दुर्गा अमृतवाणी(Durga Amritwani)
मंगलमयी भय मोचिनी दुर्गा सुख की खान
जिसके चरणों की सुधा स्वयं पिये भगवान
दुःखनाशक संजीवनी नवदुर्गा का पाठ
जिससे बनता भिक्षुक भी दुनिया का सम्राट
अम्बा दिव्या स्वरूपिणी का ऐसो प्रकाश
पृथ्वी जिससे ज्योतिर्मय उज्जव्वल है आकाश
दुर्गा परम सनातनी जग की सृजनहार
आदि भवानी महादेवी सृष्टि का आधार
जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ
सदमार्ग प्रदर्शनी न्यान का ये उपदेश
मन से करता जो मनन उसके कटे कलेश
जो भी विपत्ति काल में करे दुर्गा जाप
पूर्ण हो मनोकामना भागे दुःख संताप
उत्पन्न करता विश्व की शक्ति अपरम्पार
इसका अर्चन जो करे भव से उतरे पार
दुर्गा शोकविनाशिनी ममता का है रूप
सती साध्वी सतवंती सुख की कला अनूप
जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ
विष्णु ब्रह्मा रूद्र भी दुर्गा के है अधीन
बुद्धि विद्या वरदानी सर्वसिद्धि प्रवीण
लाख चौरासी योनियां से ये मुक्ति दे
महामाया जगदम्बिके जब भी दया करे
दुर्गा दुर्गति नाशिनी सिंघवाहिनी सुखकार
वेदमाता ये गायत्री सबकी पालनहार
सदा सुरक्षित वो जन है जिस पर माँ का हाथ
विकट डगरिया पे उसकी कभी ना बिगड़े बात
जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ
महागौरी वरदायिनी मैया दुःख निदान
शिवदूती ब्रह्मचारिणी करती जग कल्याण
संकटहरणी भगवती की तू माला फेर
चिंता सकल मिटाएगी घडी लगे ना देर
पारस चरणन दुर्गा के जग जग माथा टेक
सोना लोहे को करे अद्भुत कौतक देख
भवतारक परमेश्वरि लीला करे अनंत
इसके वंदन भजन से पापो का हो अंत
जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ
जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ
जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ
जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ
दुर्गा माँ दुःख हरने वाली
मंगल मंगल करने वाली
भय के सर्प को मारने वाली
भवनिधि से जग तारने वाली
अत्याचार पाखंड की दमिनी
वेद पुराणों की ये जननी
दैत्य भी अभिमान के मारे
दीन हीन के काज संवारे
सर्वकलाओं की ये मालिक
शरणागत धनहीन की पालक
इच्छित वर प्रदान है करती
हर मुश्किल आसान है करती
भ्रामरी हो हर भ्रम मिटावे
कण-कण भीतर कजा दिखावे
करे असम्भव को ये सम्भव
धन धान्य और देती वैभव
महासिद्धि महायोगिनी माता
महिषासुर की मर्दिनी माता
पूरी करे हर मन की आशा
जग है इसका खेल तमाशा
जय दुर्गा जय-जय दमयंती
जीवन-दायिनी ये ही जयन्ती
ये ही सावित्री ये कौमारी
महाविद्या ये पर उपकारी
सिद्ध मनोरथ सबके करती
भक्त जनों के संकट हरती
विष को अमृत करती पल में
यही तारती पत्थर जल में
इसकी करुणा जब है होती
माटी का कण बनता मोती
पतझड़ में ये फूल खिलावे
अंधियारे में जोत जलावे
वेदों में वर्णित महिमा इसकी
ऐसी शोभा और है किसकी
ये नारायणी ये ही ज्वाला
जपिए इसके नाम की माला
ये ही है सुखेश्वरी माता
