Current Date: 22 Nov, 2024

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग और उनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं (Bhagwan Shiv Ke 12 Jyotirling Aur Unse Judi Pauranik Kathaen)

- The Lekh


भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग और उनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं

12 Jyotirlinga Temples of India and their Beliefs – New Nation

शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव लोक कल्याण के लिए लिंग के रूप में वास करते हैं और भगवान शिव के बारह विग्रहों को द्वादश ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। भारतवर्ष में यह 12 ज्योतिर्लिंग अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं। इनमें सर्वप्रथम श्री सोमनाथ जी का स्मरण किया जाता है। श्रावण माह में ज्योतिर्लिंगों के दर्शन और पूजन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइये एक नजर डालते हैं परम पवित्र 12 ज्योतिर्लिंगों से जुड़ी कथाओं पर।

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श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग− गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में जूनागढ़ के पास वेरावल के समुद्र तट पर एक विशाल मंदिर में श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिवजी ने चंद्रमा को दक्ष प्रजापति के शाप से मुक्त किया था। इसी स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण ने एक शिकारी के तीर से अपने तलवे को बिंधवाया था और अपनी सांसारिक लीला समाप्त की थी। सोमनाथ जी का मंदिर अपने वैभव और समृद्धि के लिए भी विख्यात रहा है। इस मंदिर को कई बार देशी−विदेशी हमलावरों ने भी अपना निशाना बनाया। श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में जो कथा कही जाती है वह इस प्रकार है− ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 नक्षत्र कन्याओं का विवाह चंद्रमा से एक साथ ही किया था। परंतु चंद्रदेव की पसंद रोहिणी थी। रोहिणी की अन्य बहनें चंद्र देव की ओर से अनदेखी किए जाने से दुखी रहती थीं। जब दक्ष प्रजापति तक यह बात पहुंची तो उन्होंने चंद्र देव को सभी से समान व्यवहार करने के लिए समझाया। लेकिन जब चंद्र देव पर कोई असर नहीं पड़ा तो दक्ष ने चंद्र देव को क्षय रोग से ग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया। इससे चंद्र का शरीर निरंतर घटने लगा। संसार में चांदनी फैलाने का उनका काम रुक गया। सभी जीव कष्ट उठाने लगे और दया की पुकार करने लगे। चंद्रदेव ने सभी देवताओं, महर्षियों आदि को अपनी मदद के लिए पुकारा परंतु कोई उपाय नहीं मिला। इससे असहाय देवता चंद्र को लेकर ब्रह्माजी की शरण में पहुँचे। ब्रह्माजी ने चंद्रमा को अन्य देवताओं के साथ प्रभास क्षेत्र में सरस्वती के समुद्र से मिलन स्थल पर जाकर मृत्युंजय भगवान शिव की आराधना करने को कहा। इस पर चंद्रमा ने प्रभास क्षेत्र में देवताओं के साथ जाकर छह मास तक दस करोड़ महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। चंद्र देव की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती वहां प्रकट हुए और चंद्र देव को अमरता का वरदान दिया। दक्ष के शाप का असर उन्होंने यह वरदान देकर कम कर दिया कि महीने के पंद्रह दिनों में चंद्र देव के शरीर का थोड़ा−थोड़ा क्षय घटेगा और इन पंद्रह दिनों को कृष्ण पक्ष कहा जाएगा। बाद की पंद्रह तिथियों में रोज चंद्र देव का शरीर थोड़ा−थोड़ा बढ़ते हुए पंद्रहवें दिन पूरा हो जाएगा। इन पंद्रह दिनों को शुक्ल पक्ष कहा जाएगा। इस वरदान से चंद्र देव का संकट टल गया और वह फिर से समूचे जगत पर चांदनी बरसाने लगे। इस दौरान चंद्र देव और अन्य देवताओं ने भगवान शिव से माता पार्वती समेत वहीं वास करने की प्रार्थना की, जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया और वहीं वास करने लगे।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग− कर्नाटक के कृष्णा जिले में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में महादेव शिव का महादेवी सहित वास है। यह ज्योतिर्लिंग कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर है। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि श्री शैल के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी कथा इस प्रकार है− भगवान शिव के दोनों पुत्र श्रीगणेश और स्वामी कार्तिकेय में इस बात पर विवाद हो गया कि पहले किसका विवाह हो। इस पर पिता भगवान शिवजी और माता पार्वती ने कहा कि जो पहले धरती की परिक्रमा करके लौटेगा उसी का विवाह पहले कराया जाएगा। इस पर फुर्तीले कार्तिकेय तुरंत परिक्रमा के लिए निकल गए लेकिन श्रीगणेश चूंकि शरीर से मोटे थे, इसलिए वह उस फुर्ती से नहीं निकल पाए और इसके लिए उन्होंने नया उपाय ढूंढ निकाला। शास्त्रों के अनुसार, माता−पिता की पूजा धरती की ही परिक्रमा मानी जाती है और उसका भी वही फल मिलता है जोकि पूरी धरती की परिक्रमा से मिलता है। इस उपाय के ध्यान में आते ही श्रीगणेश जी ने माता पार्वती और पिता शिव शंकर को आसन पर बिठाकर उनकी पूजा शुरू कर दी। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव शंकर ने उनकी शादी विश्वरूप प्रजापति की दो कन्याओं रिद्धि और सिद्धि से करा दी। इधर जब तक स्वामी कार्तिकेय धरती की परिक्रमा करके माता−पिता के पास पहुंचे तब तक श्रीगणेश जी क्षेम और लाभ नाम के दो पुत्रों के पिता भी बन चुके थे। इस पर कार्तिकेय माता−पिता के पैर छूने के बाद रूठकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। माता−पिता बाद में उन्हें मनाने के लिए मल्लिका और अर्जुन के रूप में वहां गए तो उनके आने की खबर सुनते ही कार्तिकेय वहां से भागकर तीन योजन पर चले गए। क्रौंच पर्वत (श्री शैल) क्षेत्र के निवासियों के कल्याण हेतु भगवान शिव शंकर और माता पार्वती वहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में बस गए।

