M:- भक्तजनो आइये 28 काशी महालिंग साधना का श्रवण करे-
पार्वतीजी के पूछने पर जगत्गुरु महादेव ने काशी में स्थापित
महालिंगों की महिमा बताते हुए कहा- ये लिंग कलियुग में
अत्यन्त गोप्य होंगे, परन्तु उनका प्रभाव अपने-अपने स्थान का
परित्याग नही करेगा। इन दिव्य महालिंगों के दर्शन व स्मरण
करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है, सर्वदुःख एवं व्याधियां
समाप्त होती है। जो इन महालिंगों की आस्थापूर्वक आराधना
करता है, उसकी इस मृत्युलोक में कभी पुनरावृत्ति नही होती। यह
काशी तीर्थ का अनुपम कोष है।
1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ओंकारलिंगाय नमः।
2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिलोचनलिंगाय नमः।
3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महादेवलिंगाय नमः।
4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कृत्तिवासालिंगाय नमः।
5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं रत्नेश्वरलिंगाय नमः।
6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चन्द्रेश्वरलिंगाय नमः।
7 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं केदारेश्वरलिंगाय नमः।
8 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं धर्मेश्वरलिंगाय नमः।
9 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वीरेश्वरलिंगाय नमः।
10 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कामेश्वरलिंगाय नमः।
11 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं विश्वकर्मेश्वरलिंगाय नमः।
12 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मणिकर्णीश्वरलिंगाय नमः।
13 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अविमुक्तेश्वरलिंगाय नमः।
14 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं विश्वेश्वरलिंगाय नमः।
15 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शैलेश्वरलिंगाय नमः।
16 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं संगमेश्वरलिंगाय नमः।
17 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्वर्लीनेश्वरलिंगाय नमः।
18 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मध्यमेश्वरलिंगाय नमः।
19 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हिरण्यगर्भेश्वरलिंगाय नमः।
20 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ईशानेश्वरलिंगाय नमः।
21 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं गोमे्रक्षेश्वरलिंगाय नमः।
22 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वृषभध्वजेश्वरलिंगाय नमः।
23 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं उपशान्तेश्वरलिंगाय नमः।
24 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ज्येष्ठेश्वरलिंगाय नमः।
25 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं निवासेश्वरलिंगाय नमः।
26 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शुक्रेश्वरलिंगाय नमः।
27 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं व्याघ्रेश्वरलिंगाय नमः।
28 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं जम्बुकेश्वरलिंगाय नमः।
M:- आइये प्रयोग विधि के बारे में जानते है-
अभिचारिक दोष, ऋणसंकट, सर्वरोग एवं महाबली शत्रुओं से घिरने पर यह
प्रयोग शीघ्र फलदायी है। प्रत्येक लिंग के एक-एक हजार जप होम सहित
करें। महासिद्धि हेतु प्रत्येक लिंग के एक लाख जप सम्पूर्ण विधि से सम्पन्न
करें। आर्थिक लाभ मेंस्फटिक शिवलिंग एवं सर्वकार्य सिद्धि के लिये पारद
शिवलिंग के समक्ष यह साधना करें। इनके अभाव में शिवजी के चित्र तस्वीर
या यंत्र के समक्ष साधना आरम्भ कर सकते हैं। शत्रुनाश वअभिचारिक क्रिया
से मुक्ति हेतु श्मशान या भैरव मन्दिर में सर्वकर्म धर्मयुक्त, मौन, गुरुसेवा,
सामथ्र्यानुसार दान, देवता पर अटल भक्ति एवं विश्वास यह प्रमुख कत्र्तव्य
एक महान साधक के हैं। भगवान् शंकर के किसी भी कर्म में अभिमंत्रित
रुद्राक्ष कण्ठ या भुजा में अवश्य धारण करना चाहिये।रात्रिकाल में स्थान व
देह की रक्षा करते हुए जप करना श्रेष्ठ है। शुभपर्व काल, श्रावण मास या
कृष्णपक्ष चतुर्दशी (शिवरात्रि) कोगुरु की आज्ञा से साधना आरम्भ करें।
प्राचीन शिव मन्दिर में नित्य इन पवित्र 28 नामों से प्रचलित द्रव्य सहित 28
लोटे शुद्ध जल द्वारा शिवलिंग को स्नान कराने से शीघ्र ही मनुष्य को गुरु के
अभाव में योग्य गुरु की प्राप्ति होती है या इष्ट या मंत्र की स्वप्न में प्राप्ति होती
है। इसके साथ उक्त नामों से नित्य शिवलिंग पर बेलपत्र भी अर्पित करने
चाहिये। अन्य किसी प्रयोजन के लिये भी विधिपूर्वक यह प्रयोग किया जा
सकता है। यह प्रयोग सम्पूर्ण विधान के साथ 31 दिन तक करें।दिन में एक
बार शुद्ध सात्विक भोजन, सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य, भूमिशयन, सर्वकर्म धर्मयुक्त, मौन,
गुरुसेवा, सामथ्र्यानुसार दान, देवता पर अटल भक्ति एवं विश्वास यह प्रमुख
कर्तव्य एक महान साधक के हैं। भगवान् शंकर के किसी भी कर्म में
अभिमंत्रित रुद्राक्ष कण्ठया भुजा में अवश्य धारण करना चाहिये।
ॐ नमः शिवाय |
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