F:- महा सूत गोरी ननदन चरण तुम्हारी शीश नवाये
विणा वादनी मात शारदा सदा विराजो कंठ में आये
गोवर्धन भगवान् की गाथा संजो आज रही है गाये
बसे है जो मथुरा नगरी में पर्वत में रहे बताये
जिनकी महिमा बड़ी निराली भक्त यहाँ दर्शन को आये
गोवर्धन की पूजा करते भक्त दूध की धार बहाये
सात कोश की है परिक्रमा भक्ति भाव से भक्त लगाए
गोवर्धन भगवान् जहाँ पर बसे है भक्तो तुम्हे बताये
गोवर्धन भगवान् जहाँ पर
F:- गोवर्धन भगवान् जहाँ पर बसे है भक्तो तुम्हे बताये
राजस्थान हरियाणा यूपी तीनो की लगाती सीमाएं
दूर दूर से भक्त पधारे गोवर्धन के दर्शन पाए
गोवर्धन है परम दयालु भक्तो पर खुशियां बरसाए
दीपावली के अगले दिन ही गोवर्धन को पूजा जाए
घर घर में होती है पूजा गोवर्धन गोबर से बनाये
दूर दूर तक ना कोई पर्वत गोवर्धन गए कहाँ से आये
एक कहानी बहुत पुरानी गोवर्धन की रहे सुनाये
सतयुग में थे के ब्रह्मण गोवर्धन था नाम बताये
सतयुग में थे के ब्रह्मण
F:- सतयुग में थे के ब्रह्मण गोवर्धन था नाम बताये
जो थे परम भक्त विष्णु के हरी चरणों का ध्यान लगाए
भजन प्रभु का करते करते दुनियादारी दी भुलाये
कठिन साधना करने हरी की हिमालय पर्वत में जाए
घुसे एक पर्वत की गुफा में उन्होंने आसान लिया लगाए
करी हरी की घोर तपस्या दीन्हे हजारो बरस बताये
तन की सुध बुध खो बैठे वो चित गिरे धरती पर जाए
करते रहे वो लेटे लेटे प्रभु की भक्ति ध्यान लगाए
दीमक चढ़ गई उनके ऊपर घर मिटटी से लिया बनाये
दीमक चढ़ गई उनके ऊपर
F:- दीमक चढ़ गई उनके ऊपर घर मिटटी से लिया बनाये
गोवर्धन की देख तपस्या स्वयं नारायण गए है आये
विष्णु बोले उस ब्रह्मण से तुमसा भक्त मेरा कोई नाये
भक्त मेरे गोवर्धन देखो दर्शन देने गया मै आये
तब बोले ब्रह्मण विष्णु से हाथ जोड़ के शीश नवाये
प्रभु नहीं हट सकता हूँ मै दीमक ने मोहे लिया दबाये
बैठ जाओ मेरी छाती पर अपने दर्शन देयो कराये
तब श्री विष्णु गोवर्धन की बैठ गए छाती पर आये
लेटे लेटे ही ब्रह्मण ने लीन्हे प्रभु के दर्शन पाए
लेटे लेटे ही ब्रह्मण ने
F:- लेटे लेटे ही ब्रह्मण ने लीन्हे प्रभु के दर्शन पाए
फिर बोले विष्णु ब्रह्मण से भक्त लेयो वर हमसे पाए
गोवर्धन ने विष्णु से फिर बाचा लीन्हा भरवाए
मांग वर ब्रह्मण से हरी से हमें छोड़ कर आप ना जाए
तुम बैठे रहना ऐसे ही मेरी छाती पर बतलाये
सदा रहो नजरो के सामने दर्शन पाता रहूं बताये
बैठे रह गए वही विष्णु हो कर वचनबद्ध समझाए
दर्शन करते करते ब्रह्मण फिर खो गए ध्यान में जाए
तब विष्णु ने खुद अपने को और भक्त ब्रह्मण को जाए
तब विष्णु ने खुद अपने को
F:- तब विष्णु ने खुद अपने को और भक्त ब्रह्मण को जाए