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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग− श्री महाकालेश्वर का स्थान भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में तीसरा है। यह मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी में स्थित है। उज्जैन में क्षिप्रा नदी से कुछ दूरी पर स्थित मंदिर में ज्योतिर्लिंग विद्यमान है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी कथा इस प्रकार है− उज्जैन में चंद्रसेन नामक शिवभक्त राजा था। श्रीकर नामक एक पांच वर्ष के बालक ने एक बार राजा को शिवलिंग की पूजा करते देखा तो घर आते समय वह एक पत्थर का टुकड़ा घर ले आया और उसी को शिवलिंग मानकर उसकी पूजा करने लगा। यह देखकर उस बालक की माता ने पत्थर उठाकर घर से बाहर फेंक दिया और बालक को घर के अंदर ले जाने लगी तो बालक चीख−पुकार करने लगा और भगवान शिव शंकर को मदद के लिए पुकारते−पुकारते बेहोश हो गया। इस पर भगवान शिव से रहा नहीं गया और जब बालक होश में आया तो उसने देखा कि सामने सोने के दरवाजों वाला विशाल मंदिर है। उसके अंदर उपस्थित ज्योतिर्लिंग रोशनी की अद्भुत छटा बिखेर रहा है। इस पर बालक पहले तो अचरज में डूबा और फिर खुश होकर भगवान शिव की स्तुति करने लगा। जब बालक की माता ने यह सब देखा तो बालक को उठा कर गले से लगा लिया। यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई और राजा चंद्रसेन भी यह चमत्कार देखने को आया और उसने उस बालक की भक्ति की सराहना की। तभी वहां हनुमान जी प्रकट हुए और उन्होंने भी बालक की भक्ति की सराहना की। यही ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग− मध्य प्रदेश की ही नगरी शिवपुरी में मान्धाता पर्वत पर भगवान शिव ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में मौजूद हैं। इसकी स्थापना से जुड़ी कथा इस प्रकार है− एक बार विन्ध्य पर्वत ने छह महीने तक ओंकारनाथ की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिवजी प्रकट हुए और विन्ध्यांचल को वरदान स्वरूप ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां पर वास करने का वचन दिया।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग− केदारनाथ ज्योतिर्लिंग हिमालय पर्वत श्रृंखला में केदार नामक पर्वत पर स्थित है। यह पर्वत हमेशा तीन ओर से बर्फ से ढंका रहता है। केदारनाथ तीर्थ की गणना केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के रूप में चार धामों में की जाती है। कहा जाता है कि बद्रीनाथ के दर्शन करने वाले भक्तों को पहले केदारनाथ के दर्शन करना जरूरी है अन्यथा उनकी तीर्थयात्रा का कोई फल नहीं मिलता। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी कथा इस प्रकार है− नर और नारायण नामक दो ऋषि जिनको भगवान श्री विष्णु का अवतार माना जाता है, उन्होंने एक बार अपनी तपस्या से भगवान शिवजी को प्रसन्न कर लिया फिर जब भगवान शिवजी प्रकट हुए तो नर और नारायण की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए वहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने का वचन दिया।

