आनंद ही आनंद बरस रहा बलिहारी ऐसे सतगुरु की -4
बलिहारी ऐसे सतगुरु की -6
आनंद ही आनंद बरस रहा बलिहारी ऐसे सतगुरु की -2
तन भाग हमारे आज हुए शुभ दर्शन ऐसे सद्गुरु की
शुभ दर्शन ऐसे सद्गुरु की
पावन की मीन भारत भूमि बलिहारी ऐसे सतगुरु की -2
आनंद ही आनंद बरस रहा बलिहारी ऐसे सतगुरु की -2
क्या रूप अनुपम पायो है सो हे जिन तारों विच चंदा
सो हे जिन तारों विच चंदा
सूरत मुहूर्त मोहन कारी बलिहारी ऐसे सतगुरु की -2
आनंद ही आनंद बरस रहा बलिहारी ऐसे सतगुरु की -2
क्या प्रेम छटा क्या मधुर वाणी बरसत वाणी अमृत धारा
बरसत वाणी अमृत धारा
वह मधुर मधुर अजब ध्वनि बलिहारी ऐसे सतगुरु की -2
आनंद ही आनंद बरस रहा बलिहारी ऐसे सतगुरु की -2
गुरु ज्ञानरूपी जल बरसा कर गुरु धर्म बगीचा लगा दिया
गुरु धर्म बगीचा लगा दिया
खेल रही यह कैसी फुलवारी बलिहारी ऐसे सतगुरु की -2
आनंद ही आनंद बरस रहा बलिहारी ऐसे सतगुरु की -4
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