धुन - राम से बड़ा राम का नाम
सुनो सुनो में तुम्हे सुनाऊ,कथा बृहस्पतिवार को
कथा एक साधु की है ये,कथा एक परिवार की
1
एक गांव की है ये कहानी,एक सभ्य परिवार था
खुशियाँ ही खुशियाँ थी घर में,छोटा सा संसार था
सास ससुर संग बीटा बहु थे,घर में हर खुशहाली थी
बेटा भी लायक था उनका,बहु भी भोली भाली थी
2
बहु सास की सेवा करती, ससुर का वो सम्मान करे
सास भी हर पल उठती बैठती,बहु का ही गुण गान करे
कृपा थी उनपर विष्णु जी की,कमी नहीं थी कुछ घर में
भरा था घर धन धन्या से पूरा,कमी नहीं थी उस घर में
3
एक रोज की बात बताऊ,बहु वो आंगन लिप रही
घूँघट भीतर मंद स्वरों में,गा वो कही गीत रही
खन खन चूड़ी छन छन पायल,सुर संगीत का संयम था
आंगन में तुलसी माता का, अनुपम सब मनोरम था
4
तभी वहाँ पर अलख जागते,संत एक आ जाते है
भिक्षा देदे बेटी मुझको,वो आवाज लगाते है
भला तेरा भगवान करेगा भोजन मुझे करादे तू
सदा रहे सौभाग्यवती तू,जल थोड़ा पिलवाडे तू
5
मेरे हाथ सने गोबर में,बोली बहु मृत्यु वानी में
तुम्ही बताओ साधु बाबा,कैसे पिलाऊ पानी में
भोजन भी करवा देती मैं अगर मुझे फुरसत होती
एक नहीं दो चार नहीं चाहे खा लेते तुम दस रोटी
6
किसी और दीन आना बाबा,मुँह मांगी भिक्षा दूंगी
भिक्षा के संग तुमको बाबा भोजन भर कर दूंगी
सुनकर साधु चला गया वो बहु काम निपटाय रही
घूंघट के अंदर ही अंदर मधुर कुछ गाय रही
7
हंसी ख़ुशी दिन लगे गुजरने,एक दिन ऐसी घडी आयी
उनके घर में खुशियाँ लेकर,नन्ही एक पारी आयी
गूंज उठा घर किल कारी से,झूम उठा आंगन सारा
महक उठी थी घर की बगिया,और खिल उठा चमन सारा
8
एक रोज बहु बहु पीला गये,लली की दूध पिलाती
देख लली का चाँद सा मुखड़ा,बहु पुलकित हो जाती है
अलख जगाते फिर वो साधु,द्वारे पे आ जाता है
भिक्षा दे दे बेटी मुझको,वो आवाज लगता है
9
बोली बहु मैं खली नहीं हु,और किसी दिन तुम आना
जो मांगोगे भिक्षा दूंगी,ख़ुशी से बाबा ले जाना
दूध पिलाके अपनी लली को इसको अभी सुलाना है
इस हालत में साधु बाबा, कठिक मेरा उठ पाना है
10
चला गया चुप चाप वो साधु,मिला कुछ नहीं उस घर से
मांग रहा वो अलख जगके इस घर से कभी उस घर से
पीके दूध सो गयी बिटिया,पलंग पे उसको लिटाती है
उसे सुलाके बहु तुरंत किसी,काम में फिर लग जाती है
11
चंद्र कला सी लली बढ़रही,अब गुरुकुल में जाने लगी
छोटे मोठे काम में बिटिया माँ का हाथ बटाने लगी
सास ससुर खुशहाल बड़े थे,साथ खेलते पोती के
हर समय उसके साथ में रहते उस एक लोती पोती के
12
फिर कुछ दिन के बाद एक दिन,मांज रही हटी बर्तन
बेटी गुरुकुल गयी थी पढ़ने, सास ससुर पति गये सतसंग
फिर से वही साधु घर आया है,आके अलख जगाया है
दे बेटी कुछ भिक्षा मुझको योगी तेरे घर आया है
13
बोली बहु फिर उस योगी से मन रही हूँ मैं बर्तन
कैसे तुम्हे भिक्षा दूँ बाबा मेरे हाथ लायी जूठन
कैसा ये संयोग है बाबा,जब जब भी तुम आते हो
मुझे किसी ना किसी काम में,उलझी ही पाते हो
14