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भीमशंकर ज्योतिर्लिंग− भीमशंकर ज्योतिर्लिंग असम में गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुत्र पहाड़ी पर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी कथा इस प्रकार है− कामरूप देश जोकि असम राज्य ही है, में कामरूपेश्वर नामक एक महाप्रतापी और महान शिवभक्त राजा का राज था। एक बार महाराक्षस भीम वहां आया और धर्म के उपासकों को पूजा छोड़ने की धमकी देने लगा और ऐसा करते−करते वह शिवभक्ति में लीन राजा के पास पहुंचा और उसे ललकारने लगा। इस पर राजा ने उसकी ललकार को अनसुनी कर दिया और शिवभक्ति में लीन रहे। भीम ने राजा को फिर ललकारा और भगवान शिवजी की निंदा करने लगा। जब राजा ने उसे ऐसा करने से मना किया तो वह नहीं माना और उसने राजा पर तलवार से वार कर दिया। तलवार राजा की बजाय शिवलिंग पर लगी तभी भगवान शिवजी तत्काल प्रकट हुए और उन्होंने महाराक्षस का वध कर डाला। इस पर ऋषियों और मुनियों ने भगवान शिव से वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने की प्रार्थना की तो शिवजी मान गए। तभी से उस ज्योतिर्लिंग का नाम भीमशंकर पड़ गया।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग− काशी नगरी में श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। कहा जाता है कि प्रलयकाल में भी काशी नगरी का कुछ नहीं बिगड़ता। भगवान शिवजी इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और फिर सृष्टि की शुरुआत होने पर इसे नीचे उतार देते हैं। इसी स्थल पर भगवान श्री विष्णुजी ने स्रोनिज सृष्टि पैदा करने की कामना लेकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया था। इस दौरान भगवान श्रीविष्णु के सोने पर उनकी नाभि से कमल पर बैठे ब्रह्माजी ने जन्म लिया था जिन्होंने सारे संसार की रचना की थी। कहा जाता है कि यहां प्राण त्याग करने वालों के कान में भगवान शिवजी तारक मंत्र का उपदेश देते हैं जिससे वह प्राणी मोक्ष को पा जाता है। काशी में यह ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ मंदिर में प्रतिष्ठापित है।

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त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग− महाराष्ट्र के नासिक में त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यहां एक नहीं तीन छोटे−छोटे लिंग हैं, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीन देवों का प्रतीक कहा जाता है। इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग को त्र्यम्बकेश्वर कहा गया है। कहा जाता है कि गौतम ऋषि और गोदावरी की प्रार्थना से भगवान शिव ने यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विश्व विख्यात हुए।