इसका वंदन करे विधाता
पग-पंकज की धूलि चंदन
इसका देव करे अभिनंदन
जगदम्बा जगदीश्वरी दुर्गा दयानिधान
इसकी करुणा से बने निर्धन भी धनवान
छिन्नमस्ता जब रंग दिखावे
भाग्यहीन के भाग्य जगावे
सिद्धि दात्री आदि भवानी
इसको सेवत है ब्रह्मज्ञानी
शैल-सुता माँ शक्तिशाला
इसका हर एक खेल निराला
जिस पर होवे अनुग्रह इसका
कभी अमंगल हो ना उसका
इसकी दया के पंख लगाकर
अम्बर छूते है कई जाकर
राय को ये ही पर्वत करती
गागर में है सागर भरती
इसके कब्जे जग का सब है
शक्ति के बिना शिव भी शव है
शक्ति ही है शिव की माया
शक्ति ने ब्रह्मांड रचाया
इस शक्ति का साधक बनना
निष्ठावान उपासक बनना
कुष्मांडा भी नाम इसका
कण-कण में है धाम इसका
दुर्गा माँ प्रकाश स्वरूपा
जप-तप ज्ञान तपस्या रूपा
मन में ज्योत जला लो इसकी
साची लगन लगा लो इसकी
कालरात्रि ये महामाया
श्रीधर के सिर इसकी छाया
इसकी ममता पावन झुला
इसको ध्यानु भक्त ना भुला
इसका चिंतन चिंता हरता
भक्तो के भंडार है भरता
साँसों का सुरमंडल छेड़ो
नवदुर्गा से मुंह न मोड़ो
चन्द्रघंटा कात्यानी
महादयालू महाशिवानी
इसकी भक्ति कष्ट निवारे
भवसिंधु से पार उतारे
अगम अनंत अगोचर मैया
शीतल मधुकर इसकी छैया
सृष्टि का है मूल भवानी
इसे कभी न भूलो प्राणी
दुर्गा माँ प्रकाश स्वरूपा
जप तप ज्ञान तपस्या रूपा
मन में ज्योत जला लो इसकी
साची लगन लगा लो इसकी
दुर्गा की कर साधना, मन में रख विश्वास
जो मांगोगे पाओगे क्या नहीं मेरी माँ के पास
खड्ग-धारिणी हो जब आई
काल रूप महा-काली कहाई
शुम्भ निशुम्भ को मार गिराया
देवों को भय-मुक्त बनाया
अग्निशिखा से हुई सुशोभित
सूरज की भाँती प्रकाशित
युद्ध-भूमि में कला दिखाई
दानव बोले त्राहि-त्राहि
करे जो इसका जाप निरंतर
चले ना उस पर टोना मंत्र
शुभ-अशुभ सब इसकी माया
किसी ने इसका पार ना पाया
इसकी भक्ति जाए ना निष्फल
मुश्किल को ये डाले मुश्किल
कष्टों को हर लेने वाली
अभयदान वर देने वाली
धन लक्ष्मी हो जब आती
कंगाली है मुंह छुपाती
चारों और छाए खुशाहली
नजर ना आये फिर बदहाली
कल्पतरु है महिमा इसकी
कैसे करू मै उपमा इसकी
फल दायिनी है भक्ति जिसकी
सबसे न्यारी शक्ति उसकी
अन्नपूर्णा अन्न-धनं को देती
सुख के लाखों साधन देती
प्रजा-पालक इसे ध्याते
नर-नारायण भी गुण गाते
चम्पाकली सी छवि मनोहर
इसकी दया से धर्म धरोहर
त्रिभुवन की स्वामिनी ये है
योगमाया गजदामिनी ये है
रक्तदन्ता भी इसे है कहते
चोर निशाचर दानव डरते
जब ये अमृत-रस बरसावे
मृत्युलोक का भय ना आवे
काल के बंधन तोड़े पल में
सांस की डोरी जोड़े पल में
ये शाकम्भरी माँ सुखदायी
जहां पुकारू वहां सहाई
विंध्यवासिनी नाम से,करे जो निशदिन याद
उसे ग्रह में गूंजता, हर्ष का सुरमय नाद
ये चामुण्डा चण्ड-मुण्ड घाती
निर्धन के सिर ताज सजाती
चरण-शरण में जो कोई जाए
विपदा उसके निकट ना आये
चिंतपूर्णी चिंता है हरती
अन्न-धनं के भंडारे भरती
