Current Date: 19 Dec, 2024

बाबा ये नैया कैसे

- संजय मित्तल जी।


बाबा ये नैया कैसे,
डगमग डोली जाए,
बिन माझी पतवार के इसको,
तू ही पार लगाए,
बाबा ये नैया।।

तर्ज – गंगा तेरा पानी अमृत।

दूर दूर नहीं दिखे किनारा,
लहरे भी बिसराए,
बादल भी है गरज रहे और,
मुझको रहे डराए,
जबकि मैं ये सोच रहा तू,
अब आए तब आए,
बाबा ये नईया कैसे,
डगमग डोली जाए,
बिन माझी पतवार के इसको,
तू ही पार लगाए,
बाबा ये नैया।।

दुनिया है इक रंग मंच और,
तू इसका निर्देशक,
तू ही बनाए तू ही मिटाए,
तू ही इसका विशेषज्ञ,
फिर क्यों ये तेरे हाथ के पुतले,
मुझको आँख दिखाए,
बाबा ये नईया कैसे,
डगमग डोली जाए,
बिन माझी पतवार के इसको,
तू ही पार लगाए,
बाबा ये नैया।।

तुझको ही मैं समझूँ अपना,
बाकी सब है पराए,
तेरे हाथों सबकुछ सम्भव,
तू ही लाज बचाए,
कर दे एक इशारा नैया,
पार मेरी हो जाए,
बाबा ये नईया कैसे,
डगमग डोली जाए,
बिन माझी पतवार के इसको,
तू ही पार लगाए,
बाबा ये नैया।।

तीन बाण तरकश में तेरे,
चले तो ना रुक पाए,
भेदे तू पत्तो की तरह फिर,
कोई भी ना बच पाए,
भेदो तुम ‘निर्मल’ की विपदा,
पास मेरे ना आए,
बाबा ये नईया कैसे,
डगमग डोली जाए,
बिन माझी पतवार के इसको,
तू ही पार लगाए,
बाबा ये नैया।।

बाबा ये नैया कैसे,
डगमग डोली जाए,
बिन माझी पतवार के इसको,
तू ही पार लगाए,
बाबा ये नैया।।

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