श्री वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग− झारखंड के देवधर में स्थित है श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग। कहा जाता है कि एक बार राक्षसों के राजा रावण ने कैलाश पर्वत जाकर भगवान शिवजी की तपस्या की और अपने नौ सिर काट कर बारी−बारी से शिवलिंग पर चढ़ा दिए। जब वह अपना दसवां सिर काटने लगा तो भगवान शिवजी प्रकट हुए और रावण से वरदान मांगने को कहा। इस पर रावण ने ज्योतिर्लिंग रूप में भगवान शिवजी से चलकर लंका में रहने का अनुरोध किया तो भगवान शिवजी ने कहा कि यदि ज्योतिर्लिंग मार्ग में भूमि पर रख दिया तो वह वहीं रह जाएगा। रावण ज्योतिर्लिंग लेकर चल दिया चलते−चलते उसे लघुशंका हुई तो वह एक राहगीर को शिवलिंग थमाकर लघुशंका के लिए चला गया। उस राहगीर से जब शिवलिंग का बोझ सहन नहीं हुआ तो उसने उसे वहीं रख दिया। जब रावण लौटकर आया तो उसने देखा कि शिवलिंग मार्ग पर रखा हुआ है, उसने उसे उठाने की भरपूर कोशिश की लेकिन वह नहीं उठा। हारकर रावण लंका चला गया। उसके जाने के बाद ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवतागण वहां पधारे और उन्होंने पूजा−अर्चना के बाद उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा कर दी।

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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग− नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका के द्वारूकवन में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी कथा इस प्रकार है− सुप्रिय नामक एक वैश्य भगवान शिवजी का अनन्य भक्त था। एक बार जब वह नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था तो दारूक नामक राक्षस ने उस पर आक्रमण कर दिया और सुप्रिय तथा उसके साथी यात्रियों को पकड़कर अपनी पुरी ले जाकर जेल में बंद कर दिया। सुप्रिय जेल में भी शिवभक्ति में ही लीन रहता था। इसकी खबर जब दारूक को मिली तो वह वहां आकर सुप्रिय को डांटने और फटकारने लगा। जब सुप्रिय पर इसका कोई असर नहीं पड़ा तो दारूक ने अपने सेवकों से उसकी हत्या करने को कह दिया। इस पर भी सुप्रिय तनिक भी विचलित नहीं हुआ। यह सब जब भगवान शिवजी से नहीं देखा गया तो वह कारागार में ही सोने के चमकते हुए सिंहासन पर ऊंचे ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने सुप्रिय को अपना पाशुपात नामक अचूक अस्त्र भी दिया और दर्शन देकर अर्न्तध्यान हो गए। सुप्रिय ने इस अस्त्र से राक्षस का वध कर दिया और शिवधाम को चला गया। भगवान शंकर के आदेशानुसार, इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर ज्योतिर्लिंग रख दिया गया।

रामेश्वर ज्योतिर्लिंग− सेतुबन्ध रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने की थी। श्रीराम जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे तो वहां पानी पीने लगे। तभी आकाशवाणी सुनाई दी− ''मेरी पूजा किए बगैर जल पीते हो।'' इस वाणी को सुनकर भगवान श्रीराम ने तट की रेत से ही वहीं लिंग मूर्ति बनाई और शिवजी की आराधना करने लगे। तभी भगवान शिवजी प्रसन्न होकर वहां प्रकट हुए तो श्रीरामजी ने रावण पर विजय का आशीर्वाद मांगा, जो शिवजी ने सहर्ष ही दे दिया। श्रीरामजी ने संसार के उपकार के लिए भगवान शंकरजी से ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव वहां वास करने का वचन भी ले लिया। इस प्रकार रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई।

