Current Date: 23 Dec, 2024

अक्रूर जी और श्री कृष्ण की कहानी (Akrur Ji Aur Shri Krishna Ki Kahani)

- The Lekh


अक्रूर जी और श्री कृष्ण की कहानी

बात उस समय की है जब श्री कृष्ण का जन्म नहीं हुआ था। कंस ने आकाशवाणी को सुनकर अपने पिता राजा उग्रसेन काे बंदी बना लिया था और खुद राजा बन बैठा था। अक्रूर जी उन्हीं के दरबार में मंत्री के पद पर आसीन थे। रिश्ते में अक्रूर जी वासुदेव के भाई थे। इस नाते से वह श्री कृष्ण के काका थे। इतना ही नहीं अक्रूर जी को श्रीकृष्ण अपना गुरु भी मानते थे।

जब कंस ने नारद मुनी के मुंह से सुना कि कृष्ण वृंदावन में रह रहे हैं, तो उन्हें मारने के विचार से कंस ने अक्रूर जी को अपने पास बुलाया। उसने अक्रूर जी के हाथ निमंत्रण भेज कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मथुरा बुलाया।

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अक्रूर जी ने वृंदावन पहुंचकर श्री कृष्ण को अपना परिचय दिया और कंस के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार के बारे में उन्हें बताया। साथ ही आकाशवाणी के बारे में भी श्रीकृष्ण को बताया कि उन्हीं के हाथों कंस का वध होगा।

अक्रूर जी की बात सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम उनके साथ कंस के उत्सव में शामिल होने के लिए निकल पडे़। रास्ते में अक्रूर जी ने कृष्ण और बलराम को कंस के बारे में और युद्धकला के बारे में बहुत सारी जानकारियां दी। इस वजह से श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना गुरु मान लिया था

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मथुरा पहुंचने के बाद श्रीकृष्ण ने कंस को मार गिराया और मथुरा के सिंहासन पर वापस राजा उग्रसेन को बैठा दिया और अक्रूर जी को हस्तिनापुर भेज दिया।

कुछ समय के बाद कृष्ण ने अपनी द्वारका नगरी की स्थापना की। वहां पर अक्रूर जी पांडवों का संदेश लेकर आए कि कौरवों के साथ युद्ध में उन्हें आपकी सहायता चाहिए। इस पर कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया, जिससे वो महाभारत का युद्ध जीत सके।

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कहा जाता है कि अक्रूर जी के पास एक स्यमंतक नामक मणि थी। वह मणि जिसके पास रहती थी, वहां पर कभी भी अकाल नहीं पड़ता था। महाभारत के युद्ध के बाद अक्रूर जी श्री कृष्ण के साथ द्वारका आ गए थे। जब तक अक्रूर जी द्वारका में रहे, तब तक वहां खेतों में अच्छी फसल होती रही, लेकिन उनके जाते ही वहां अकाल पड़ गया। इसके बाद श्री कृष्ण के आग्रह पर अक्रूर जी वापस द्वारका आए और नगरवासियों के सामने स्यमंतक मणि दिखाई, जिसके बाद श्री कृष्ण पर लगा स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप गलत साबित हुआ। बताया जाता है कि इसके कुछ समय के बाद अक्रूर जी ब्रह्म तत्व में लीन हो गए थे।

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It is about the time when Shri Krishna was not born. Kansa had captured his father King Ugrasena by listening to Akashvani and became the king himself. Akrur ji was sitting on the post of minister in his court. Akrur ji was Vasudev's brother in relation. In this connection, he was the uncle of Shri Krishna. Not only this, Shri Krishna also considered Akrur ji as his guru.

When Kansa heard from Narad Muni that Krishna was living in Vrindavan, with the idea of ​​killing him, Kansa called Akrur to him. He sent an invitation to Akrur ji and called Krishna and his elder brother Balram to Mathura.

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Akrur ji reached Vrindavan and introduced himself to Shri Krishna and told him about the atrocities committed by Kansa. Along with this, Shri Krishna was also told about Akashvani that Kansa would be killed by his own hands.

After listening to Akrur ji, Shri Krishna and Balram left with him to attend Kansa's festival. On the way, Akrura gave a lot of information about Kansa and the art of warfare to Krishna and Balarama. Because of this, Shri Krishna accepted him as his guru.

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After reaching Mathura, Shri Krishna killed Kansa and put King Ugrasen back on the throne of Mathura and sent Akrur ji to Hastinapur.

After some time Krishna established his city of Dwarka. There Akrura ji brought the message of Pandavas that they need your help in the war with Kauravas. On this, Krishna supported the Pandavas, so that they could win the war of Mahabharata.

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It is said that Akrur ji had a gem named Syamantaka. There was never a famine in the place where the gem lived. After the war of Mahabharata, Akrur ji had come to Dwarka with Shri Krishna. As long as Akrur ji stayed in Dwarka, till then there was a good crop in the fields, but as soon as he left there was a famine there. After this, on the request of Shri Krishna, Akrur ji returned to Dwarka and showed the Syamantaka gem in front of the townspeople, after which the allegation of stealing the Syamantaka gem against Shri Krishna was proved wrong. It is said that after some time, Akrur ji got immersed in the Brahma element.

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