बना लिया पत्थर का अंतर्ध्यान हो गए जाए
त्रैता युग में जब नारायण राम रूप में गए थे आये
लंका में जाने को सिंधु में रहे थे राम जब सेतु बनवाये
पडी जरूरत पथरो की हनुमान से बोले जाए
हनुमान तुम पथरो का देयो इंतजाम करवाए
हनुमान और वानर सेना पत्थर लेने पहुंची जाए
पत्थर सारी वानर सेना हिमालय पर्वत से रही लाये
नल और नील के द्वारा राम ने दिया शरू निर्माण कराये
नल और नील के द्वारा राम ने
F:- नल और नील के द्वारा राम ने दिया शरू निर्माण कराये
हनुमान और वानरों ने दिए बहुत पत्थर पहुँचाये
एक पर्वत वहां ऐसा पाया जिसे रहे हनुमान उठाये
हनुमंत बलवंत हार गए उनसे पर्वत हिला ही नाये
हनुमान बोले पर्वत से हाथ जोड़ कर शीश नवाये
तुमसे बड़े बड़े पर्वत को एक हाथ से लिया उठाये
तुम मुझसे ना उठ पाए आखिर तुम हो कौन बलाये
पडी जरूरत मुझे आपकी प्रभु राम रहे पुल बनवाये
मै उनका सेवक हूँ भैया हनुमंत कह के मुझे बुलाये
मै उनका सेवक हूँ भैया
F:- मै उनका सेवक हूँ भैया हनुमंत कह के मुझे बुलाये
सुन कर हनुमान की बाते पर्वत बोला बैन उचार
तुम भी प्रभु के भक्त हो भैया हम भी प्रभु के भक्त बताये
नाम हमारा गोवर्धन है अचल हूँ मै चल सकता नाये
प्रभु राम के चरणों में तुम हमे ले चलो देयो लगाए
हमने वजन कर लिया हल्का अब तुम मुझको को लियो उठाये
ले के हनुमान पर्वत को आसमान ने उड़ गए जाए
पहुंच गए मथुरा के ऊपर गया संदेश प्रभु का आये
पुल पूरा बन गया है अब तो अब कोई पत्थर को ना लाये
पुल पूरा बन गया है अब तो
F:- पुल पूरा बन गया है अब तो अब कोई पत्थर को ना लाये
हनुमान तब सोच में पड़ गए गोवर्धन का क्या किया जाए
उतर गए वो मथुरा में ही रख दीन्हे गोवर्धन जाए
जैसे ही उड़ के चले वहां से हनुमंत अपने कदम बढाए
टांग पकड़ ली गोवर्धन ने हनुमान की कस के जाए
खूब छुड़ाने की कोशिश की बजरंगी ने जोर लगाए
लेकिन टांग छुड़ा ना पाए विवश हो गए बल आजमाए
गोवर्धन बोले बजरंगी कितना भी लो जोर लगाए
टांग नहीं छोडूंगा तेरी धोखा दिया है तुमने आज
टांग नहीं छोडूंगा तेरी
F:- टांग नहीं छोडूंगा तेरी धोखा दिया है तुमने आज
जाना था भगवान् से मिलने अध्वर छोड़ दिया क्यों लाये
हनुमान पड़ गए संकट में प्रभु से लीन्ही डोर लगाए
प्रभु इस गोवर्धन से आ कर मुझको लेयो छुड़ाए
हनुमान की करुण पुकार श्री राम तक पहुंची जाए
श्री राम बोले हनुमंत से सूना उन्होंने ध्यान लगाए
कहा भक्त गोवर्धन को तुम इतना कह कर दियो समझाए
द्वापर युग में आऊंगा मै उनसे भेटे करूंगा आये
बजरंगी ने गोवर्धन से कहा जो राम ने दिया बताये
बजरंगी ने गोवर्धन से
F:- फिर ना करो तुम गोवर्धन प्रभु मिलेंगे तुमसे आये