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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग− महाराष्ट्र के औरंगाबाद में इलोरा गुफाओं के पास स्थित है श्री धुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग। धुष्मेश्वर महादेव के दर्शन से सभी पाप दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख ही सुख आ जाता है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी कथा इस प्रकार है− दक्षिण देश में देवागिरि पर्वत के पास सुधर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। दोनों में बहुत प्यार था और दोनों ही सुखपूर्वक रह रहे थे। उन्हें एक ही दुख था कि उनकी कोई संतान नहीं थी। सुधर्मा ज्योतिषी भी था, उसने अपने ज्योतिष गणित से यह पता लगा लिया था कि सुदेहा से उसे संतान सुख नहीं मिलेगा और यह बात उसने सुदेहा को भी बता दी थी। ऐसे में सुदेहा ने अपनी बहन धुश्मा से दूसरा विवाह करने का प्रस्ताव अपने पति के समक्ष रखा तो पहले तो सुधर्मा ने मना कर दिया लेकिन बाद में वह सुदेहा की जिद के आगे मान ही गया। धुश्मा भी अच्छे संस्कारों वाली थी वह नित्य 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनका विधिवत पूजन कर उन्हें जल में प्रवाहित करती थी। भगवान शिवजी की कृपा से कुछ ही दिनों में धुश्मा गर्भवती हो गई और उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पूरा परिवार खुश हो गया लेकिन कुछ दिनों बाद सुहेहा को अपना बांझपन खलने लगा और उसे सौतिया डाह सताने लगी। जैसे−जैसे धुश्मा का पुत्र बड़ा होता गया वैसे−वैसे सुदेहा की जलन भी बढ़ती गई। धुश्मा का पुत्र जवान हो गया और उसका विवाह भी हो गया। सुदेहा अब स्वयं को असुरक्षित मानने लगी। वह सोचती रहती कि धुश्मा का पुत्र और उसकी पत्नी उसकी सारी संपत्ति हड़प लेंगे। एक दिन जब रात में धुश्मा का पुत्र अपनी पत्नी के साथ सो रहा था तभी सुदेहा ने उसे मार डाला और उसका शव उसी तालाब में ले जाकर डाल दिया जिसमें धुश्मा रोज पार्थिव शिवलिंगों को प्रवाहित करती थी। सुबह धुश्मा की बहु ने अपने पति को गायब पाया और बिस्तर पर खून देखा तो वह रोने लगी। लेकिन धुश्मा अपने नित्य कार्यों में लगी रही और उसने 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा की और उन्हें तालाब में छोड़ने ले गई। तालाब में शिवलिंगों को प्रवाहित करने के बाद जब वह घर लौटने लगी तो उसने देखा कि तालाब में से उसका पुत्र जीवित होकर बाहर निकल आया। इस सारी घटना को धुश्मा ने भगवान शिव की ही लीला मानी। इस पर प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने धुश्मा से वर मांगने को कहा तो धुश्मा ने कहा कि भगवन् आप यहीं इसी स्थान पर सदा के लिए वास करें मैं आपसे ऐसा वरदान मांगती हूं। तभी ऐसा ही होगा कहकर भगवान शिवजी ज्योतिर्लिंग के रूप में बदल गए और धुश्मा ने उनकी विधिवत प्रतिष्ठा कर दी।

12 Jyotirlingas of Lord Shiva and their related mythology

According to Shiva Purana, Lord Shiva resides in the form of Linga for the welfare of the people and the twelve idols of Lord Shiva are called Dwadash Jyotirlinga. These 12 Jyotirlingas are located at different places in India. Among these, Shri Somnath ji is remembered first. In the month of Shravan, a large number of devotees throng the Jyotirlingas for darshan and worship. It is believed that just by seeing the Jyotirlinga of Lord Shiva all the troubles go away and salvation is attained. Let us have a look at the stories related to the most sacred 12 Jyotirlingas.

