Current Date: 18 Dec, 2024

दक्षिणेश्वर काली मंदिर

- Traditional


दक्षिणेश्वर काली मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता के बैरकपुर में स्थित है, तथा यह पवित्र हुगली नदी के तट पर बसा हुआ एक ऐतिहासिक हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर देवी काली के रूप भवतारिणी को समर्पित है, यह काली मंदिर दुनियाभर में विख्यात है, तथा भारत के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है।

मंदिर का इतिहास :-

यह मंदिर सन 1847 में रानी रासमणि द्वारा बनवाया गया था। कहा जाता है की रानी रासमणि एक विधवा थीं, और अपनी उम्र के चौथे पड़ाव में वह तीर्थ यात्रा करना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने वाराणसी जाने का निश्चय किया, किन्तु जाने से एक दिन पहले उन्हें रात्रि में स्वप्न में माता ने प्रकट होकर कहा की वाराणसी जाने की आवश्यकता नहीं, यही मेरे एक मंदिर का निर्माण करो। मई स्वयं उस मंदिर में प्रतिष्ठित हो जाउंगी और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करुँगी।

यह स्वप्न देखते ही रानी ने वाराणसी जाने का विचार छोड़ मंदिर बनवाने का कार्य शुरू किया। मंदिर बनवाने के लिए एक पवित्र भूमि ढूंढी गयी, कहा जाता है की भूमि का स्थान भी माँ ने स्वप्न में आ कर रानी को बताया, और उसी जगह पर मंदिर निर्माण का कार्य शुरू किया गया। यह मंदिर सन 1847 से शुरू होकर सन 1855 में अर्थात 8 वर्ष पश्चात पूर्ण हुआ।

मंदिर की विशेषता :-

यह विशाल मंदिर अत्यंत सुन्दर है तथा इसकी भव्यता तथा कला उस समय की कारीगरी की विशेषता दिखाती है। मंदिर का परिसर 25 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है तथा यह 46 फुट चौड़ा और 100 फुट ऊँचा है। मंदिर के चारों ओर बारह मंदिर शंकर भगवान के बनाये गए हैं, तथा इसकी दिशा दक्षिण की ओर है जिस कारण इसे दक्षिणेश्वर कहा जाता है। यह भवन तीन मंजिला है, जिसमे ऊपरी दो मंजिलों पर नौ गुम्बद बने हुए हैं तथा इन गुम्बदों की छत पर सुन्दर कलाकृतियां की गयी हैँ। पूरे मंदिर में कुल बारह गुम्बद हैं। 
मंदिर की मुख्य प्रतिमा
मंदिर के भीतरी भाग में चाँदी का एक कमल का फूल है, जिसमे हज़ार पंखुड़ियां हैं और इस कमल के फूल पर माता काली शस्त्रों सहित भगवान शंकर के ऊपर खड़ी हैं। एक बात और जो इस मंदिर को ख़ास बनाती है वो है पवित्र गंगा नदी। यह मंदिर गंगा नदी इ तट पर बना हुआ है, और यह नदी कोलकाता में हुगली नदी के नाम से जानी जाती है। सम्पूर्ण मंदिर परिसर हरे भरे घास के मैदान पर बना है, जो इसे आकर्षक दिखाता है।

स्वामी विवेकानंद जी के गुरु, प्रसिद्ध विचारक रामकृष्ण परमहंस जी भी इस मंदिर में रहे हैं और यहीं उन्होंने अपनी आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की थी। कहा जाता है इसी स्थल पर उन्होंने अपने धर्म के प्रवचन दिए थे। इस मंदिर में वे पुजारी भी रहे और यह भी माना जाता है की मंदिर में उन्हें माता काली ने दर्शन भी दिए थे। मंदिर के उत्तर पश्चिमी दिशा में रामकृष्ण परमहंस का कक्ष आज भी मौजूद है, जो भक्तों के लिए सदैव खुला रहता है।  इसी परिसर के बाहर परमहंस की धर्मपत्नी श्री शारदा माता तथा मंदिर की निर्माता रानी रासमणि का समाधी मंदिर बनाया गया है और वह वट का वृक्ष भी यहां मौजूद है जहाँ परमहंस जी ध्यान किया करते थे।

दर्शन का प्रारूप:-

मंदिर में प्रत्येक दिन दर्शन किये जा सकते हैं। मंदिर खुलने का समय प्रातःकाल में 5:30 बजे से 10:30 बजे तक है, तथा उसके बाद सांयकाल में 04:30 से 07:30 बजे तक यह खुलता है। 

कैसे पहुंचे? :-

सड़क द्वारा

काली पूजा पर मंदिर परिसर 
यह शहर के मुख्य भाग में स्थित है, इसलिए यह बस, मेट्रो, रिक्शा तथा टैक्सी आदि से जुड़ा हुआ है। किसी भी माध्यम से यहां पंहुचा जा सकता है। हर प्रमुख शहर से कोलकाता के लिए बस मिल जाती है और उसके बाद आप अपनी सुविधा के अनुसार टैक्सी, ऑटो या रिक्शा आदि से जा सकते हैं।

रेल द्वारा

रेलमार्ग द्वारा भी कोलकाता सभी मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। और कोलकाता में मुख्य दो स्टेशन हैं- सियालदह और हावड़ा।

हवाईजहाज द्वारा

कोलकाता वायुसेवा के द्वारा भी भारत के प्रमुख शहरों दिल्ली, मुंबई, बंगलोरे तथा चेन्नई आदि से जुड़ा हुआ है।

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