F:- वरदाता गजराज गजानन करूँ तिहारा पहले ध्यान
फिर बांझन के दर्द की गाथा संजो करती आज बखान
इस बांझन का दुःख के मारे रहता जीवन लहू लुहान
अपने और पराये इसको करते रहते है अपमान
तभी किसी ने बतलाया था माता का पावन स्थान
उस माता के स्थान में जा के मिली एक प्यारी संतान
अगर भरोसा है माई पर पुरे होते है अरमान
वैष्णो मैया करुणा वाली खुशियों के देती वरदान
वैष्णो मैया करुणा वाली
वैष्णो मैया करुणा वाली खुशियों के देती वरदान
इस घटना को झूट ना जाने दिल्ली में रहता परिवार
मात पिता दिल्ली में रहते करते छोटा सा व्यापार
सब से प्रेम भावना रखते रखते सबसे आदर प्यार
समय इन्हे जब भी मिल जाता जाते वैष्णो माँ के द्वार
यथा योगय अपनी श्रद्धा से भंडारा करते हर बार
एक पुत्र था बड़ा हो गया पढ़ा लिखा था नौजवान
नए खयालो वाला लड़का बूत को ना माने भगवान्
मात पिता इस कारण हरदम रहते लड़के से परेशान
मात पिता इस कारण हरदम
मात पिता इस कारण हरदम रहते लड़के से परेशान
क्या होगा इसका ना जाने ना माने ये विधि विधान
कर्म को ही भगवान् मानता कर्म ही भक्ति करम महान
कर्म से ही सबकुछ मिलता है कर्म से बढ़ता है इंसान
ना देवी ना देवता कोई कर्म से बनते संत सुजान
कर्म बिना ना होता कोई इस दुनिया में भागयवाना
कर्म हीं कसिमत पर रोते कर्म से बनते है धनवान
बदकिस्मत का कर के बहाना ना करते रहते परेशान
कर्म के दम पर हो पाए है राम श्याम जग में भगवान्
कर्म के दम पर हो पाए है
कर्म के दम पर हो पाए है राम श्याम जग में भगवान्
कही नौकरी नहीं लगी तो अपने पिता का देता साथ
पिता का था व्यापार वहां जो उसमे बंटता उसका हाथ
इसके तो धंदा करने की बड़ी निराली थी हर बात
रोम रोम ईमान समाया नहीं ये रखता दिल में घात
हिरश्चंद्र के जैसा जीवन बेटा खूब ईमानदार
इस बेटे की शादी करने मिला एक बढ़िहं परिवार
दुल्हन सुन्दर रूपवान है बहु जो आयी आयी बहार
महीने हफ्ते साल बीत गए हुआ नहीं आंगन गुलजार
महीने हफ्ते साल बीत गए
महीने हफ्ते साल बीत गए हुआ नहीं आंगन गुलजार
किलकारी कब गूंजे घर में इसके लिए सब बेकरार
डॉक्टर गुनिया पंडा पुजारी सब से करवाया उपचार
भाति भाति की औषधि खायी वैद हाकिम गए सब हार
बच्चा ना होने के कारन सूना सूना है घर द्वार
कोशिश करते करते अब तो बीत गए पुरे १० साल
ताने सुनते बहु का समझो हो गया बुरा सा हाल
घर के लोग तो कुछ ना कहते बहार वाले करे सवाल
खुद से होने लगा बहु को बांझन कहलाने का मलाल
खुद से होने लगा बहु को
खुद से होने लगा बहु को बांझन कहलाने का मलाल
कैसे बढ़ेगा वंश हमारा सबके दिल में यही ख्याल
दुःख के सारे सोच सोच के बैठे बैठे हुए निढाल
रिश्तेदार पडोसी आ के देते इनको एक सलाह
ये भी संभव हो सकता है करो नहीं कोई परवाह
बात हमारी मानो भैया होगा ना परिवार तबाह
बच्चा गोद में ले आश्रम से दिलबा दे अगले सप्ताह
मन को मार के माँ और बापू जैसे तैसे भये तैयार
लड़का लेकिन ना कर पाया लोगो की सलाह स्वीकार
लड़का लेकिन ना कर पाया
लड़का लेकिन ना कर पाया लोगो की सलाह स्वीकार
बहु के मन में कांटे उठते दे जो बांझन नाम सुनाये
कभी कोसती है किस्मत को कभी वो शादी से पछताए
उसके दुःख को वही जाने ये दुनिया को समझे नाये
पति से क्या कह सकती विचारी तन्हाई में रोती जाए
कभी वो मर जाने की सोचे कभी ये जीवन है बेकार
कोख ना बच्चा दे पायी तो बोझ कहती है हर नार
जो नारी नहीं दे सकती है पति को अगर एक संतान
ऐसी नारी का डगडग में होता रहता है अपमान
ऐसी नारी का डगडग में
ऐसी नारी का डगडग में होता रहता है अपमान
गोद में कोई बच्चा लेना बात नहीं लड़के को रास
मात पिता को समझाता है क्यों होते हो आप निरास
हम दोनों में कमी नहीं तो नाहक होते है हतास
खुशियां आएंगी आंगन में हमको है पूरा विश्वास
गोद में बच्चा लेने को जब लड़का नहीं हुआ तैयार
व्याह दुसरा करबा दे हम मात पिता ने किया विचार
दुसरी शादी करवाने से कर दिया लड़के ने इंकार