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Shree Somnath Jyotirling - A huge temple on the beach of Veraval near Junagadh in the Saurashtra region of Gujarat houses Shri Somnath Jyotirlinga. It is said that here Lord Shiva freed the moon from the curse of Daksha Prajapati. It was at this place that Lord Krishna got his sole pierced by a hunter's arrow and ended his worldly life. The temple of Somnath ji has also been famous for its splendor and prosperity. Many times this temple was also targeted by indigenous and foreign attackers. The story that is told about Shri Somnath Jyotirlinga is as follows – Daksha Prajapati, the son of Brahma, married his 27 Nakshatra girls to the Moon at the same time. But Chandradev's choice was Rohini. Rohini's other sisters were unhappy at being neglected by Chandra Dev. When this matter reached Daksh Prajapati, he explained to Chandra Dev to treat everyone equally. But when there was no effect on Chandra Dev, Daksha cursed Chandra Dev to suffer from tuberculosis. Due to this, the body of the moon started decreasing continuously. His work of spreading moonlight in the world stopped. All the living beings started suffering and started crying for mercy. Chandradev called all the gods, sages etc. for his help but no solution was found. Due to this, the helpless gods reached the shelter of Brahmaji with the moon. Brahmaji asked Chandrama along with other deities to go to the meeting place of Saraswati with the ocean in the Prabhas region and worship Mrityunjaya Lord Shiva. On this, the moon went to the Prabhas area with the deities and chanted ten crore Mahamrityunjaya mantras for six months. Pleased with the worship of Chandra Dev, Lord Shiva and Mother Parvati appeared there and blessed Chandra Dev with immortality. He reduced the effect of Daksha's curse by giving a boon that in the fifteen days of the month, the decay of Chandra Dev's body would decrease little by little and these fifteen days would be called Krishna Paksha. In the subsequent fifteen dates, the body of Chandra Dev will be completed on the fifteenth day by increasing little by little every day. These fifteen days will be called Shukla Paksha. With this boon, the crisis of Chandra Dev was averted and he again started showering moonlight on the whole world. During this, Chandra Dev and other deities prayed to Lord Shiva to reside there along with Mother Parvati, which Lord Shiva accepted and started residing there.

Mallikarjuna Jyotirling- Mahadev Shiva resides with Mahadevi in the form of Mallikarjuna Jyotirlinga in Krishna district of Karnataka. This Jyotirlinga is on the Shri Shail mountain on the banks of Krishna river. It has been said in the religious texts that all the troubles go away just by having a darshan of Shri Shail. The story related to the establishment of this Jyotirlinga is as follows- There was a dispute between Lord Shiva's two sons Shri Ganesh and Swami Kartikeya as to who should get married first. On this, father Lord Shiva and mother Parvati said that the one who returns first after circumambulating the earth will be married first. On this, agile Kartikeya immediately left for parikrama, but since Shri Ganesh was fat, he could not get out of that agility and for this he found a new solution. According to the scriptures, the worship of parents is considered as circumambulation of the earth and it also gives the same result as that of circumambulation of the whole earth. As soon as this remedy came to mind, Shri Ganesh ji started worshiping Mother Parvati and Father Shiv Shankar by making them sit on the seat. Pleased with this, Lord Shiva Shankar got him married to Riddhi and Siddhi, the two daughters of Vishwaroop Prajapati. Here, by the time Lord Kartikeya reached his parents after circumambulating the earth, Lord Ganesha had become the father of two sons named Kshem and Labh. On this, after touching the feet of the parents, Kartikeya got angry and went to Kraunch mountain. The parents later went there in the form of Mallika and Arjuna to persuade them, then on hearing the news of their arrival, Kartikeya ran away from there and went on three plans. Lord Shiva Shankar and Mother Parvati settled there in the form of Jyotirlinga for the welfare of the residents of Kraunch Parvat (Shri Shail) region.

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Mahakaleshwar Jyotirling- The place of Shri Mahakaleshwar is the third among the Jyotirlingas of Lord Shiva. It is situated in Ujjain city of Madhya Pradesh. Jyotirlinga is present in the temple situated at some distance from Kshipra river in Ujjain. The story related to the establishment of this Jyotirlinga is as follows- In Ujjain there was a Shiva devotee king named Chandrasen. A five-year-old boy named Shrikar once saw the king worshiping the Shivling, while coming home he brought home a piece of stone and started worshiping it thinking it as a Shivling. Seeing this, the child's mother picked up the stone and threw it out of the house and started taking the child inside the house, then the child started screaming and fainted calling Lord Shiva Shankar for help. Lord Shiva could not resist this and when the child regained consciousness, he saw that there was a huge temple with golden doors in front. The Jyotirlinga present inside it is spreading a wonderful shade of light. At first the child was astonished and then being happy started praising Lord Shiva. When the child's mother saw all this, she picked up the child and hugged her. This news spread like a wild fire and King Chandrasen also came to see this miracle and appreciated the devotion of that boy. Only then Hanuman ji appeared there and he also appreciated the devotion of the child. This Jyotirlinga is worshiped as Mahakaleshwar Jyotirlinga.