आदि-अनादि विधि विधाना
इसकी मुट्ठी में है जमाना
रोली कुम -कुम चन्दन टीका
जिसके सम्मुख सूरज फीका
ऋतुराज भी इसका चाकर
करे आराधना पुष्प चढ़ाकर
इंद्र देवता भवन धुलावे
नारद वीणा यहाँ बजावे
तीन लोक में इसकी पूजा
माँ के सम न कोई भी दूजा
ये ही वैष्णो आदिकुमारी
भक्तन की पत राखनहारी
भैरव का वध करने वाली
खण्डा हाथ पकड़ने वाली
ये करुणा का न्यारा मोती
रूप अनेकों एक है ज्योति
माँ वज्रेश्वरी कांगड़ा वाली
खाली जाए ना कोई सवाली
ये नरसिंही ये वाराही
नेहमत देती ये मनचाही
सुख समृद्धि दान है करती
सबका ये कल्याण है करती
मयूर कही है वाहन इसका
करते ऋषि आहवान इसका
मीठी है ये सुगंध पवन में
इसकी मूरत राखो मन में
नैना देवी रंग इसी का
पतितपावन अंग इसी का
भक्तो के दुःख लेती ये है
नैनो को सुख देती ये है
नैनन में जो इसे बसाते
बिन मांगे ही सब कुछ पाते
शक्ति का ये सागर गहरा
दे बजरंगी द्वार पे पहरा
इसके रूप अनूप की, समता करे ना कोय
पूजे चरण-सरोज जो, तन मन शीतल होय
कालीका रूप में लीला करती
सभी बलाएं इससे डरती
कही पे है ये शांत स्वरूपा
अनुपम देवी अति अनूपा
अर्चना करना एकाग्र मन से
रोग हरे धनवंतरी बन के
चरणपादुका मस्तक धर लो
निष्ठा लगन से सेवा कर लो
मनन करे जो मनसा माँ का
गौरव उत्तम पाय जवाका
मन से मनसा-मनसा जपना
पूरा होगा हर इक सपना
ज्वाला-मुखी का दर्शन कीजो
भय से मुक्ति का वर लीजो
ज्योति यहाँ अखण्ड हो जलती
जो है अमावस पूनम करती
श्रद्धा -भाव को कम ना करना
दुःख में हंसना गम ना करना
घट-घट की माँ जाननहारी
हर लेती सब पीड़ा तुम्हारी
बगलामुखी के द्वारे जाना
मनवांछित ही वैभव पाना
उसी की माया हंसना रोना
उससे बेमुख कभी ना होना
शीतल-शीतल रस की धारा
कर देगी कल्याण तुम्हारा
धुनी वहां पे रमाये रखना
मन से अलख जगाये रखना
भजन करो कामाख्या जी का
धाम है जो माँ पार्वती का
सिद्ध माता सिद्धेश्वरी है
राजरानी राजेश्वरी है
धूप दीप से उसे मनाना
श्यामा गौरी रटते जाना
उकिनी देवी को जिसने आराधा
दूर हुई हर पथ की बाधा
नंदा देवी माँ जो ध्याओगे
सच्चा आनंद वही पाओगे
कौशिकी माता जी का द्वारा
देगा तुझको सदा सहारा
हरसिद्धि के ध्यान में, जाओंगे जब खो
सिद्ध मनोरथ सब तुम्हरे, पल में जायेंगे हो
महालक्ष्मी को पूजते रहियो
धन सम्पत्ति पाते ही रहिओ
घर में सच्चा सुख बरसेगा
भोजन को ना कोई तरसेगा
जिव्ह्दानी करते जो चिंतन
छुट जायेंगे यम के बंधन
महाविद्या की करना सेवा
ज्ञान ध्यान का पाओगे मेवा
अर्बुदा माँ का द्वार निराला
पल में खोले भाग्य का ताला
सुमिरन उसका फलदायक
कठिन समय में होए सहायक
त्रिपुर-मालिनी नाम है न्यारा
चमकाए तकदीर का तारा
देविकानाभ में जाकर देखो
स्वर्ग-धाम वो माँ का देखो
पाप सारे धोती पल में
काया कुंदन होती पल में
सिंह चढ़ी माँ अम्बा देखो
शारदा माँ जगदम्बा देखो
लक्ष्मी का वहां प्रिय वासा
पूरी होती सब की आशा
चंडी माँ की ज्योत जगाना
