विनियोग
ॐ अस्य श्री शनिस्तोत्र मंत्रस्य कश्यप ॠषि स्त्रिष्टुष्छंदः सौरि देवता,शंबीजम्निः शक्तिः कृष्ण वर्णेति की लकंधर्मार्थं काम मोक्षात्मक चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
करन्यास
शनैश्चराय अंगुष्ठाभ्यांनमः। मंदगतये तर्जनीभ्यांनमः। अधोक्षजाय मध्यमाभ्यांनमः । कृष्णांगाय अनामिकाभ्यांनमः। शुष्कोदरायकनिष्ठकाभ्यांनमः । छायात्मजायकरतलकरपृष्ठाभ्यांनमः ।
हृदयादिन्यास
शनैश्चराय हृदयायनमः। मदंगतयेशिर सेस्वाहा।
अधोक्षजाय शिखायैवषट्। कृष्णांगाय कवचायहुम्। शुष्कोदराय नेत्रत्रयाय वौषट्। छायात्मजाय अस्त्रायफट्। दिग्बंधनम्
भू र्भुवः स्वः मंत्र का उच्चारण कर दिशा बंधन करे।
ध्यान
नील द्युतिंशूल धरं किरी टिन गृध्रस्थि तंत्रास करं धनुर्धरम्।
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं वन्दे सदा भीष्ट करंवरेण्यम् ॥
शनि के प्रकोप से बचने के लिए निम्न वस्तुए दान करें।
१. कालातिल, कालाउड़द, सरसोंकातेल, कालकपड़ा, कुरथी, लोहा, कालाफूल, कालाजूता, कस्तूरी, सोना, गोदान, वरण एवं दक्षिण यथा शक्ति देना चाहिए।
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