Omkareshwar Jyotirling – Lord Shiva is present in the form of Omkareshwar Jyotirlinga on Mandhata mountain in Shivpuri city of Madhya Pradesh. The story related to its establishment is as follows- Once the Vindhya mountain did the penance of Omkarnath for six months, pleased with which Lord Shiva appeared and promised to reside there in the form of Jyotirlinga as a boon to Vindhyachal.

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Kedarnath Jyotirling- Kedarnath Jyotirlinga is situated on a mountain named Kedar in the Himalayan mountain range. This mountain is always covered with snow from three sides. Kedarnath pilgrimage is counted among the four dhams as Kedarnath, Badrinath, Gangotri and Yamunotri. It is said that the devotees visiting Badrinath must first visit Kedarnath otherwise their pilgrimage would be of no use. The story related to the establishment of this Jyotirlinga is as follows- Two sages named Nar and Narayan, who are considered to be the incarnation of Lord Shri Vishnu, once pleased Lord Shiva with their penance, then when Lord Shiva appeared, Nar and Narayan Accepting the prayer, promised to reside there in the form of Jyotirlinga.

Bhimashankar Jyotirling- Bhimashankar Jyotirlinga is situated on the Brahmaputra hill near Guwahati in Assam. The story related to the establishment of this Jyotirlinga is as follows- In the country of Kamrup, which is the state of Assam, there was the rule of a great king named Kamrupeshwar and a great devotee of Shiva. Once Maharakshasa Bhima came there and started threatening the worshipers of Dharma to leave the worship and while doing so he reached the king engaged in devotion to Shiva and challenged him. On this, the king ignored his challenge and remained engrossed in devotion to Shiva. Bhim again defied the king and started condemning Lord Shiva. When the king forbade him to do so, he did not agree and attacked the king with a sword. The sword hit the Shivling instead of the king, then Lord Shiva immediately appeared and killed the demon. On this, sages and sages prayed to Lord Shiva to reside there in the form of Jyotirlinga, then Shiva agreed. Since then the name of that Jyotirlinga became Bhimashankar.

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Kashi Vishwanath Jyotirling - Shri Vishweshwar Jyotirlinga is located in the city of Kashi. It is said that even in the doomsday, nothing gets spoiled in the city of Kashi. Lord Shiva wears it on his trishul and then takes it down at the beginning of creation. At this place, Lord Shri Vishnuji had done great penance to please Lord Shiva by wishing to create Sronij creation. During this, Lord Vishnu's sleeping Lord Brahma was born sitting on a lotus from his navel, who created the whole world. It is said that Lord Shiva preaches Tarak Mantra in the ears of those who sacrifice their lives here, due to which that creature attains salvation. This Jyotirlinga is enshrined in the Vishwanath temple in Kashi.

Trimbakeshwar Jyotirling - Trimbakeshwar Jyotirlinga is located in Nashik, Maharashtra. There are not one but three small lingas here, which are said to be the symbols of these three gods Brahma, Vishnu and Mahesh. That is why this Jyotirlinga is called Trimbakeshwar. It is said that with the prayer of Gautam Rishi and Godavari, Lord Shiva was pleased to reside here in the form of Jyotirlinga and became world famous by the name Trimbakeshwar.

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Shri Vaidyanath Jyotirling - Shri Baidyanath Jyotirlinga is located in Deoghar, Jharkhand. It is said that once Ravana, the king of demons, went to Mount Kailash and did penance to Lord Shiva and cut off his nine heads and offered them to the Shivling in turn. When he started chopping off his tenth head, Lord Shiva appeared and asked Ravana to ask for a boon. On this, Ravana requested Lord Shiva to walk in the form of Jyotirlinga and stay in Lanka, then Lord Shiva said that if Jyotirlinga is placed on the ground on the way, it will remain there. Ravana walked away with the Jyotirlinga; while walking, he had a slight doubt, so he handed over the Shivling to a passer-by and went away for a slight doubt. When that passerby could not bear the burden of Shivling, he kept it there. When Ravana returned, he saw that the Shivling was placed on the road, he tried his best to lift it but it did not. Defeated, Ravana went to Lanka. After his departure, Brahma, Vishnu and other deities came there and after worshiping, they established the Jyotirlinga at the same place.