सच्चा सेवी समझ वहां जाना
दुर्गा भवानी के दर जाके
आस्था से एक चुनर चढ़ा के
जग की खुशियाँ पा जाओगे
शहंशाह बनकर आ जाओगे
वहां पे कोई फेर नहीं है
देर तो है अंधेर नहीं है
कैला देवी करौली वाली
जिसने सबकी चिंता टाली
लीला माँ की अपरम्पारा
करके ही विशवास तुम्हारा
करणी माँ की अदभुत करणी
महिमा उसकी जाए ना वरणी
भूलो ना कभी चौथ की माता
जहाँ पे कारज सिद्ध हो जाता
भूखो को जहाँ भोजन मिलता
हाल वो जाने सबके दिल का
सप्तश्रंगी मैया की, साधना कर दिन रैन
कोष भरेंगे रत्नों से, पुलकित होंगे नैन
मंगलमयी सुख धाम है दुर्गा
कष्ट निवारण नाम है दुर्गा
सुख्दरूप भव तरिणी मैया
हिंगलाज भयहारिणी मैया
रमा उमा माँ शक्तिशाला
दैत्य दलन को भई विकराला
अंत:करण में इसे बसालो
मन को मंदिर रूप बनालो
रोग शोक बाहर कर देती
आंच कभी ना आने देती
रत्न जड़ित ये भूषण धारी
देवता इसके सदा आभारी
धरती से ये अम्बर तक है
महिमा सात समंदर तक है
चींटी हाथी सबको पाले
चमत्कार है बड़े निराले
मृत संजीवनी विध्यावाली
महायोगिनी ये महाकाली
साधक की है साधना ये ही
जपयोगी आराधना ये ही
करुणा की जब नजर घुमावे
कीर्तिमान धनवान बनावे
तारा माँ जग तारने वाली
लाचारों की करे रखवाली
कही बनी ये आशापुरनी
आश्रय दाती माँ जगजननी
ये ही है विन्धेश्वारी मैया
है वो जगभुवनेश्वरी मैया
इसे ही कहते देवी स्वाहा
साधक को दे फल मनचाहा
कमलनयन सुरसुन्दरी माता
इसको करता नमन विधाता
वृषभ पर भी करे सवारी
रुद्राणी माँ महागुणकारी
सर्व संकटो को हर लेती
विजय का विजया वर है देती
योगकला जप तप की दाती
परमपदों की माँ वरदाती
गंगा में है अमृत इसका
आत्म बल है जागृत इसका
अन्तर्मन में अम्बिके, रखे जो हर ठौर
उसको जग में देवता, भावे ना कोई और
पदमावती मुक्तेश्वरी मैया
शरण में ले शरनेश्वरी मैया
आपातकाल रटे जो अम्बा
थामे हाथ ना करत विलम्बा
मंगल मूर्ति महा सुखकारी
संत जनों की है रखवारी
धूमावती के पकड़े पग जो
वश में करले सारे जग को
दुर्गा भजन महा फलदायी
प्रलय काल में होत सहाई
भक्ति कवच हो जिसने पहना
वार पड़े ना दुःख का सहना
मोक्षदायिनी माँ जो सुमिरे
जन्म मरण के भव से उबरे
रक्षक हो जो क्षीर भवानी
चले काल की ना मनमानी
जिस ग्रह माँ की ज्योति जागे
तिमर वहां से भय से भागे
दुखसागर में सुखी जो रहना
दुर्गा नाम जपो दिन रैना
अष्ट-सिद्धि नौ निधियों वाली
महादयालु भद्रकाली
सपने सब साकार करेगी
दुखियों का उद्धार करेगी
मंगला माँ का चिंतन कीजो
हरसिद्धि ते हर सुख लीजो
थामे रहो विश्वास की डोरी
पकड़ा देगी अम्बा गौरी
भक्तो के मन के अंदर
रहती है कण -कण के अंदर
सूरज चाँद करोड़ो तारे
ज्योत से ज्योति लेते सारे
वो ज्योति है प्राण स्वरूपा
तेज वही भगवान स्वरूपा
जिस ज्योति से आये ज्योति
अंत उसी में जाए ज्योति
ज्योति है निर्दोष निराली
ज्योति सर्वकलाओं वाली
ज्योति ही अन्धकार मिटाती
ज्योति साचा राह दिखाती