सौतन ला कर के बीवी का जीवन करूँगा ना बेकार
सौतन ला कर के बीवी का
सौतन ला कर के बीवी का जीवन करूँगा ना बेकार
ना मढ़िया ना मंदिर जाए ना पत्थर में माने जाने
पत्थर है क्या बात सुनेगे करेंगे क्या पत्थर कल्याण
वो पत्थर की हर मूरत को समझ रहा केवल बेजान
पत्थर को क्यों देवी देवता मान रहा है हिन्दुस्तान
लेकिन उसके मात पिता भी माने मूरति को भगवान्
वैष्णो देवी के दर्शन को मात पिता हर साल ही जाए
समय आ गया फिर जाने का बहु करे लड़के से बात
लड़के ने तो मना कर दिया बहु गई सासु के साथ
लड़के ने तो मना कर दिया
लड़के ने तो मना कर दिया बहु गई सासु के साथ
बहु तो जाती मंदिर मढ़िया पूजा में भी ध्यान लगाए
अब तक गोद भरी ना उसकी कुछ विश्वास भी घटता जाए
कर के भरोसा माँ रानी पर तीन चले वैष्णो धाम
पुरे सफर में माँ अम्बे का जपते रहे प्रेम से नाम
भेट जो लाये थे माता को प्रेम पूर्वक दिए चढ़ाये
बैठे रहे कुछ देर वहां पर और दिए फ़रियाद लगाए
बहु ने देखा माँ अम्बे को नजर हुयी दोनों की चार
बहु के आँखों से फिर झर झर बहती रही आंसू की धार
बहु के आँखों से फिर झर झर
बहु के आँखों से फिर झर झर बहती रही आंसू की धार
माता से क्या बहु ने बोला क्या थी इसकी करुण पुकार
आंसू अब तक थामे नहीं है बरस रहे है ये लगातार
मगर पुजारी ने कुछ समझा माता से कुछ रहा बताये
माँ के चरण से फूल उठाकर बहु को दे कर रहा चुपाये
बेटी जो तू चाह रही है माँ ने तुझको दिया कहाये
बिना बताये माँ अम्बे ने तेरे दुःख को लिया है जान
तू जो चाहे वैसा होगा बात हमारी लेना मान
माँ ने फूल दिया जो तुझको फूल नहीं माँ का वरदान
माँ ने फूल दिया जो तुझको
माँ ने फूल दिया जो तुझको फूल नहीं माँ का वरदान
फूल बहु ने ग्रहण कर लिया जैसा पुजारी ने बतलाये
हाथ जोड़ का माथा टेका चौखट पर दिया शीश नवाये
सास सासुर और बहु के दिल से दीपक आसा कर जल जाए
मन में एक सुनहरी ज्योति माँ अम्बे ने दिया जलाये
हंसी ख़ुशी घर वापस लौटे नहीं उदासी मन में छाये
अपने पति से पूरी घटना पत्नी ने है दिया सुनाये
सूना पति ने प्रेम से लेकिन उसको ना विश्वास कहाये
ईश्वर है मै मान रहा हूँ पत्थर में पर देवी नाये
ईश्वर है मै मान रहा हूँ
ईश्वर है मै मान रहा हूँ पत्थर में पर देवी नाये
पत्नी धर्म का नियम पूर्वक हर दिन अपना फर्ज निभाए
महीने और छह महीने बीते कोख तो उसकी भरी कहाये
अम्बे को दिन रात वो भजती लाज रखियो मोरी माये
कलंक बांझन का माथे से अम्बे रानी दियो मिटाये
पूरा समय हुआ तो घर में बालक सुन्दर जन्मा आये
नहीं ठिकाना ख़ुशी का कोई फीके सब त्यौहार कहाये
घर में खुशहाली आयी है आज तो दस सालो के बाद
दुःख हरनी सुखदाति अपनी वैष्णो का आशीर्वाद
दुःख हरनी सुखदाति अपनी
दुःख हरनी सुखदाति अपनी वैष्णो का आशीर्वाद
चौक छटी बच्चे की कर के चले है वैष्णो माँ के द्वार
नहीं यकीं पति को लेकिन हो के बेमन से तैयार
मढ़िया और किसी मंदिर में आया है ये पहली बार
हका वक्का रह गया वो तो देख वहां पर भीड़ अपार
किया जो दर्शन माँ रानी में मेल हटा मन से तत्काल
नजर मिलाया जो माता से मिट गया दिल से सभी मलाल
पलक झपकते उसके पति की दोनों आंखे हो गई लाल
सावन बन के बह गई अंखिया माई तूने किया निहाल
सावन बन के बह गई अंखिया
सावन बन के बह गई अंखिया माई तूने किया निहाल
आज उसे विश्वास हो गया पत्थर में भी है भगवान्
पत्थर की वैष्णो माता ने मुझे दिया प्यारी संतान
पिता बनाकर माता तुम ने बढ़ा दिया है मेरा मान
जन्म जन्म तक ना भूलूंगा वैष्णो माता का एहसान
करुणा की अवतारा हो तुम तो मै मुर्ख पापी नादान
आऊंगा हर साल यहाँ पर मैंने मन में लिया है ठान
तेरी करुणा की ज्योति से जगमग है ये दोनों जहां
तेरी करुणा की ज्योति से जगमग है ये दोनों जहां
लिखा निरंजन सेन ने आल्हा संजो बघेल करे गुणगान
संजो बघेल करे गुणगान संजो बघेल करे गुणगान
अगर आपको यह भजन अच्छा लगा हो तो कृपया इसे अन्य लोगो तक साझा करें।