आल्हा श्री गणेश जी की
जय जय हो नाथ गणेशा संजो तुमको रही मनाये
दे दो इतना ज्ञान गजानन हमसे भूल नहीं हो जाए
हंस वाहिनी मात सरस्वती सदा विराजो कंठ पे आये
गणपति का गुणगान करूँ मै जिनकी पूजा सबको भाये
आदि गणेश आपके आगे सारे देवता शीश नवाये
ब्रह्मा विष्णु और मुनिवर शरण तुम्हारी चल के आये
कष्ट कलेशो को हरते हो भक्तो के तुम सदा सहाये
श्रद्धा पूर्वक जो कोई पूजे प्रभु तेरे ये पावन पांव
श्रद्धा पूर्वक जो कोई पूजे
श्रद्धा पूर्वक जो कोई पूजे प्रभु तेरे ये पावन पांव
पुण्य प्राप्त होते है उसको सारे पाप नष्ट हो जाए
सबसे पहले शुभ कार्यो में तेरी पूजा सब करवाए
बुधवार के दिन भगतगण श्री गणेश का व्रत रखाये
विघ्न विनाशक गणपति बाबा भक्तो की पीड़ा हर जाए
भादो मास की तिथि चतुर्थी गणेश जयंती भक्त मनाये
११ दिन तेरी करते पूजा लड्डुवन से तेरा भोग लगाए
भजन कीर्तन करे तुम्हारा शाम को तेरी ज्योत जलाये
श्री गणेश अपने भक्तो पर देते है कृपा बरसाए
श्री गणेश अपने भक्तो पर
श्री गणेश अपने भक्तो पर देते है कृपा बरसाए
एक भक्त की सुनो कहानी बुढ़िया रानी की बतलाये
रहती थी वो एक गांव में अपने एक बहु के साथ
करे झोपडी में ही बसेरा इतने बुरे घर के हालात
भीगे बुढ़िया टूटे झोपड़िया जब भी आती थी बरसात
दुखी देखकर वो अपने को प्रभु को याद करे दिन रात
प्रभु से वो करती फरियादें दुरो करो लाचारी नाथ
इसी गांव में आठ साल का गया एक अनजाना आये
हाथ में दूध भरी चम्मच थी जरा सी चावल मुट्ठी दवाये
हाथ में दूध भरी चम्मच थी
हाथ में दूध भरी चम्मच थी जरा सी चावल मुट्ठी दवाये
घूम घूमकर गली गली में सबसे यही गुहार लगाए
भूख लगी है मुझको भारी कोई तो दे मेरी खीर पकाये
फ़टे पुराने कपडे पहने द्वार द्वार आवाज लगाए
थोड़ा दूध देख महिलाये लड़के को पागल बतलाये
कोई सुने ना उसकी विनती उलटा देती उसे भगाये
लेके घूमे पसना जा की मति गई बौराये
भूखा प्यासा फिरे वो लड़का हुआ निराश गया दुखिआए
निकल गया वो गांव से बाहर उसे झोपड़ी गई दिखाए
निकल गया वो गांव से बाहर
निकल गया वो गांव से बाहर उसे झोपड़ी गई दिखाए
जिसमे बैठी थी वो बुढ़िया पास उसकी पंहुचा जाए
बोला लड़का उस बुढ़िया से मुझे भूख माँ रही सताए
ये लो दूध और ये लो चावल मेरे लिए दो खीर बनाये
बुढ़िया ने जब देखा लड़का उसको तरस गए था आये
लेकिन वो क्या करे बेचारी दूध एक चम्मच दिखलाये
बोली बुढ़िया उस बच्चे से खीर तेरी कैसे बन पाए
थोड़े चावल है पुड़िया में थोड़ा दूध रहा दिखलाये
बोला बेटा जो भी है माँ कोशिश करके देख ले जाए
बोला बेटा जो भी है माँ
बोला बेटा जो भी है माँ कोशिश करके देख ले जाए
जो भी खीर पकेगी मैया उसी से लूंगा भूख मिटाये
सुनकर बात उस लड़के की बुढ़िया के आंसू आ जाए
तब एक छोटे से बर्तन में दीन्हि उसने खीर बनाये
जैसे ही खीर परोसी उसको पूरी थाली भर गई जाए
