दुर्गा अमृतवाणी
M :- अष्ठ भुंजी नारायणी दुर्गा दुर्ग विनाश सिंह पे अश्वार है करती दुखो का नाश, मंगल करनी दुःख हरनी भय नाशनी नाश भव से पार उतारना माँ दुर्गा का काम , माँ दुर्गा के महिमा का वेद करे गुण गाणं कल्याणी कल्याण करे जप लो दुर्गा नाम सर्व कला सम्पूर्ण है सर्व गुणों की थान दुर्गा माँ दुर्गेश्वरी चरणों में ही प्रणाम
कोरस :- जय जय दुर्गाा माँ -4
M :- भय संताप विनाशनी करती भय का नाश दुर्गा माँ भव तारणी काटे काल कपाल महिषासुर मर्दन किया किये असुर संहार महिस मर्दनी नाम है माँ सच्ची सरताज दिन रूप में रहती हो त्रिदेवो के बाद दुर्गम काज करे सभी पूर्ण सभी हो काम सिद्ध मनोरथ सब करे सिद्ध करे सब काज सिद्ध चरण में भक्त तेरे माँ आये है आज
कोरस :- जय जय दुर्गाा माँ -4
M :- कंकर को मोती करे पाथर को करे स्वण्र बिगड़े भाग सवारती गुण गाये कण कण , जिनके जीवन छाया है भय का तम अधियार मन में जोत जगाई के कर देती उजियार, तुम को शीश नवा रहे ब्रह्मा विष्णु महेश कृपा माँ बर्षा रही भगतो परतो विशेष, कितने अलग तेरे रूप है, कितने अलग तेरे नाम, अलग अलग रूपों में भी भग्तो के करती काम
कोरस :- जय जय दुर्गाा माँ -4
M :- दुर्गा के नव रूप का आराधन कर जाए जीवन में सुख सम्पति भक्त वही पा जाये, शैल पुत्री के रूप में जो दुर्गा को ध्याए ऋषभ बाहन पे आइके भाव से पार लगाए, ब्रह्म चारिणी रूप का जिसने लगाया ध्यान मुक्ति का फल मिल गया बन गए बिगड़े काम चंद्र घंटा है दुर्गे का भक्तो तीजा रूप पावन ये दर्शन करो, माँ का रूप अनूप
कोरस :- जय जय दुर्गाा माँ -4
M :- कुष्मांडा है मैया का भगतो चौथा रूप, चौथे रूप को ध्याइये कृपा मिले अनूप, स्कन्द माता के रूप में खोले मोक्ष के द्धार पंचम रूप ध्याइये माँ है तारण हार, छठे रूप में लीजिये कात्यानी का नाम हाथ जोड़ के लीजिये मैया को प्रणाम, काल रात्रि रूप में काटे काल कपाल रोग सोक सन्ताप हरे हो दुख्खो का नाश
कोरस :- जय जय दुर्गाा माँ -4
M :- अष्टम रूप है महा गौरी लेलो माँ का नाम जीवन में सुख पाओगे बनेंगे बिगड़े काम, सिद्धि दात्री नवम है माँ दुर्गा का नाम काज भक्तो के सिद्ध करे सिध्ही दात्री मा जिसने भी जिस रूप में जप लिया दुर्गा नाम सिंह सवारी आइके भगत की बाहे धाम, चण्ड मुंड से पापी का तुम नई किया संहार रक्त बीज का रक्त पिए माँ तो दिए थे मार
कोरस :- जय जय दुर्गाा माँ -4
M :- ये उमा कमला ये ही यही शारदे माँ बस यही एक प्रार्धन भव से तारदे माँ अजर अमर है अनन्त है शक्ति अपरम्पार हंस वाहिनी है ये ही यही सिंह असवार, माँ पर सदा ही राखिये श्रद्धा और विश्वास दुःख ना आने पायेगा कभी भगतन के पास, चाँद सितारे सूर्य सभी मैया के आधीन इनके इशारे पर चले भगतो रात और दिन
कोरस :- जय जय दुर्गाा माँ -4
M :- श्रद्धा दिप जलाइके करलो तुम अरदास माँ के द्दवारे जाओगे होगी पूर्ण आस, जिसने दुर्गा नाम लिया मनचाहा फल पाए कर्मो की रेखा यही पल में बदल ही जाए, करुणा अमृत बहरहा करलो भग्तो पान दर दर भटक ना खाओगे मिलेगा मुक्ति धाम, मनसा चंडी माँ तू ही, तू ही शीतला माँ कालका तू झण्डेवाली शाकुंबरी तू माँ
कोरस :- जय जय दुर्गाा माँ -4
M :- मंगल भय मय मोचिनी दुर्गा सुख की थान, जिसके चरणों की सुधा स्वम पिए भगवान, दुर्गा सप्त सती ग्रन्थ का नित्ये करे जो पाठ रोग दोष का नाश हो मिलता ठाट और बाठ कोटि सूर्य के समान है, दुर्गा का प्रकार पृथ्वी जिससे जोतिर मय उज्वल है आकाश, दुर्गा परम सना तनी जग की सिरजन हार आदि भगवती महा शक्ति सृष्टि का आकार
कोरस :- जय जय दुर्गाा माँ -4
M :- दुःख हरण सुख धाम है माँ शक्ति का धाम, जन्म जन्म के बनते है यंहा पे बिगड़े काम जीवन सुखिया बगिया में मा ही खिलाती फूल सृष्टि का आधार यही, यही सृष्टि का मूल कंजक रूप में आइके दर्शन जब दे जा स्वर्ग का सारा सुख यही भगतो को मिल जाए मन मंदिर में बिठाइके चन्दन तिलक लगाए जीवन के सुख भोग के माँ के शरण में आ
कोरस :- जय जय दुर्गाा माँ -4
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