द्वापर युग में कृष्ण युग में लेंगे प्रभु अवतार बताये
यही वो सारे दिन खेलेंगे वही वो अपनी गाये चराये
करते रहना दर्शन उनके लेना अपनी प्यास बुझाये
एक दिन अपनी ऊँगली पर लेंगे तुमको कृष्ण उठाये
कृष्ण मुरारी आ के तुम्हारी देंगे पूजा शुरू कराये
जानकारी मोहे सारी श्री राम ने दायी बताये
इतना जान कर गोवर्धन तो मन में गए बहुत हर्षाये
इतना जान कर गोवर्धन तो
F:- इतना जान कर गोवर्धन तो मन में गए बहुत हर्षाये
छोड़ दिया हनुमंत को उसने और वही पर बस गए जाए
जब द्वापर आया तो विष्णु कृष्ण रूप में जन्मे आये
नन्द यसोदा ने कान्हा का पालन पोषण किया बताये
जब छह साल के भये कन्हैया मैया से यूँ बोले जाए
आज कौन त्यौहार हो मैया रही हो जो पकवान बनाये
बोली मैया सुनो कन्हैया आज इंद्र को पूजा जाए
वो अपनी धरती पर कान्हा देते है पानी बरसाए
इंद्र देवता को ब्रजवासी खीर पूरा से पूजे जाए
इंद्र देवता को ब्रजवासी
F:- इंद्र देवता को ब्रजवासी खीर पूरा से पूजे जाए
बोले कन्हैया सुन मेरी मैया गोवर्धन को पूजा जाए
दिन भर हम सब गाये चराते गोवर्धन पर्वत पर जाए
हट कर गए कान्हा मैया से यसोदा माँ को लिया बनाये
कृष्ण कन्हैया ने गोवर्धा खीर पुआ से लिए पुजवाये
रुष्ट हो गए कृष्ण देवता ब्रज में दिया जल बरसाए
सात दिनों तक लगातार ही जल बरसा दिया बतलाये
हाहाकार मची लोगो में ब्रज मंडल डूबा ही जाए
तब कान्हा ने गोवर्धन को एक ऊँगली पर लिया उठाये
तब कान्हा ने गोवर्धन को
F:- तब कान्हा ने गोवर्धन को एक ऊँगली पर लिया उठाये
कान्हा ने पर्वत के निचे ब्रजवासी को लिया बुलाये
कृष्ण कन्हैया ने ब्रजवासी जल प्रलय से लिए बचाये
इंद्र देवता ने ये सोचा डूब गया होगा ब्रज हाय
जब देखा देवराज ने आ के धूल वहां उड़ती दिखलाये
कृष्ण कन्हैया ने जल सारा गोवर्धन को दिया पिलाये
जय जय गोवर्धन की बोले ब्रजवासी सब ख़ुशी मनाये
जय जय हो मेरे कृष्ण कन्हैया गुज उठी अम्बर में जाए
तब से पूजा शुरू हो गई गोवर्धन की रहे बताये
तब से पूजा शुरू हो गई
F:- तब से पूजा शुरू हो गई गोवर्धन की रहे बताये
इंद्र देवता ने कान्हा से मांगी माफ़ी शीश नवाये
हे भगवान् मुझे माफ़ कीजिये मुझे अभिमान गया था आये
चूर हुआ अभिमान ये मेरा गया मै तेरी शरण में आये
इंद्र देवता माफ़ कर दिए कृष्ण ने तब जाए
जय जय बोलो गोवर्धन की प्रेम से भक्तो शीश नवाये
जय बोलो राधा रानी की नाम कृष्ण का संग लगाए
करे प्रार्थना गोवर्धन से करियो हम अपने ध्यान लगाए
लिखे रमेश भैया ने आल्हा संजो बघेल ने दिया सुनाये
संजो बघेल ने दिया सुनाये गोवर्धन महाराज की कथा ये गाये
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