बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास
चार पवित्र धामों में एक बद्रीनाथ धाम, उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यह अलखनंदा नदी के किनारे तथा नर-नारायण नामक दो पर्वतों के बीच स्थित है। बद्रीनाथ बद्री-नारायण ( अर्थात विष्णु )से सम्बंधित एक पवित्र धार्मिक स्थल है। बद्रीनाथ के कपाट छह महीने खुलते हैं तथा छह महीने बर्फ़बारी की वजह से बंद रहते हैं। प्राचीन शैली में निर्मित इस मंदिर की ऊंचाई 15 मीटर है।
बद्रीनाथ का मुख्य परिसर
बद्रीनाथ की विशेषता :-
लगभग सोलहवीं सदी में मंदिर की मुख्य मूर्ति को गढ़वाल के राजा ने उसकी वर्तमान जगह पर रखवाया था। एक और मान्यता है की आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर में पुजारी केवल दक्षिण भारत के राज्य केरल के नंबूदरीपाद ब्राह्मण ही होते हैं। वहाँ से पुजारी नियुक्त करने की परंपरा शंकराचार्य जी की ही शुरू की हुई है, जो आज तक चली आ रही है। पुजारी की योग्यता देख कर ही उसे नियुक्त किया जाता है, जैसे वह वेदों से स्नातक तथा कम से कम शास्त्री की उपाधि प्राप्त होना चाहिए।
बद्रीनाथ धाम के विषय में कई पौराणिक कथा प्रचलित हैं, एक कथा के अनुसार एक बार देवी लक्ष्मी नारायण से रुष्ट होकर पृथ्वी पर आ गयी। तब भगवन विष्णु ने उन्हें मनाने के लिए कठोर तप किया, जिस स्थान पर उन्होंने तप किया वहां बद्री अर्थात बेर का वन था। इस प्रकार उस पवित्र स्थान को बद्रीनाथ नाम दिया गया।
बद्रीनाथ मंदिर की पौराणिक कथा :-
एक अन्य मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु बद्रीनाथ में तपस्या कर रहे थे। इस दौरान वहां का मौसम अत्यंत कष्टदायी हो गया था। ठंडी हवा के थपेड़ों और भारी बर्फ़बारी से अनजान भगवान विष्णु तपस्या में ही लीन रहे। किन्तु माता लक्ष्मी से यह सब देखा नहीं गया, अतः उन्होंने एक बद्री के वृक्ष का रूप लिया और विष्णु जी को अपनी ओट में ढक लिया। कई वर्षों तक वह इसी अवस्था में कड़ी रहीं, जब विष्णु जी का तप पूरा हुआ उन्होंने लक्ष्मी जी को वहां अपनी रक्षा करते हुए पाया। उनके इस कड़े तप को देखकर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए, और उस स्थान का नाम उनके नाम पर बद्रीनाथ रख दिया। इस किवदंती को, बद्रीनाथ के रूप में विष्णु को मंदिर में ध्यानपूर्वक मुद्रा में दिखाया जाना, सार्थक करती है।
सर्दियों में बर्फ से ढका हुआ बद्रीनाथ
ऐसी ही एक और प्रचलित कथा है, जिसमे विष्णु के अवतार तथा धर्म के पुत्र, नर और नारायण का उल्लेख मिलता है। कहते हैं की नर और नारायण ने इस स्थान पर हज़ारों वर्ष तक तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप उनमे कई लौकिक व अलौकिक गुणों का समावेश हो गया था। उनके नाम पर ही यहां के दो पर्वत नर और नारायण नाम से जाने जाते हैं, जिनके मध्य में मंदिर स्थित है। मान्यता है की नर और नारायण ही द्वापर युग में कृष्ण और अर्जुन के अवतार थे।
बद्रीनाथ दर्शन के प्रारूप :-
पवित्र धाम बद्रीनाथ के कपाट 6 माह तक ही खुले रहते हैं तथा बाकि के 6 माह यह बंद रहते हैं। हर वर्ष बद्रीनाथ के कपाट खुलने व बंद करने की तिथि की घोषणा बसंत पंचमी के शुभ दिन मंदिर समिति द्वारा की जाती है। छह माह बाद अक्षय तृतीया के दिन सभी कपाट पूरे विधि-विधान के साथ खोले जाते हैं। तथा पांडुकेश्वर से सभी मूर्तियां वापस गर्भ गृह में स्थापित की जाती हैं। छह माह बाद भी गर्भगृह में प्रज्वलित ज्योत निरंतर प्रज्वलित रहती है। एक ऐसी स्थिति, जिसमे बद्रीनाथ धाम बर्फ से ढका रहता है, ज्योत का जला रहना भी भगवान का ही चमत्कार है।कपाट सदैव अक्षय तृतीया के दिन ही खोलने की परंपरा है। तथा मार्गशीर्ष माह के प्रथम सप्ताह, अर्थात दीपावली के बाद, ही कपाट बंद होने की परंपरा है। बद्रीनाथ के कपाट बंद होने का कार्य पांच दिन पूर्व से ही प्रारम्भ हो जाता है, पहले दिन गणेश मंदिर के द्वार बंद किये जाते हैं, दूसरे दिन केदारेश्वर के तथा तीसरे दिन वेद मन्त्रों के ग्रन्थ बंद किये जाते हैं। तत्पश्चात, चौथे दिन लक्ष्मी माता को गर्भ गृह में श्री बद्रीनाथ जी के साथ विराजमान किया जाता है, इसके साथ ही उद्धव जी और कुबेरजी की मूर्तियों को आदि शंकराचार्य की गद्दी के साथ पांडुकेश्वर लाया जाता है। छह माह बदरीनाथ के कपाट बंद रहने के दौरान बद्रीनाथ की पूजा पांडुकेश्वर में की जाती है। अंतिम दिन यानि पांचवे दिन पूरे विधि विधान से पूजा करके घृत कम्बल से भगवान बद्रीनाथ जी और लक्ष्मी माता को ढका जाता है और अखंड दीप प्रज्वलित किया जाता है।
बद्रीनाथ का स्वयंभू विग्रह
इसके साथ ही कपाट छह माह के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इस छह माह की अवधी में केवल केवल बद्रीनाथ एवम माता लक्ष्मी की मूर्तियां ही गर्भगृह में रहती हैं।
कैसे पहुचें? :-
ऋषिकेश 297 किमी.विभिन्न स्थानों से मंदिर की दूरी -
देहरादून 314 किमी.
कोटद्वार 327 किमी.
दिल्ली 395 किमी.
रेल परिवहन :
बद्रीनाथ के सबसे निकट ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है( 297 किमी.)। ऋषिकेश भारत के प्रमुख शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली और लखनऊ आदि से सीधे तौर पर रेलवे से जुड़ा है।
वायु मार्ग :
बद्रीनाथ के लिए सबसे नजदीक स्थित जोली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून है, जहाँ से मंदिर मात्र 314 किमी. की दूरी पर स्थित है।
सड़क परिवहन : उत्तरांचल स्टेट ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन दिल्ली-ऋषिकेश के लिए नियमित तौर पर बस सेवा उपलब्ध कराता है। इसके अलावा प्राइवेट ट्रांसपोर्ट भी बद्रीनाथ सहित अन्य समीपस्थ हिल स्टेशनों के लिए बस सेवा मुहैया कराता है।
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