आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥-4
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की आरती कुंजबिहारी की...॥-2
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै बजे मुरचंग मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥-2
जहां ते प्रकट भई गंगा सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा बसी शिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥-2
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,
कटत भव फंद, टेर सुन दीन दुखारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥-11
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