अम्बा माँ की ज्योति में, तू ब्रह्मांड को देख
ज्योति ही तो खींचती, हर मस्तक की रेख
जगदम्बा जगतारिणी जगदाती जगपाल
इसके चरणन जो हुए उन पर होए दयाल
माँ की शीतल छाँव में स्वर्ग सा सुखहोये
जिसकी रक्षा माँ करे मार सके ना कोय
करुणामयी कापालिनी दुर्गा दयानिधान
जैसे जिसकी भावना वैसे दे वरदान
मातृ श्री महाशारदे नमता देत अपार
हानि बदले लाभ में जब ये हिलावे तार
जय जय आंबे माँ जय जगदम्बे माँ
नश्वर हम खिलौनों की चाबी माँ के हाथ
जैसे इशारा माँ करे नाचे हम दिन-रात
भाग्य लिखे भाग्येश्वरी लेकर कलम-दवात
कठपुतली के बस में क्या, सब कुछ माँ के हाथ
पतझड़ दे या दे हमें खुशियों का मधुमास
माँ की मर्जी है जो दे हर सुख उसके पास
माँ करुणा की नाव पर होंगे जो भी सवार
बाल भी बांका होए ना वैरी जो हो संसार
जय जय आंबे माँ, जय जगदम्बे माँ
मंगला माँ के भक्त के, ग्रह में मंगलाचार
कभी अमंगल हो नहीं, पवन चले सुखकार
शक्ति ही को लो शक्ति मिलती इसके धाम
कामधेनु के तुल्य है शिवशक्ति का नाम
चन्दन वृक्ष है एक भला बुरे है लाख बबूल
बदी के कांटे छोड़ के चुन नेकी के फूल
माँ के चरण-सरोज की कलियों जैसे सुगंध
स्वर्ग में भी ना होगा जो है यहाँ आनंद
जय जय आंबे माँ, जय जगदम्बे माँ
पाप के काले खेल में सुख ना पावे कोय
कोयले की तो खान में सब कुछ काला होय
निकट ना आने दो कभी दुष्कर्मो के नाग
मानव चोले पर नहीं लगने दीजो दाग
नवदुर्गा के नाम का मनन करो सुखकार
बिन मोल बिन दाम ही करेगी माँ उपकार
भव से पार लगाएगी माँ की एक आशीष
तभी तो माँ को पूजते श्री हरी जगदीश
जय जय आंबे माँ, जय जगदम्बे माँ
जय जय आंबे माँ, जय जगदम्बे माँ
जय जय आंबे माँ, जय जगदम्बे माँ
जय जय आंबे माँ, जय जगदम्बे माँ
विधि पूर्वक जोत जलाकर
माँ चरणन में ध्यान लगाकर
जो जन मन से पूजा करेंगे
जीवन-सिन्धु सहज तरेंगे
कन्या रूप में जब दे दर्शन
श्रद्धा-सुमन कर दीजो अर्पण
सर्वशक्ति वो आदिकौमारी
जाइये चरणन पे बलिहारी
त्रिपुर रूपिणी ज्ञानमयी माँ
भगवती वो वरदानमयी माँ
चंड -मुंड नाशक दिव्या-स्वरूपा
त्रिशुलधारिणी शंकर रूपा
करे कामाक्षी कामना पूरी
देती सदा माँ सबरस पूरी
चंडिका देवी का करो अर्चन
साफ़ रहेगा मन का दर्पण
सर्व भूतमयी सर्वव्यापक
माँ की दया के देवता याचक
स्वर्णमयी है जिसकी आभा
चाहती नहीं है कोई दिखावा
कही वो रोहिणी कही सुभद्रा
दूर करत अज्ञान की निंद्रा
छल कपट अभिमान की दमिनी
सुख सौ भाग्य हर्ष की जननी
आश्रय दाति माँ जगदम्बे
खप्पर वाली महाबली अम्बे
मुंडन की जब पहने माला
दानव-दल पर बरसे ज्वाला
जो जन उसकी महिमा गाते
दुर्गम काज सुगम हो जाते
जय विजय अपराजिता माई
जिसकी तपस्या महाफलदाई
चेतना बुद्धि श्रधा माँ है
दया शान्ति लज्जा माँ है
साधन सिद्धि वर है माँ का
जहा भक्ति वो घर है माँ का
सप्तशती में दुर्गा दर्शन
शतचंडी है उसका चिन्तन
पूजा ये सर्वार्थ- साधक
भवसिंधु की प्यारी नावक
