Current Date: 17 Nov, 2024

Dev Uthani Ekadashi 2023: देवउठनी एकादशी से शुरू हो जाएंगे मांगलिक कार्य, जानें- शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

- Bhajan Sangrah


Dev Uthani Ekadashi 2023: हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है. साल में कुल 24 एकादशी होती है. वैसे तो सभी एकादशी का अपना महत्व है लेकिन देवउठनी एकादशी सबसे खास मानी गई है. इस दिन चातुर्मास समाप्त होता है और श्रीहरि विष्णु योग निद्रा से जागते हैं.

 

देवउठनी एकादशी से ही समस्त मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. साल 2023 में अधिकमास होने की वजह से चातुर्मास 5 महीने का है. ऐसे में इस साल देवउठनी एकादशी कब है आइए जानते हैं इसकी डेट, मुहूर्त और कब से शुरू होंगे मांगलिक कार्य.

देवउठनी एकादशी 2023 डेट (Dev Uthani Ekadashi 2023 Date)

 

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है. इस साल देवउठनी एकादशी 23 नवंबर 2023 गुरुवार को है. इसे देवुत्थान एकादशी (Devuthhan Ekadashi 2023) और देव प्रबोधिनी (Prabodhini ekadashi) एकादशी भी कहते हैं. इस दिन श्रीहरि की विशेष पूजा की जाती है.

 

देवउठनी एकादशी 2023 मुहूर्त (Dev Uthani Ekadashi 2023 Muhurat)

 

पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर 2023 को रात 11 बजकर 03 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 23 नवंबर 2023 को रात 09 बजकर 01 मिनट पर इसकी समाप्ति है.

पूजा समय - सुबह 06.50 - सुबह 08.09

रात्रि का मुहूर्त - शाम 05.25 - रात 08.46

देवउठनी एकादशी 2023 व्रत पारण समय (Dev Uthani Ekadashi 2023 Vrat Parana Time)

 

देवउठनी एकादशी व्रत का पारण 24 नवंबर 2023, शुक्रवार को सुबह 06.51 से सुबह 08.57 मिनट तक कर लें. इस दिन द्वादशी तिथि रात 07.06 मिनट पर समाप्त होगी.

 

देवउठनी एकादशी से शुरू होंगे मांगलिक कार्य

 

देवउठनी एकादशी दिवाली के बाद आती है. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दे‌वशयनी एकादशी से चार माह तक के लिए देवशयन काल में रहते हैं. इस दौरान सभी मांगलिक कार्य पर रोक लग जाती है. फिर देवउठनी एकादशी पर देवों जागने के बाद समस्त मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, यज्ञोपवित संस्कार आदि शुरू हो जाते है.

 

देवउठनी एकादशी महत्व (Dev Uthani Ekadashi Significance)

 

देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह भी होता है. इस दिन श्रीहरि के शालीग्राम स्वरूप का तुलसी माता से विवाह कराया जाता है. रात्रि में उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये, त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥ इस मंत्र तेज स्वर में उच्चारण करते हुए श्रीहरि को जगाया जाता है. कहते हैं जो लोग देवउठनी एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें सालभर की एकादशी का पुण्य मिल जाता है.

देवउठनी एकादशी की पूजा विधि

देव उठनी एकादशी तिथि पर ब्रह्म बेला में उठें। इस समय जगत के पालनहार भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। दैनिक कार्यों से निवृत होने के पश्चात गंगाजल युक्त से स्नान-ध्यान करें। अब आचमन कर व्रत संकल्प लें। इसके बाद सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। पूजा के समय पीले वस्त्र धारण करें। सूर्य देव को जल का अर्घ्य देने के बाद पंचोपचार कर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करें। भगवान को पीले रंग का फल, बेसन के लड्डू, केसर मिश्रित खीर, केले आदि चीजें भोग में अर्पित करें। इस समय विष्णु चालीसा का पाठ, स्तोत्र, स्तुति का पाठ और मंत्र जाप करें। पूजा के अंत में आरती कर सुख, समृद्धि और धन वृद्धि की कामना करें। दिनभर उपवास रखें। संध्याकाल में आरती कर फलाहार करें। अगले दिन पंचांग द्वारा निर्धारित समय पर व्रत खोलें।

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