F:- भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,अद्भुत रूप बिचारी॥
F:- लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,सोभासिंधु खरारी॥
F:- कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,वेद पुरान भनंता॥
F:- करुना सुख सागर, सब गुन आगर,जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,भयउ प्रगट श्रीकंता॥
F:- ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,सुनत धीर मति थिर न रहै॥
F:- उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥
F:- माता पुनि बोली, सो मति डोली,तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,यह सुख परम अनूपा॥
F:- सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,ते न परहिं भवकूपा॥
F:- भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,अद्भुत रूप बिचारी॥
F:- श्री राम, जय राम, जय जय राम
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