देवी-कुण्ड के अमृत से, तन मन निर्मल हो
पावन ममता के रस में, पाप जन्म के धो
अष्टभुजा जग मंगल करणी
योगमाया माँ धीरज धरनी
जब कोई इसकी स्तुति करता
कागा मन हंस बनता
महिष-मर्दिनी नाम है न्यारा
देवों को जिसने दिया सहारा
रक्तबीज को मारा जिसने
मधु-कैटभ को मारा जिसने
धूम्रलोचन का वध कीन्हा
अभय-दान देवन को दीन्हा
जग में कहाँ विश्राम इसको
बार-बार प्रणाम है इसको
यज्ञ हवन कर जो बुलाते
भ्रमराम्भा माँ की शरण में जाते
उनकी रखती दुर्गा लाज
बन जाते है बिगड़े काज
सुख पदार्थ उनको है मिलते
पांचो चोर ना उनको छलते
शुद्ध भाव से गुण गाते
चक्रवर्ती है वो कहलाते
दुर्गा है हर जन की माता
कर्महीन निर्धन की माता
इसके लिए कोई गैर नहीं है
इसे किसी से बैर नहीं है
रक्षक सदा भलाई की मैया
शत्रु सिर्फ बुराई की मैया
अनहद ये स्नेहा का सागर
कोई नहीं है इसके बराबर
दधिमति भी नाम है इसका
पतित-पावन धाम है इसका
तारा माँ जब कला दिखाती
भाग्य के तारे है चमकाती
कौशिकी देवी पूजते रहिये
हर संकट से जूझते रहिये
नैया पार लगाएगी माता
भय हरने को आएगी माता
अम्बिका नाम धराने वाली
सूखे वृक्ष तिलाने वाली
पारस मणियाँ जिसकी माला
दया की देवी माँ कृपाला
मोक्षदायिनी के द्वारे भक्त खड़े कर जोड़
यमदूतो के जाल को घडी में दे जो तोड़
भैरवी देवी का करो वंदन
ग्वाल बाल से खिलेगा आँगन
झोलियाँ खाली ये भर देती
शक्ति भक्ति का वर देती
विमला मैया ना विसराओ
भावना का प्रसाद चढाओ
माटी को कर देगी चंदन
साची माँ ये असुर निकंदन
तोड़ेगी जंजाल ये सारे
सुख देती तत्काल ये सारे
पग-पंकज की धुलि पा लो
माथे उसका तिलक लगा लो
हर एक बाधा टल जाएगी
भय की डायन जल जाएगी
भक्तों से ये दूर नहीं है
दाती है मजबूर नहीं है
उग्र रूप माँ उग्र तारा
जिसकी रचना ये जग सारा
अपनी शक्ति जब दिखलाती
उंगली पर संसार नचाती
जल थल नील गगन की मालिक
अग्नि और पवन की मालिक
दशों दिशाओं में ये रहती
सभी कलाओं में ये रहती
इसके रंग में ईश्वर रंगा
ये ही है आकाश की गंगा
इन्द्रधनुष है माया इसकी
नजर ना आती काया इसकी
जड़ भी ये ही चेतन ये ही
साधक ये ही साधन ये ही
ये महादेवी ये महामाया
किसी ने इसका पार ना पाया
ये है अर्पणा ये श्री सुन्दरी
चन्द्रभागा ये सावित्री
नारायणी का रूप यही है
नंदिनी माँ का स्वरूप यही है
जप लो इसके नाम की माला
कृपा करेगी ये कृपाला
ध्यान में जब तुम खो जाओगे
माँ के प्यारे हो जाओगे
इसका साधक कांटो पे फुल समझ कर सोए
दुःख भी हंस के झेलता, कभी ना विचलित होए
सुख-सरिता देवी सर्वानी
मंगल-चण्डी शिव शिवानी
आस का दीप जलाने वाली
प्रेम सुधा बरसाने वाली
मुम्बा देवी की करो पूजा
ऐसा मंदिर और ना दूजा
मनमोहिनी मूरत माँ की
दिव्या ज्योत है सूरत माँ की
ललिता ललित-कला की मालक
विकलांग और लाचार की पालक
अमृत वर्षा जहां भी करती
रत्नों से भंडार है भरती
ममता की माँ मीठी लोरी
थामे बैठी जग की डोरी