Nageshwar Jyotirlinga- Nageshwar Jyotirlinga is located in Dwarukavana, Dwarka, Gujarat. The story related to the establishment of this Jyotirlinga is as follows- A Vaishya named Supriya was an ardent devotee of Lord Shiva. Once when he was going somewhere on a boat, a demon named Daruk attacked him and caught Supriya and his fellow travelers and took them to Puri and imprisoned them. Supriya remained engrossed in devotion to Shiva even in jail. When Daruk got the news of this, he came there and started scolding and reprimanding Supriya. When this had no effect on Supriya, Daruk asked his servants to kill him. Even on this, Supriya was not disturbed even a bit. When all this was not seen by Lord Shiva, he appeared in the prison itself in the form of Jyotirlinga towering on a shining throne of gold. He also gave his infallible weapon named Pashupat to Supriya and after giving darshan, he went into deep meditation. Supriya killed the demon with this weapon and went to Shivdham. As per the order of Lord Shankar, this Jyotirlinga was named as Nageshwar Jyotirlinga.

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Rameshwar Jyotirling- Setubandha Rameshwar Jyotirlinga was established by Maryada Purushottam Lord Shriram himself. When Shriram reached the beach to climb Lanka, he started drinking water there. Only then Akashvani was heard - "You drink water without worshiping me." After listening to this voice, Lord Shri Ram made a Linga idol from the sand of the beach itself and started worshiping Lord Shiva. Only then Lord Shiva appeared there after being pleased, then Shriram asked for the blessings of victory over Ravana, which Shivji gladly gave. Shriramji also took a promise from Lord Shankarji to reside there forever in the form of Jyotirlinga for the benefit of the world. Thus the Rameshwaram Jyotirlinga was established.

Ghrishneshwar Jyotirlinga- Shri Dhushmeshwar Jyotirlinga is located near Ellora Caves in Aurangabad, Maharashtra. With the darshan of Dhushmeshwar Mahadev all sins are removed and happiness comes in life. The story related to the establishment of this Jyotirlinga is as follows- A Brahmin named Sudharma lived with his wife Sudeha near Devagiri mountain in the southern country. There was a lot of love in both and both were living happily. He had only one sorrow that he had no children. Sudharma was also an astrologer, he had found out from his astrological calculations that he would not get child happiness from Sudeha and he had told this to Sudeha as well. In such a situation, Sudeha proposed to marry her sister Dhushma in front of her husband, at first Sudharma refused, but later he agreed to Sudeha's insistence. Dhushma also had good manners, she used to make 101 earthly Shivlings regularly and worship them duly and make them flow in water. By the grace of Lord Shiva, within a few days, Dhushma became pregnant and was blessed with a son, Ratna. The whole family became happy but after a few days, Suheha began to feel barren and jealous of her step-mother. As Dhushma's son grew up, Sudeha's jealousy also increased. Dhushma's son became young and he also got married. Sudeha now felt insecure. She kept thinking that Dhushma's son and his wife would usurp all her wealth. One day when Dhushma's son was sleeping with his wife at night, Sudeha killed him and took his body and threw it in the same pond in which Dhushma used to float the dead Shivlings daily. In the morning, Dhushma's daughter-in-law found her husband missing and started crying when she saw blood on the bed. But Dhushma continued with her routine and made 101 earthly Shivlings and worshiped them and took them to leave them in the pond. After floating the Shivlings in the pond, when she started returning home, she saw that her son came out of the pond alive. Dhushma considered this whole incident as the pastime of Lord Shiva. Pleased with this, Lord Shiva appeared and asked Dhushma to ask for a boon, then Dhushma said that God, you stay here forever, I ask you for such a boon. Only then saying this will happen, Lord Shiva turned into Jyotirlinga and Dhushma duly consecrated him.

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