( एक योगी वो कैलाश का, एक ऊंचे महलो की रानी,
अनंत अनूठे प्रेम की, शिव शक्ति की है ये कहानी। )
भोले अन्तर्यामी है,
गौरा जिनकी दीवानी है,
प्रेम न पाया किसी कुंवर में,
शिव संग प्रीत निभानी है,
प्रीत समुंदर कहें जिन्हें,
वो खुद प्रेम में खो गए है,
बिना सती के लाखों वर्ष,
बर्फ को ओढे सोये है….
फिरसे आंखों में प्यार भर बैठे ,
गौरा मैया से प्यार कर बैठे….
भोले की दीवानी हुई मैं,
जग से बेगानी हुई मैं,
जनम जनम का साथ है,
शिव जी पार्वती का,
भेष भले ही दूजा है,
रूप है वो सती है…
वर्षो बाद मिलन है देखो ,
धरती और अम्बर का,
कैलाशो में बैठे भोले,
हाथ थाम गौरी का….
बाबा दिल भी निसार कर बैठे,
गौरा मैया से प्यार कर बैठे,
भोले बाबा……
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