दुश्मन सब और गुनी ज्ञानी
सुनते माँ की अमृतवाणी
सर्व समर्थ सर्वज्ञ भवानी
पार्वते ही माँ कल्याणी
जय दुर्गे जय नर्मदा माता
मुरलीधर गुण तेरा गाता
ये ही उमा मिथिलेश्वरी है
भयहरिणी भक्तेश्वरी है
देवता झुकते द्वार पे इसके
कौन गिने उपकार इसके
माला धारी ये मृगवाही
सरस्वती माँ ये वाराही
अजर अमर है ये अनंता
सकल विश्व की इसको चिंता
कन्याकुमारी धाम निराला
धन पदार्थ देने वाला
देती ये संतान किसी को
जीविका के वरदान किसी को
जो श्रद्धा विश्वास से आता
कोई क्लेश ना उसे सताता
जहाँ ये वर्षा सुख की करती
वहां पे सिद्धिय पानीभरती
विधि विधाता दास है इसके
करुणा का धन पास है इससे
ये जो मानव हँसता रोता
माँ की इच्छा से ही होता
श्रद्धा दीप जलाए के जो भी करे अरदास
उसकी माँ के द्वार पे पूर्ण हो सब आस
कोई कहे इसे महाबली माता
जो भी सुमिरे वो फल पाता
निर्बल को बल यही पे मिलता
घडियों में ही भाग्य बदलता
अच्छरू माँ के गुण जो गावे
पूजा ना उसकी निष्फल जावे
अच्छरू सब कुछ अच्छा करती
चिंता संकट भय को हरती
करुणा का यहाँ अमृत बहता
मानव देख चकित है रहता
क्या क्या पावन नाम है माँ के
मुक्तिदायक धाम है माँ के
कही पे माँ जागेश्वरी है
करुणामयी करुणेश्वरी है
जो जन इसके भजन में जागे
उसके घर दर्द है भागे
नाम कही है अरासुर अम्बा
पापनाशिनी माँ जगदम्बा
की जो यहाँ अराधना मन से
झोली भरेगी भक्ति धन से
भुत पिशाच का डर ना रहेगा
सुख का झरना सदा बहेगा
हर शत्रु पर विजय मिलेगी
दुःख की काली रात टलेगी
कनकावती करेडी माई
संत जनों की सदा सहाई
सच्चे दिल से करे जो पूजन
पाये गुनाह से मुक्ति दुर्जन
हर सिद्धि का जाप जो करता
किसी बला से वो नहीं डरता
चिंतन में जब मन खो जाता
हर मनोरथ सिद्ध हो जाता
कही है माँ का नाम खनारी
शान्ति मन को देती न्यारी
इच्छापूर्ण करती पल में
शहद घुला है यहाँ के जल में
सबको यहाँ सहारा मिलता
रोगों से छुटकारा मिलता
भलाई जिसने करते रहना
ऐसी माँ का क्या है कहना
क्षीरजा माँ अम्बिके दुःख हरन सुखधाम
जन्म जन्म के बिगड़े हुए यहाँ पे सिद्ध हो काम
झंडे वाली माँ सुखदाती
कांटो को भी फुल बनाती
यहाँ भिखारी भी जो आता
दानवीर वो है बन जाता
बांझो को यहाँ बालक मिलते
इसकी दया से लंगड़े चलते
श्रद्धा भाव प्यार की भूखी
ये है दिली सत्कार की भूखी
यहाँ कभी अभिमान ना करना
कंजको का अपमान ना करना
घट-घट की ये जाननहारी
इसको सेवत दुनिया सारी
भयहरिणी भंडारिका देवी
जिसे ध्याया देवों ने भी
चरण -शरण में जो भी आये
वो कंकड़ हीरा बन जाए
बुरे ग्रह का दोष मिटाती
अच्छे दिनों की आस जगाती
ऐसा पलटे माँ ये पासा
हो जाती है दूर निराशा
उन्नति के ये शिखर चढ़ावे
रंको को ये राजा बनावे
ममता इसकी है वरदानी
भूल के भी ना भूलो प्राणी
कही पे कुंती बन के बिराजे
चारो और ही डंका बाजे
सपने में भी जो नहीं सोचा
यहा पे वो कुछ मिलते देखा
कहता कोई समुंद्री माता
कृपा समुंद्र का रस है पाता