बोलै योगी यही जीवन है,जीवन ही एक उलझन है
कभी लीपना आंगन बेटी,कभी मांजना बर्तन है
ऐसे में कुछ समय निकालो, और कभी कुछ दान करो
घर आयी साधु सन्यासी, का बेटी सम्मान करो
15
बोलो फिर वो नार नवेली, कब मै फुर्सत पाऊँगी
कब बाबा मै बैठ पलंग पे, अपना समय बिताऊंगी
मांग रही हूँ हाथ जोड़के मुझको ऐसा वर देदो
16
सोच मै दुब गया वो योगी,फिर खुद ही मुस्काया है
फिर बाबा ने उस औरत की,भांति भांति समझया है
प्रातः काल कभी मत उठना, उठना सूरज उगने पर
17
रात ढले जब झाड़ू लगाना,दीप जलाना रात ढले
चूल्हे के पीछे भोजन रखना,चाहे बिगड़े बात भले
सासुर पति तुम ये कहना बृहस्पति को कटाये बाल
इतना काम तू करके देख ले, फुर्सत मिले तुझे तत्काल
18
इतना कहके चल दिया योगी,बहु लग गयी फिर निज काम
बाबा की बात से खुश थी बहुत वो,अब तो करुँगी मै आराम
रात ढले वो झाड़ू मारे, रात ढले ही बारे दीप
दिन चढ़ने तक सोये तान के, बन गयी पूरी पूरी ढीट
19
सास ससुर के बाद नहाये, चूल्हे के पीछे धरे भोजन
सास ससुर और पति से पहले बैठ रसोई करे भोजन
बृहस्पति को पति बाल कटाये, हो गये सारे उलटे काम
उड़ लक्ष्मी छोड़ गयी घर,हो गया घर का काम तमाम
20
धीरे धीरे निर्धन हो गये,तरस रही अब खाने को
जिस घर मे धन धान्य भरा था तरसे दाने दाने को
ऐसी हुयी मति भंग बहु की,नौबत आ गयी फाके की
क्या होता है अब उस घर मे,कथा सुनो अब आगे की
21
भूखी प्यासी बहु बैठी है,हाथ मे कही काम नहीं
बैठी है आराम से देवी,काम का कही नाम नहीं
तभी वही साधु फिर आया,फिर आवाज लगता है
भिक्षा दे जो मुझे योगी की,ऐसा कही दाता है
22
हाथ जोड़ के बहु ने बोला,घर मे नहीं कुछ धान
ऐसी मार पड़ी किस्मत की,तरसे दाने दाने को
भिक्षा मे तुम्हे क्या दूँ बाबा, खुद खाने को तरस रही
भूखी लली की देख के सूरत,दोनों नैना बरस रहे
23
हँसते हुये वो साधु बोला,जब था तब तो दिया नहीं
कर कर के फुर्सत का बहाना,दान पुण्य कुछ किया नहीं
आज जो हालत हुयी तुम्हारी,इसकी तुम्ही हो दोषी हो
24
बोलो बहु कुछ ऐसा करके,पहले से दिन हो जाये
पहले ये जो दिन खुशियों के,फिर से वही दिन आ जाये
क्षमा करो अपराध हमरा है बाबा अन्तर्यामी
मारी गयी थी मति हमारी,दया करो मुझपर स्वामी
25
हाथ उठा कर योगी बोले प्रातः उठ स्नान करो
भोर से पहले झाड़ू लगाना,ईश्वर का फिर ध्यान धरो
गौ धुली के समय शाम, को घर मे दीप जलाना तुम
सास ससुर जब भोजन करले,बाद मे उनके धाना तुम
26
चूल्हे के पीछे भोजन ना रखना,बृहस्पति वार कटाये ना बाल
ऐसा करके देख तू बेटी,कृपा होगी तुरंत तत्काल
इतना कहके चले गये वो,बहु समझ गयी सारी बात
ऐसा ही फिर किया उसने,सुधर गये उसके हालत
27
कुछ दिन मे सब ठीक हो गया,घर धन धान्य से भर गया फिर
जैसी पहले थी खुशहाली,वैसे हो गया ख़ुशी से भर
कथा सुनाही बृहस्पति की,गलती हुयी होती करना माफ़
विनय करे सुखदेव सभी से,जोड़के अपने दोनों हाथ
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