किन्तु खीर की धार ना टूटी और भी बर्तन भर गए जाए
घर के सारे बर्तन भर गए छोटे बड़े बचा कुछ नाये
खीर खत्म ना हुयी अभी भी तब लड़का बोला है माये
बड़े बड़े बर्तन ले आओ आस पडोसी के घर जाए
बड़े बड़े बर्तन ले आओ
बड़े बड़े बर्तन ले आओ आस पडोसी के घर जाए
तब बुढ़िया ने उसी गांव से लीन्हे बड़े पात्र मंगवाये
खीर से भर गए तभी लबालब तब लड़का बोला है माये
सारे गांव को न्योता दे दो भंडारा अब देयो कराये
बुढ़िया ने फिर सारे गांव को न्योता दीन्हा था भिजवाए
सुनकर बुढ़िया का वो न्योता नर नारी सब हंसी उड़ाए
खुद खाने के पड़े है लाले बुढ़िया सबको खीर खिलाये
शायद बुढ़िया भई बाबरिया या फिर गई है वो पगलाए
लोग इक्क्ठे भये गांव के सलाह मस्वारा रहे बनाये
लोग इक्क्ठे भये गांव के
लोग इक्क्ठे भये गांव के सलाह मस्वारा रहे बनाये
कोई कहे चलो तो भैया बुढ़िया घर भंडारा खाये
कहे कोई जाने से पहले घर पर ही भोजन खा जाए
लौट के भी खाना खा लेंगे पहले देखे वहां पे जाए
सभी एकजुट हो कर भैया पहुंचे बुढ़िया के घर जाए
भीड़ इक्क्ठी भई देखकर उसकी बहु गई घबराये
खीर पारस लीन्ही थाली में कही खीर सब निपट ना जाए
श्री गणेश का नाम सुमिर कर चुपके खीर गई वो खाये
बैठ गए सब लोग लाइन में शुरू हुआ भंडारा जाए
बैठ गए सब का वहां पर
बैठ गए सब लोग लाइन में शुरू हुआ भंडारा जाए
पुरे गांव के सब नर नारी गए प्रेम से भोजन पाए
जो घर भोजन कर के आया वही लोग रहे पछताए
भंडारा सब लोग खा गए फिर बच्चे को लिया बुलाये
बेटा अब तुम भी कुछ खा लो लेयो अपनी भूख मिटाये
तब बोला बच्चा बुढ़िया से मैंने तो लिया भोग लगाए
अब तुम खा लो प्यारी मैया बढ़िया खीर बनी मनभाये
तुमने कब खा ली है बैठा तुम्हे तो खाते देखा नाये
बोला बेटा सबसे पहले लिया था मैंने भोग लगाए
बोला बेटा सबसे पहले
बोला बेटा सबसे पहले लिया था मैंने भोग लगाए
जब चुपके से तेरी बहु ने खीर ली पहले ही खाये
लेकर नाम गणेशा पहले उसने मुझको दी चटाये
तभी भूख भुझ गई मेरी माँ अब तुम भोजन कर लो आये
बच्चे ने अपने हाथो से बुढ़िया को दी खीर खिलाये
तब बुढ़िया बोली बच्चे से आँखों से आंसू बरसाए
क्या बेटा तुम श्री गणेश हो इस बुढ़िया को देयो बताये
तब वो लड़का श्री गणेश के रूप में प्रगट हो गया जाए
पांव पकड़ लीन्हे बुढ़िया ने रहे नाथ कृपा बरसाए
पांव पकड़ लीन्हे बुढ़िया ने
पांव पकड़ लीन्हे बुढ़िया ने रहे नाथ कृपा बरसाए
अपना एक पैर कुटिया में श्री गणेश ने दिया छपाये
हो गए अंतर्ध्यान प्रभु वो बुढ़िया देखत ही रह जाए
टूटी हुयी झोपडी उसकी बदल गई महलो में जाए
धन दौलत के भंडारे है नौकर चाकर शीश नवाये
विनय हमारी सुनो विनायक संजो के तुम बनो सहाये
जैसी कृपा करी बुढ़िया पर वैसी कृपा देयो बरसाए
रमेश भैया ने लिखा है आल्हा श्री गणेश को शीश नवाये
मनोकमना राजेंद्र की पूरी करो गजानन आये
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