दागी चोले यहाँ पर धुलते
बंद नसीबों के दर खुलते
दया समुंद्र की लहराए
बिगड़ी कईयों की बन जाए
लहरें समुंद्र में है जितनी
करुणा की है नेहमत उतनी
इतने ये उपकार है करती है करती
हो नहीं सकती किसी से गिनती
जिसने डोर लगन की बाँधी
जग में उत्तम पाये उपाधि
सर्व मंगल जगजननी मंगल करे अपार
सबकी मंगलकामना करता इस का द्वार
भादवा मैया है अति प्यारी
अनुग्रह करती पातकहारी
आपतियों का करे निवारण
आप कर्ता आप ही कारण
झुरगी में वो मंदिर में वो
बाहर भी वो अंदर में वो
वर्षा वो ही बसंत वो ही
लीला करे अनंत वो ही
दान भी वो ही दानी वो ही
प्यास भी वो ही पानी वो ही
दया भी वो दयालु वो ही
कृपा रूप कृपालु वो ही
इक वीरा माँ नाम उसी का
धर्म कर्म है काम उसी का
एक ज्योति के रूप करोड़ो
किसी रूप से मुंह ना मोड़ो
जाने वो किस रूप में आये
जाने कैसा खेल रचाए
उसकी लीला वो ही जाने
उसको सारी सृष्टि माने
जीवन मृत्यु हाथ में उसके
जादू है हर बात में उसके
वो जाने क्या कब है देना
उसने ही तो सब है देना
प्यार से मांगो याचक बनके
की जो विनय उपासक बनके
वो ही नैय्या वो ही खिवैया
वो रचना है वो ही रचैय्या
जिस रंग रखे उस रंग रहिये
बुरा भला ना कुछ भी कहिये
राखे मारे उसकी मर्जी
डूबे तारे उसकी मर्जी
जो भी करती अच्छा करती
काज हमेशा सच्चा करती
वो कर्मन की गति को जाने
बुरा भला वो सब पहचाने
दामन जब है उसका पकड़ा
क्या करना फिर तकदीर से झगड़ा
मालिक की हर आज्ञा मानो
उसमे सदा भलाई जानो
शांता माँ से शान्ति मांगो बन के दास
खोटा खरा क्या सोचना कर लिया जब विश्वास
रेणुका माँ पावन मंदिर
करता नमन यहाँ पर अम्बर
लाचारों की करे रखवाली
कोई सवाली जाए ना खाली
ममता चुनरी की छाँव में
स्वर्ग सी सुंदर ही गाँव में
बिगड़ी किस्मत बनती देखी
दुःख की रैना ढलती देखी
इस चौखट से लगे जो माथा
गर्व से ऊँचा वो हो जाता
रसना में रस प्रेम का भरलो
बलिदेवी का दर्शन करलो
विष को अमृत करेगी मैय्या
दुःख संताप हरेगी मैय्या
जिन्हें संभाला वो इसे माने
मूढ़ भी बनते यहाँ सयाने
दुर्गा नाम की अमृत वाणी
नस-नस बीच बसाना प्राणी
अम्बा की अनुकम्पा होगी
वन का पंछी बनेगा योगी
पतित पावन जोत जलेगी
जीवन गाडी सहज चलेगी
ठहरे ना अंधियारा घर में
वैभव होगा न्यारा घर में
भक्ति भाव की बहेगी गंगा
होगा आठ पहर सत्संगा
छल और कपट ना छलेगा
भक्तों का विश्वास फलेगा
पुष्प प्रेम के जाएंगे बांटे
जल जाएंगे लोभ के कांटे
जहाँ पे माँ का होय बसेरा
हर सुख वहां लगाएगा डेरा
चलोगे तुम निर्दोष डगर पे
दृष्टि होती माँ के घर पे
पढ़े सुने जो अमृतवाणी
उसकी रक्षक आप भवानी
अमृत में जो खो जाएगा
वो भी अमृत हो जायेगा
अमृत, अमृत में जब मिलता
अमृतमयी है जीवन बनता
दुर्गा अमृत वाणी के अमृत भीगे बोल
अंत:करण में तू प्राणी इस अमृत को घोल
जय माता दी
जय माँ दुर्गे
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