में करती सदा निवास पर माँ अपने भक्त की रहती हर दम पास कोटि सूर्य से भी प्रखर माँ का तेज अनूप आगम निगम ना कह सके माँ का अनुपम रूप शरद शेषन कह सके ना पुराण ना वेद माँ जिस पर करुणा करे वो ही जाने भेद उसके जैसी बस वही दूजा और ना कोई सब है उसके हाथ वो जो चाहे सो होय
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
21
F:- तीनो लोक में शोभा पाए त्रिपुर सुंदरी यही कहाये सती उमा पारवती यही है लक्ष्मी रमा श्रीमती यही है नवदुर्गा का रूप बनाती असुरो से संसार बचाती बस विद्या का रूप यही है आदि अनंत अनूप यही है नाम अनंत अपार है इसके अति असंख्य अकार है इसके अगणित गुण महिमा की धारी सबसे अद्भुत सबसे न्यारी माँ के जैसा और ना कोई इसी से कभी शंका नहीं होई कोई इस का भेद ना पाया इसमें सारा जगत समाया कण कण माता मेहै और कण कण में है माँ माँ जैसा ब्रम्हांड में दूजा कोई कहा
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
22.
F:- दुर्गा दुर्गति नाशिनी परम शक्ति का धाम चरणों में जगदम्बिके बारम्बार प्रणाम
अष्ट भुजा जगदम्बिका सबके प्राणहार माँ हर जिव पे वरती ममता कृपा और दुलार
तजके आस भरोसा सब माँ का वर्च सुनाये पल भर में हर काम को मैया देती बनाये
चरण शरण में आ बसों ले श्रद्धा विशवास बिन बोले पूरी करे माता सबकी आस
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
23.
F:- और कही मन कोना लगाओ सीधे माँ की शरण में आओ जो मांगोगे वह वो देगी
रोग दोष भय वो हर लेगी दुःख रोग और दोष मिटेंगे सुख समृद्धि के फूल खिलेंगे
माता जिसको शरण लगाए उसका जन्म सफल हो जाए दुर्गा हर दुर्गति की नाशिनी
कष्ट विनाशिनी भाग्य प्रकाशिनि सिंह सवारी माँ जगदम्बा सारे जग की एक अवलम्बा
बालक बन जो माँ को पुकारे माँ उसका हर काम सवारे माँ की गुण यश महिमा गाओ
यश वैभव सुख सम्पति पाओ श्रद्धा और विश्वास से धरे मात का ध्यान माँ उसका पालन करे निज संतान समान
कोरस :- जय जय अम्बे माँ जय जगदम्बे माँ
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